प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में शनिवार को दिल्ली में आयोजित नीति आयोग की बैठक में बिहार ने अपनी कई महत्वपूर्ण मांगों को जोरदार तरीके से रखा। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं बैठक में शामिल नहीं हुए, लेकिन उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने मुख्यमंत्री का 13 पन्नों का भाषण पढ़ा और राज्य की ओर से योजनाओं, समस्याओं और अपेक्षाओं को पूरी मजबूती से रखा। जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि कई बार राजनीतिक परिस्थितियों के चलते मुख्यमंत्री ऐसी बैठकों में भाग नहीं ले पाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बिहार की आवाज वहां नहीं पहुंची।

बैठक में सबसे प्रमुख मांगों में से एक रही — केंद्र प्रायोजित योजनाओं में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 90% तक की जाए और बिहार को केवल 10% का योगदान देना हो। वर्तमान में अधिकतर योजनाओं में केंद्र की हिस्सेदारी 60% और बिहार की 40% है, जो राज्य के आर्थिक संसाधनों पर दबाव डालती है। बिहार का कहना है कि देश के कुछ राज्य, विशेष रूप से पूर्वी भारत के राज्य, विकास की दौड़ में पिछड़ गए हैं, इसलिए उनके लिए विशेष वित्तीय प्रावधान की आवश्यकता है।

नीति आयोग की इस महत्वपूर्ण बैठक में बिहार की ओर से एक और अहम मांग सामने आई — राजधानी पटना के 40 किलोमीटर के दायरे में रैपिड ट्रेन सेवा शुरू की जाए। इस प्रस्तावित रैपिड ट्रेन की गति 160 से 200 किलोमीटर प्रति घंटा होगी, जिससे पटना और इसके उपनगरीय इलाकों जैसे आरा, दानापुर, फतुहा, बख्तियारपुर और राजेंद्र नगर के बीच तेज़, सुलभ और टिकाऊ यातायात की सुविधा मिल सकेगी। इससे राजधानी का विस्तार और विकास तेज़ी से होगा।

इसके साथ ही, बिहार ने रोड सेक्टर और आधारभूत संरचना विकास के लिए केंद्र से विशेष मदद की मांग रखी। सम्राट चौधरी ने बताया कि राज्य में गरीबी दर में कमी आई है, और विकास के कई मोर्चों पर बिहार ने उल्लेखनीय प्रगति की है। उन्होंने कहा कि नीति आयोग द्वारा निर्धारित मापदंडों पर बिहार खरा उतरा है। वर्ष 2041 तक राज्य की कुल जनसंख्या में 20 से 59 वर्ष की आयु वाली कार्यशील आबादी का प्रतिशत 58.3% हो जाएगा। इस युवा जनसंख्या के लिए शिक्षा, कौशल विकास, और रोजगार की दिशा में कार्य किया जा रहा है।

राज्य में “निश्चित पार्ट-2” योजना के अंतर्गत नौकरी और स्वरोजगार के अवसरों का विस्तार किया जा रहा है। इसके अलावा, हरित आवरण भी राज्य में पहले की तुलना में काफी बढ़ा है — 9% से बढ़कर अब यह 15% तक पहुंच चुका है, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है।

हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दो वर्षों से नीति आयोग की बैठकों से दूरी बनाए रखना विपक्ष के लिए एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। खासकर चुनावी साल में इस तरह की दूरी पर सवाल उठाए जा सकते हैं। विपक्ष का मानना है कि यह मुख्यमंत्री की केंद्र सरकार से दूरी और राजनीतिक असहमति का संकेत है, जबकि जदयू का पक्ष है कि मुद्दों को सही मंच पर और सही तरीके से रखने की परंपरा जारी रही है।

कुल मिलाकर, बिहार ने नीति आयोग की बैठक में अपनी बात बेहद प्रभावशाली ढंग से रखी। राज्य ने जहां अपनी प्रगति की झलक दिखाई, वहीं केंद्र सरकार से उचित वित्तीय और परियोजना सहयोग की भी मांग की। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार बिहार की इन मांगों पर क्या रुख अपनाती है और विकास की गति को और किस तरह से तेज़ किया जा सकता है।

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