दुनिया के कई हिस्सों में आज भी कम उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती है, लेकिन कुछ देशों में महिलाएं अपनी मर्जी से शादी नहीं कर रही हैं। दक्षिण कोरिया में महिलाओं का एक समूह जो शादी नहीं करना चाहता, उनका मानना है कि शादी एक अतिरिक्त जिम्मेदारी है, और वे अपनी आजादी को प्राथमिकता देती हैं। इस समूह की महिलाओं के अनुसार, पुरुषों का बढ़ता हिंसात्मक रवैया भी उन्हें शादी से दूर करता है।
यह समस्या केवल दक्षिण कोरिया तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मुस्लिम देशों में भी एक बढ़ती संख्या में ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने अभी तक शादी नहीं की है। इसकी वजहें जटिल हैं, और इनका सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक पहलुओं से गहरा संबंध है।
एक पुरानी रिपोर्ट के अनुसार, गल्फ रीजन सहित पूरे अरब में करीब 25 मिलियन (2.5 करोड़) ऐसी महिलाएं हैं, जिनकी उम्र 24 साल से ज्यादा हो चुकी है, लेकिन उन्होंने अभी तक शादी नहीं की है। यह आंकड़ा उस समय का है जब महिलाओं की उम्र विवाह के लिए पारंपरिक रूप से तय उम्र के आस-पास होती थी।
मिस्र इस लिस्ट में सबसे ऊपर है, जहां अकेले 9 मिलियन (90 लाख) महिलाएं कभी शादी नहीं कर पाई हैं। इस संख्या में कई महिलाएं 35 साल या उससे ज्यादा उम्र की हैं। ऐसे मामलों में अक्सर महिलाएं अपनी शिक्षा, करियर, और व्यक्तिगत जीवन में आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देती हैं। हालांकि, पारंपरिक समाज में महिलाओं के लिए शादी एक अहम हिस्सा मानी जाती है, लेकिन सामाजिक बदलाव और स्वतंत्रता की भावना ने कई महिलाओं को अपनी पसंद और जीवन को चुनने की ताकत दी है।
मिस्र के बाद, अल्जीरिया दूसरे स्थान पर है, जहां 4 मिलियन (40 लाख) कुंवारी महिलाएं हैं। इराक में यह आंकड़ा 3 मिलियन (30 लाख) और यमन में करीब 2 लाख के आसपास है। इसके अतिरिक्त, सूडान, ट्यूनीशिया और सऊदी अरब में भी यह संख्या काफी अधिक है, जो कि लगभग 1.5 लाख के आस-पास है। इस शोध में यह भी बताया गया था कि इन आंकड़ों का जिक्र कुवैत के न्यूजपेपर अलराई द्वारा किया गया था, जो 2010 में प्रकाशित हुआ था।
इन आंकड़ों में न केवल युवा महिलाएं शामिल हैं, बल्कि उन महिलाओं का भी समावेश किया गया है जो 30 या उससे अधिक उम्र की हैं। इस रिपोर्ट में यह भी ध्यान में रखा गया है कि आजकल कई मुस्लिम देशों में विवाह की उम्र बढ़ी है। जैसे कि जॉर्डन में महिलाओं की शादी की औसत उम्र 30 साल से बढ़कर 32 साल हो गई है, जो समाज में आए बदलावों को दर्शाता है।
इस बदलाव के पीछे कई कारण हैं, जिनमें प्रमुख कारण शिक्षा, करियर की तलाश, आर्थिक स्वतंत्रता, और परिवार के दबाव से मुक्ति है। महिलाएं अब अपने करियर और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दे रही हैं। वहीं, कुछ महिलाएं पुरुषों के बढ़ते हिंसात्मक रवैये से बचने के लिए भी शादी नहीं कर रही हैं। इसके अलावा, पारंपरिक समाज में विवाह को लेकर जो मान्यताएं थीं, वे अब धीरे-धीरे बदल रही हैं, और महिलाओं को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार मिल रहा है।
सामाजिक बदलाव का असर इन देशों में देखे जा रहे है, जहां महिलाएं अब शादी को एक सामाजिक दबाव के रूप में नहीं बल्कि एक व्यक्तिगत चुनाव के रूप में देख रही हैं। कई महिलाओं का मानना है कि शादी करना उनका व्यक्तिगत अधिकार है, और वे अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने का विकल्प चुन रही हैं।
कुल मिलाकर, ये आंकड़े और बदलाव एक नई सोच और स्वतंत्रता की ओर इशारा करते हैं, जिसमें महिलाएं अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने में सक्षम हो रही हैं। अब देखना यह है कि आने वाले समय में ये बदलाव किस हद तक समाज में स्वीकार किए जाएंगे और इस बदलाव का असर पुरुषों और महिलाओं के रिश्तों पर कैसे पड़ेगा।
यह स्थिति कुछ हद तक भारतीय समाज में भी देखी जा सकती है, जहां लड़कियां अब अपने जीवनसाथी को चुनने में अधिक स्वतंत्रता महसूस करती हैं और देर से शादी करने का चलन बढ़ रहा है।
समाज में होने वाले इन बदलावों के बावजूद, एक बात तो स्पष्ट है कि महिलाएं अब अपनी शर्तों पर जीने का अधिकार महसूस कर रही हैं और वे अपनी पसंद के मुताबिक जीवन की दिशा तय कर रही हैं।
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