चतरा, झारखंड झारखंड के चतरा जिले से एक मार्मिक और चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां एक मां ने अपने मृत बेटे को वापस जिंदा करने की आस में घंटों तक यीशु मसीह से प्रार्थना की, लेकिन आखिरकार उसे बेटे का अंतिम संस्कार करना पड़ा।

यह घटना हंटरगंज प्रखंड के पैनीकला गांव की है। मृतक का नाम विक्रम कुमार पासवान (उम्र 21 वर्ष) था। बताया जा रहा है कि विक्रम गुजरात के अहमदाबाद में मजदूरी का काम करता था। अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद उसकी मौत हो गई। उसका शव गांव लाया गया, और यहीं से शुरू हुई एक **आस्था और असहायता की मिलीजुली कहानी।

जैसे ही शव घर पहुंचा, उसकी मां को विश्वास नहीं हुआ कि उसका लाल अब इस दुनिया में नहीं रहा। बेटे को मृत देखकर मां, बुआ और चाचा सहित गांव की कुछ महिलाएं शव के पास बैठ गईं और यीशु मसीह से प्रार्थना करने लगीं कि उसका बेटा वापस जीवन में लौट आए। लगभग 7 घंटे तक शव को घर में रखा गया और लगातार प्रार्थना होती रही। महिलाएं गा रही थीं, रो रही थीं और अपने ईश्वर से बेटे को लौटाने की विनती कर रही थीं।

गांववालों को जब इस अजीबोगरीब घटनाक्रम की भनक लगी, तो किसी ने झाड़-फूंक और अंधविश्वास की सूचना पुलिस को दे दी। जब हंटरगंज थाना पुलिस मौके पर पहुंची, तो परिजनों को अंदेशा हो गया कि अब मामला कानूनी दायरे में आ सकता है। इसके बाद वे जल्दी-जल्दी शव को उठाकर श्मशान घाट की ओर रवाना हो गए और बेटे का अंतिम संस्कार कर दिया।

आस्था या अंधविश्वास?

इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं—क्या यह आस्था की पराकाष्ठा थी या अंधविश्वास की हद? क्या यह एक मां का टूटा हुआ दिल था जो चमत्कार की उम्मीद कर रहा था, या समाज में व्याप्त अज्ञानता की तस्वीर?

सामाजिक विश्लेषण:

झारखंड और बिहार जैसे क्षेत्रों में अभी भी कई परिवार झाड़-फूंक, चमत्कार और चमत्कारी इलाज पर भरोसा करते हैं।
गरीब और अशिक्षित तबके के लोग अक्सर डॉक्टरी इलाज की बजाय धार्मिक उपायों पर ज्यादा भरोसा करते हैं।
यह घटना बताती है कि स्वास्थ्य शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर काम करने की सख्त जरूरत है।

पुलिस की भूमिका:

पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को गंभीर होने से रोका, लेकिन किसी तरह की सख्ती नहीं बरती। उन्होंने परिवार को संवेदनशील तरीके से समझाया, और परिवार ने शव का अंतिम संस्कार कर दिया।


यह घटना केवल एक मां के दुःख और उसकी आस्था की कहानी नहीं, बल्कि समाज में गहराई से जड़े अंधविश्वास और जागरूकता की कमी का उदाहरण है। यह जरूरी है कि ऐसे मामलों को केवल खबर बनाकर छोड़ न दिया जाए, बल्कि उन लोगों तक सही जानकारी और मानसिक सहयोग पहुंचाया जाए, ताकि भविष्य में कोई मां 7 घंटे तक बेटे की लाश के पास बैठकर चमत्कार की उम्मीद न करे।

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