सहरसा। कोशी पीड़ित संघर्ष मोर्चा के बैनर तले रविवार को नगर निगम चौक स्थित माया होटल विवाह भवन में एक दिवसीय सर्वदलीय बैठक आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता देवनारायण उर्फ नुनु यादव ने की, जबकि संचालन अनवार आलम ने किया। बैठक में कोशी वासियों की वर्षों से लंबित समस्याओं और मांगों पर विस्तार से चर्चा की गई।

बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि कोशी क्षेत्र की समस्याओं को लेकर जल्द ही एक ज्ञापन कोशी प्रमंडलीय आयुक्त, सहरसा के माध्यम से राज्य एवं केंद्र सरकार तक भेजा जाएगा। मोर्चा की प्रमुख मांगों में कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार एक्ट 1987 में संशोधन कर पीड़ितों की भागीदारी सुनिश्चित करना, कोशी नदी एवं जलजमाव से प्रभावित किसानों को वर्तमान दर पर मुआवजा देना, कटावग्रस्त गांवों को बचाना और स्थाई समाधान निकालना शामिल है। साथ ही क्षतिग्रस्त मकान-जमीन का पूरा मुआवजा देने, जलजमाव की स्थाई समस्या का निदान करने और नौहट्टा E-2 घाट से कीरतपुर पुल का शीघ्र निर्माण करने की भी मांग की गई।

इसके अलावा मोर्चा ने सरकार से यह भी मांग रखी कि कोशी-बलान नदी को खनन विभाग से मुक्त किया जाए और किसानों को अपने घर बनाने हेतु मिट्टी काटने का अधिकार दिया जाए। प्रभावित रैयती जमीन, जो सरकार के नाम दर्ज हो चुकी है, उसे पुनः रैयतों के नाम दर्ज करने की भी मांग की गई।

बैठक में वक्ताओं ने कहा कि कोशी तटबंध निर्माण से पहले सरकार ने पीड़ितों से कई आश्वासन दिए थे, लेकिन वे पूरे नहीं हुए। इसके चलते लगभग 50 लाख लोग पिछले 75 वर्षों से तटबंध के बीच नारकीय जीवन जीने को विवश हैं। वक्ताओं ने यह भी कहा कि दर्जनों बार तटबंध टूटने से कोशी क्षेत्र में भीषण तबाही हुई है, लेकिन सरकार ने अब तक स्थाई समाधान की दिशा में गंभीरता नहीं दिखाई है।

बैठक में तय किया गया कि समस्याओं को लेकर पंचायत और प्रखंड स्तर तक आंदोलन को मजबूत किया जाएगा और व्यापक जनांदोलन चलाया जाएगा। वक्ताओं ने कहा कि जब तक सरकार ठोस कदम नहीं उठाती, तब तक संघर्ष जारी रहेगा।

बैठक में अनवार आलम, देवनारायण यादव, तेजनारायण यादव, दीपक यादव, कमल नारायण गुप्ता समेत सैकड़ों प्रतिनिधि मौजूद रहे। सभी ने एक स्वर में कहा कि कोशी क्षेत्र की जनता को न्याय दिलाने के लिए हर स्तर पर लड़ाई लड़ी जाएगी।

कोशी पीड़ित संघर्ष मोर्चा की इस बैठक ने एक बार फिर क्षेत्र की ज्वलंत समस्याओं को राष्ट्रीय विमर्श में लाने का काम किया है। अब देखना होगा कि सरकार इस जनआवाज़ पर कितनी गंभीरता दिखाती है और क्या वाकई पीड़ितों को राहत दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाते हैं या नहीं।

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