बिहार के सहरसा जिले का सदर अस्पताल, जिसे कोसी का पीएमसीएच भी कहा जाता है, स्वास्थ्य सुविधाओं की दुर्दशा का एक और उदाहरण बनकर सामने आया है। गंभीर मरीजों के इलाज के लिए 1 करोड़ 84 लाख रुपये की लागत से बने 10 बेड वाले ICU का उद्घाटन 6 सितंबर 2023 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किया था। लेकिन आज, उद्घाटन के कई महीने बाद भी यह ICU धूल फांक रहा है। दरवाजे पर ताला लगा हुआ है, और अस्पताल प्रशासन की लापरवाही मरीजों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रही है।

ICU में बंद दरवाजे और धूल का आलम
जब मीडिया टीम ने इस मामले पर पड़ताल की तो अस्पताल प्रशासन का लचर रवैया सामने आया। मीडिया ने जब सदर अस्पताल के उपाधीक्षक से सवाल किया, तो उन्होंने अनमने ढंग से एक कर्मचारी भेजकर ICU का दरवाजा खुलवाया। लेकिन जैसे ही टीम ICU के अंदर पहुंची, वहां का दृश्य चौंकाने वाला था। अत्याधुनिक मशीनों से लैस ICU के अंदर अंधेरा पसरा हुआ था। उपकरण जैसे-तैसे पड़े हुए थे, चारों ओर गंदगी और मकड़ी के जाले लगे हुए थे। किसी भी तरह से यह जगह मरीजों के इलाज के लायक नहीं लग रही थी।

उद्घाटन के बाद क्यों बंद पड़ा है ICU?
अस्पताल के उपाधीक्षक से जब ICU के बंद रहने का कारण पूछा गया, तो उन्होंने सफाई दी कि पहले से ही मॉडल अस्पताल में 10 बेड का ICU चल रहा है। उनके अनुसार, जब मरीजों की संख्या वहां बढ़ेगी, तो नए ICU का उपयोग शुरू किया जाएगा। यह तर्क कितना सही है, यह बहस का विषय हो सकता है, लेकिन अस्पताल प्रशासन की यह दलील गंभीर मरीजों और उनके परिजनों को राहत देने में नाकाम साबित हो रही है।

मॉडल अस्पताल के ICU की भी स्थिति दयनीय
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि मॉडल अस्पताल का ICU भी अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहा है। डॉक्टरों की कमी और पर्याप्त स्टाफ की अनुपलब्धता के कारण वहां भी मरीजों को सही इलाज नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब पुराने ICU को ठीक से चलाया नहीं जा रहा, तो नए ICU का निर्माण और उद्घाटन का क्या औचित्य था? क्या यह केवल सरकारी औपचारिकता निभाने के लिए किया गया एक कदम था?

मरीजों और उनके परिजनों की समस्याएं
सहरसा सदर अस्पताल को कोसी क्षेत्र के सबसे बड़े अस्पतालों में गिना जाता है, जहां न केवल सहरसा बल्कि सुपौल और मधेपुरा जैसे आसपास के जिलों से भी मरीज इलाज के लिए आते हैं। गंभीर हालत वाले मरीजों और उनके परिजनों को उम्मीद थी कि नए ICU के उद्घाटन के बाद उन्हें बेहतर इलाज की सुविधा मिलेगी। लेकिन अस्पताल की लापरवाही और प्रशासनिक उदासीनता ने इन उम्मीदों को धूमिल कर दिया है।

सरकारी योजनाएं और धरातल की हकीकत
इस पूरे मामले ने एक बार फिर सरकारी योजनाओं और उनके क्रियान्वयन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हर साल सरकार करोड़ों रुपये स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर खर्च करती है। योजनाओं की घोषणा बड़ी धूमधाम से की जाती है, लेकिन उनका लाभ आम जनता तक पहुंचने से पहले ही व्यवस्था की खामियों में उलझकर रह जाता है। सहरसा के इस ICU का मामला भी कुछ ऐसा ही है। उद्घाटन के बावजूद यह मरीजों के लिए उपलब्ध नहीं है।

क्या स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री लेंगे कोई संज्ञान?
सवाल यह है कि जब उद्घाटन के बाद से यह ICU बंद पड़ा है, तो क्या केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री को इसकी जानकारी है? क्या उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि जिस सुविधा का उद्घाटन उन्होंने किया है, वह जनता के उपयोग में आ रही है या नहीं? इस तरह के सवाल न केवल सरकार की प्राथमिकताओं पर, बल्कि उनकी जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल खड़े करते हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति का प्रतीक
सहरसा सदर अस्पताल का यह मामला कोई अकेली घटना नहीं है। पूरे बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बदहाल है। डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की भारी कमी, उपकरणों का अभाव, और लचर प्रबंधन ने बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को जर्जर बना दिया है। ऐसे में आम जनता, खासकर गरीब और ग्रामीण क्षेत्र के लोग, बेहतर इलाज के अभाव में अपनी जान गंवाने को मजबूर हैं।

अब क्या होगा?
यह देखना दिलचस्प होगा कि मीडिया में यह मामला उजागर होने के बाद सरकार और प्रशासन हरकत में आते हैं या नहीं। क्या बंद पड़े ICU को शुरू किया जाएगा? क्या पुराने ICU की स्थिति को सुधारने के लिए कदम उठाए जाएंगे? या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह चर्चा का विषय बनकर रह जाएगा और धीरे-धीरे भुला दिया जाएगा?

निष्कर्ष
सहरसा सदर अस्पताल का यह मामला न केवल स्थानीय प्रशासन की लापरवाही का उदाहरण है, बल्कि यह हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाओं की बड़ी खामियों को भी उजागर करता है। एक ओर सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार और सुधार की बातें करती है, तो दूसरी ओर जमीन पर स्थिति इससे बिल्कुल उलट नजर आती है। अब देखना यह है कि क्या इस मामले में सरकार या प्रशासन कोई ठोस कदम उठाती है या फिर यह मामला भी कागजी योजनाओं की फेहरिस्त में गुम हो जाएगा।

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