राज्य के अनुमंडलों में तैनात भूमि सुधार उप समाहर्ता (डीसीएलआर) की कार्यशैली सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा रही है। खासकर जमीन से जुड़े मामलों की सुनवाई और उनके फैसलों को लेकर डीसीएलआर की सुस्ती ने आम लोगों को न्याय से वंचित कर दिया है। कई डीसीएलआर सुनवाई पूरी करने के बाद फैसले को महीनों तक सुरक्षित (रिजर्व) रख लेते हैं। इससे पक्षकारों को यह जानकारी तक नहीं मिल पाती कि उनके मामले में निर्णय हुआ या नहीं। जब तक उन्हें फैसला नहीं मिलता, तब तक वे उच्च अदालत में अपील भी नहीं कर सकते।
ऐसी स्थिति सिर्फ दो-चार दिनों की नहीं, बल्कि महीनों तक जारी रहती है। यह गंभीर प्रशासनिक लापरवाही है। नियम के अनुसार, किसी भी मामले का फैसला अधिकतम 15 दिनों के भीतर सार्वजनिक कर देना चाहिए। लेकिन पटना, छपरा, सारण, रोहतास, गया और दरभंगा समेत लगभग सभी जिलों में इस नियम का उल्लंघन हो रहा है।
डीसीएलआर के समक्ष आम लोग भूमि विवाद, दाखिल-खारिज और म्यूटेशन से संबंधित मामले लेकर पहुंचते हैं। ये अधिकारी वर्षों तक एक ही मामला लटकाए रखते हैं और अंत में जब निर्णय होता है, तब भी उसे महीनों तक सुरक्षित रखा जाता है। इससे दोनों पक्षकारों को महीनों तक सिर्फ इंतजार करना पड़ता है।
ऑनलाइन सिस्टम के बावजूद फिजिकल चक्कर
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की सभी सेवाएं अब ऑनलाइन उपलब्ध हैं, लेकिन इसके बावजूद कार्यालयों में लोगों की भीड़ देखी जा रही है। अंचल और अनुमंडल कार्यालयों में जानबूझकर ऑनलाइन सेवाओं में गड़बड़ी की जाती है ताकि लोगों को मजबूरी में दफ्तर आना पड़े। इससे पारदर्शिता और सुविधा दोनों पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
राजस्व मंत्री संजय सरावगी ने हाल में हुई एक समीक्षा बैठक में डीसीएलआर के रवैये पर नाराजगी जताई। उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिए कि मामलों की सुनवाई के बाद दो-चार दिनों के भीतर फैसले को अपलोड किया जाए और किसी भी परिस्थिति में बैक डेट में अपलोडिंग न हो। डिजिटल हस्ताक्षर और अपलोडिंग की तिथि एक समान होनी चाहिए।
वर्षों से लंबित मामले चिंता का विषय
राजस्व मंत्री ने कहा कि अधिकतर अनुमंडलों में एक साल से अधिक पुराने मामले लंबित हैं, जो चिंताजनक है। उन्होंने निर्देश दिया कि डीसीएलआर इन मामलों को प्राथमिकता दें और जल्द से जल्द निपटारा करें। विशेष रूप से म्यूटेशन अपील से जुड़े मामलों का समयबद्ध निपटारा अनिवार्य है। वर्षों तक मामले लटकाना किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है।
सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि यदि सुधार नहीं हुआ तो जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई होगी। जनता को समय पर न्याय दिलाने के लिए प्रशासनिक सख्ती जरूरी हो गई है।