अकबरनगर के छीट श्रीरामपुर कोठी में पूर्वजों द्वारा मां बम काली की प्रतिमा स्थापित की जाती रही है। पुराने लोगों का मानना है कि किसी को पता नहीं है कि बम काली की प्रतिमा कब से स्थापित की जाती है। पूर्वजों का कहना है कि हम लोगों का पूर्वज श्रीरामपुर दियारा में बसे थे लेकिन जमीन गंगा में समाहित हो जाने के बाद यहां बसे हैं। भक्तों को एक दिन सपना आने के बाद वर्ष 1930 में मां काली के मंदिर का निर्माण लोगों के सहयोग से कराया गया है।

मां बम काली की मान्यता है कि जो भी भक्त मां के दरबार में मन्नत लेकर आते हैं सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माता रानी के दरबार से कोई भक्त बिना आशीर्वाद लिए नहीं जाता है। मां काली के आशीर्वाद से मनोकामनाएं पूरी होने पर भक्त खुशी से बलि देने आते हैं। मां बम काली का मंदिर बलि के लिए प्रचलित है। प्रत्येक साल मां काली के दरबार में सैकड़ों बलि पड़ती है। बलि देने के लिए नंबर लगाना पड़ता है। साथ ही मां काली को खुश करने के लिए सरकारी बलि दी जाती है। इसके बाद ही सार्वजनिक बलि दी जाती है। मां काली की भव्य प्रतिमा का निर्माण किया जाता है। काली पूजा को लेकर यहां एक माह से तैयारी की जाती है। यह मंदिर अकबरनगर भागलपुर मुख्य सड़क एनएच 80 पर स्थित है। यहां का मंदिर 92 साल पुराना है।

24 घंटे से 24 मिनट नहीं रुकती मां बम काली की प्रतिमा  

मंदिर के महंत धन्नी ठाकुर बताते है कि मां बम काली को 24 घंटे से ज्यादा नहीं रखा जाता है। 24 घंटे से एक भी सेकेंड ज्यादा रहने पर अनहोनी की आंशका जताई जाती है। यही कारण है कि यहां की काली नौ बजे स्थापित होती है और अगले दिन नौ बजे रात में  मंदिर से विसर्जन के लिए निकाली जाती हैं। मां काली पूजा को लेकर मेला का आयोजन होता है। मेला देखने दूर-दराज के श्रद्धालु दर्शन  करने आते हैं। अकबरनगर की बम काली ज्यादा शक्तिशाली बतायी जाती हैं। अकबरनगर में तीन जगहों पर प्रतिमा का निर्माण किया जाता है लेकिन शक्तिशाली रहने कर कारण यहां भीड़ जुटती है।

ग्रामीण दीपावली का दीप जलाकर करते हैं प्रतिमा स्थापित 

काली पूजा समिति के अध्यक्ष अशोक साह, कोषाध्यक्ष अवधेश ठाकुर, सचिव महेश साह ने बताया कि यहां की पुरानी परम्परा है कि दीपावली पूजा के दिन दीप जलाने के बाद ग्रामीण एकजुट होकर मां काली की प्रतिमा का प्राण-प्रतिष्ठा कर स्थापित करते हैं। प्रतिमा स्थापित करने के बाद भोजन करते हैं। साथ ही दर्शकों के मनोरंजन के लिए नाटक का मंचन किया जाता है। नाटक देखने के लिए दर्जनों गांव के लोग आते हैं।

कंधों पर बड़े धूमधाम से युवा भक्त मां काली को देते हैं विदाई 

छीट श्रीरामपुर कोठी में युवा भक्त मां काली को कंधों पर लेकर विसर्जन द्वार इंग्लिश चिचरौंन तक गाजे बाजे के साथ करतब दिखाते धूमधाम से विदाई देते हैं। विसर्जन को लेकर खासकर गांव के बाहर रहने वाले ग्रामीण भी दीपावली में घर आते हैं और धूमधाम से उत्साह में शरीक होते हैं। साथ ही भव्य मेला का आयोजन होता है। करीब एक किमी तक लाइटिंग की व्यवस्था की जाती है।

कई वर्षों से प्रतिमा का निर्माण करने आते हैं कलाकार गोपाल  

काली मंदिर में कई वर्षो से प्रतिमा का निर्माण करने नाथनगर के कलाकार गोपाल कुमार आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि आसपास के इलाकों में ऐसी प्रतिमा का निर्माण नहीं होता है। मां काली में आस्था रहने के कारण हम यहां वर्षो से निर्माण कर रहे हैं। मेला में लाखों रुपये खर्च होता है। अकबरनगर में तीन जगहों पर प्रतिमा स्थापित की जाती है।

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