फोन के दोनों ओर दो प्रेमी जनम-जनम तक साथ जीने-मरने की कसमें खा रहे थे। प्रेमी ने कहा, ‘कुछ दिनों की बात है, हम साथ होंगे। मुझे भूलना मत। तुम्हारे बिना एक-एक पल एक बरस लग रहा है। तुमसे मिलने की आस न होती तो मैं मर ही गया होता।’
इस प्रेम कहानी में लड़की हिंदू है, लड़का मुस्लिम। लड़की एक अरबपति की बेटी। लड़का बस्ती में रहने वाला गरीब, लेकिन पढ़ा-लिखा। वाकया पश्चिम बंगाल का है। साल 2007, जब वहां लेफ्ट फ्रंट की सरकार हुआ करती थी और मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य। लड़का कोलकाता के मशहूर सेंट जेवियर्स कॉलेज का स्टूडेंट। निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले उस नौजवान ने पढ़ाई पूरी करने के बाद ग्राफिक्स डिजाइन का कोर्स किया। फिर एक प्राइवेट इंस्टीट्यूट में कंप्यूटर ग्राफिक्स सिखाने लगा।
अपने स्टूडेंट्स के बीच बहुत मकबूल। उन्हीं में 23 साल की वह लड़की भी थी, जो बाद में उसकी जिंदगी में मोहब्बत बनकर आई। लड़का कोई 7 बरस बड़ा। प्यार परवान चढ़ा तो 18 अगस्त, 2007 को दोनों ने स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत अपनी शादी रजिस्टर करा ली। महल जैसे घर में रहने वाले लड़की इसके करीब डेढ़ हफ्ते बाद जब तपसिया मुस्लिम बस्ती में पति के छोटे से घर में रहने निकली तो उसके परिवार वालों को शादी की बात पता चली। पूरा परिवार सन्न था। इसके बाद पिता लड़की के मामा को लेकर तपसिया मुस्लिम बस्ती पहुंचे। बेटी से साथ चलने की विनती की, लेकिन वह अपने प्यार को छोड़कर जाने के लिए नहीं मानी।
कहते हैं, नेताओं और पुलिस अफसरों से भी दबाव डलवाया गया। लड़के को लगने लगा, कुछ गड़बड़ हो सकती है। नेता, पुलिस अफसर दबाव डाल रहे थे। उसे सूझ नहीं रहा था, किससे मदद मांगे। थक-हारकर उसे पुलिस में ही उम्मीद नजर आई। उसने उन्हें चिट्ठी लिखी, ‘घर आकर कुछ लोग धमकी दे रहे हैं। मेरी बीवी पर मायके लौटने का प्रेशर बना रहे हैं।’
हफ्ता गुजर गया। कोई अनहोनी नहीं हुई। फिर 6 सितंबर को पुलिस मुख्यालय लालबाजार में पति-पत्नी दोनों को बुलाया गया। कमिश्नर के सामने मीटिंग हुई। लड़की के परिवार वाले भी थे वहां। उन्होंने कहा, हमारे घर की बेटी खुलकर बात नहीं कर पा रही। लड़के को वहां से हटाया जाए। वो लड़की को घर ले जाना चाहते थे। भले ही, कुछ कुछ ही समय के लिए। लड़का इसके लिए राजी न हो। पुलिस अफसरों ने उसे फिर धमकाया। कहा, लड़की को घर भेज दो, नहीं तो सलाखों के पीछे भेजे जाओगे।
वो यूं ही यह बात नहीं कह रहे थे। लड़की के परिवार वालों ने पुलिस में शिकायत दी थी। आरोप लगाया था कि लड़के ने उनके घर से सेल फोन और दूसरे सामान चुराए हैं। जबरन उनकी बेटी को अपने घर में रखा है। लड़की के मामा भी मीटिंग के लिए वहां गए थे। वो लड़की से बोले, ‘तुम्हारी चिंता है। तुम्हारे पापा इस कारण बीमार हैं। मां भी। हफ्ते भर के लिए घर आ जाओ। समझा-बुझा देना उन्हें कि तुम बस्ती में खुश हो। फिर लौट आना…’
लड़का अब भी राजी नहीं था, लेकिन लड़की नरम पड़ गई। अब उसे भी मानना पड़ा। एक शर्त भी रखी उसने। लिखित बॉन्ड की। लड़के ने कहा, लिखकर दो कि हफ्ते भर में मेरी बीवी को वापस भेज दिया जाएगा। मामा ने बात मान ली। पुलिस के सामने लिखकर दिया कि भांजी को वापस भेज देंगे, लेकिन हफ्ते भर में नहीं, 15 दिनों में।
लड़की उस रोज पिता के घर चली गई। अंतिम बार 11 सितंबर को पति से उसकी बात हुई। उस रोज फिर मिलने का वादा हुआ। उसके बाद लड़ने ने बीवी से कई बार बात करने और मिलने की कोशिश की, पर कामयाब न हुआ। आखिरकार उसने मानवाधिकार संगठन को चिट्ठी लिखी। पत्नी से मिलवाने के लिए मदद मांगी। पुलिस वालों से भी फरियाद की, लेकिन मायूसी ही हाथ लगी।
21 सितंबर 2007 की दोपहर कोलकाता के पास दमदम रेलवे लाइन पर एक डेड बॉडी मिली। शिनाख्त हुई तो पता चला, शव उसी लड़के का था। नाम, रिजवानुर रहमान। सिर पर चोट के निशान। बॉडी मिलने के कुछ घंटों बाद पुलिस कमिश्नर प्रसून मुखर्जी का बयान आया। बताया गया, खुदकुशी है। मीडिया इस खबर के पीछे लगी तो एक-एक करके परत खुलने लगी। अगले दिन अखबारों में खबर पहले पन्ने पर। लड़की का नाम प्रियंका तोदी। लक्स कोजी ग्रुप की वारिस। पिता अशोक तोदी।
एक प्रेम कहानी के दुखद अंत से मामला कहीं आगे बढ़ गया। कोलकाता के तपसिया, पार्क सर्कस, टेंगरा, बेनियापुकुर, कस्बा, करया सहित कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन होने लगे। लोगों में पुलिस को लेकर बहुत गुस्सा था। पुलिस की गाड़ियों, सार्वजनिक बसों में आग लगाई गई। दर्जनों पुलिस वाले घायल हुए। दंगे भड़कने तक का डर पैदा हो गया।
राज्य सरकार पर प्रेशर बढ़ने लगा। उसने प्रसून मुखर्जी और डीसी रैंक के चार सीनियर आईपीएस अधिकारियों को हटाया ताकि मामला ठंडा हो। तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य रिजवानुर के घर भी गए। वहां उनकी गाड़ी का घेराव हुआ। सेंट जेवियर्स कॉलेज के छात्रों ने 100 से ज्यादा दिनों तक लगातार मोमबत्ती जुलूस निकाला। अपने पूर्व छात्र रिजवानुर के लिए इंसाफ मांगते हुए। सियासत भी चरम पर पहुंच गई। विपक्ष की नेता तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी भी रिजवानुर के घर जाकर उनके बड़े भाई रुकबानुर और मां किश्वर जहां से मिलीं। न्याय का भरोसा दिलाया। ममता ने कहा, राज्य सरकार मामले की सीबीआई जांच करवाए।
लेफ्ट फ्रंट की सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा था। उसने केस की सीबीआई जांच करवाने की बात मान ली। प्रियंका तोदी के पिता को पुलिस को गिरफ्तार करना पड़ा। बाद में वो जमानत पर रिहा हुए। मीडिया में इस केस की लगातार रिपोर्टिंग हो रही थी। आरोप लगा कि अशोक तोदी के प्रसून मुखर्जी (क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के अध्यक्ष) से करीबी रिश्ते थे।
खैर, रिजवानुर की मौत के बाद प्रियंका ससुराल नहीं लौटीं। किश्वर जहां के पास उनकी ओर से एक चिट्ठी आई। लिखा था, वो सदमे में है। पिता के घर पर ही रहेगी। कृपया उसकी साड़ी, ग्रीटिंग कार्ड, डायरी, फटॉग्राफ, जन्म प्रमाणपत्र, शैक्षणिक प्रमाणपत्र सहित अन्य सामान लौटा दें। वकील के मार्फत आई चिट्ठी पर किश्वर जहां ने कहा, ‘यह जले पर नमक छिड़कने जैसा है। आपके पिता की साजिश के कारण मैंने अपना बेटा खो दिया। अफसोस कि आपने इस पत्र को अपने वकील के मार्फत भेजा।’
उधर, ममता को रिजवानुर मामले का सियासी फायदा हुआ। लेफ्ट फ्रंट का ट्रेडिशनल वोट बैंक माने जाने वाला मुस्लिम समुदाय खिलाफ हो गया। उसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में टीएमसी को भारी लाभ हुआ और 2011 में उसने लेफ्ट फ्रंट की सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। रिजवानुर के बड़े भाई रुकबानुर को टीएमसी ने विधानसभा का टिकट दिया। उसने 2011 और 2016 में जीत भी दर्ज की।
सीबीआई जांच में भी रिजवानुर की मौत को खुदकुशी ही बताया गया। मौत के दिन रिजवानुर के मोबाइल से प्रियंका के फोन पर मेसेज भेजे गए थे। इनमें से एक अशोक तोदी को संबोधित था। उस मेसेज में लिखा था, (समय 21 सितंबर सुबह 9:24 ) ‘पापा मैं मरने से पहले आखिरी बार प्रियंका से बात करना चाहता हूं’, फिर मां को संबोधित करते हुए (समय 21 सितंबर सुबह 9:30 ) मां मैं पांच मिनट में मर जाऊंगा।’ उसने अपने एक मित्र को मेसेज किया था कि मेरे जाने के बाद जोरदार विरोध होना चाहिए। हालांकि रिजवानुर के भाई का आरोप है कि इन संदेशों को उसके मोबाइल से भेजने वाला कोई और था।
अशोक तोदी कहते रहे, प्रियंका की कभी रिजवानुर से शादी नहीं हुई। इल्जाम लगाया कि रिजवानुर ने जबरन प्रियंका से साइन करवाकर मैरिज रजिस्टर करवाई थी। रिजवानुर की मौत के कुछ दिनों बाद तक प्रियंका खामोश रहीं। फिर रिजवानुर के भाई रुकबानुर और अपने दोस्त पप्पू की ओर संकेत करते हुए कहा कि 19 नवंबर और 21 नवंबर के बीच कोई ऐसी बात हुई थी, जिससे रिजवानुर को यह कदम उठाना पड़ा।
सीबीआई के रिजवानुर की मौत को खुदकुशी बताने के बाद सुप्रीम कोर्ट में केस की फिर से तफ्तीश के लिए अर्जी डाली गई। अदालत ने वो मांग खारिज कर दी। हां, खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला अभी भी विचाराधीन है। प्रियंका उस घटना के बाद विदेश चली गईं। बरसों बाद अब वह सार्वजनिक फंक्शनों में भी दिखाई देने लगी हैं। लक्स कोजी का विज्ञापन विभाग संभालती हैं।