मकरसंक्रांति का त्योहार बहुत जल्दी ही आने वाला है। उससे पहले बिहार भवन भागलपुर के मशहूर कतरनी चूड़ा और चावल को देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सौगात के रूप में भेजने की तैयारी में जुटी हुई है।
भागलपुर । इस बार मकर संक्रांति के अवसर पर सुल्तानगंज प्रखंड के आभा रतनपुर के कतरनी चूड़ा का स्वाद राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री चखेंगे। इसके लिए बिहार भवन ने तीन क्विंटल उच्च क्वालिटी के कतरनी चूड़ा की मांग जिला प्रशासन से की है। वहां से राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को भागलपुरी कतरनी सौगात के रूप में भेजी जाएगी। बिहार भवन में भी मकरसंक्रांति के अवसर पर आयोजित दही-चूड़ा व तिलकुट के भोज में कतरनी चूड़ा परोसा जाएगा।
उच्च गुणवत्तायुक्त कतरनी धान को चिह्नित कर चूड़ा की तैयारी व आकर्षक पैकिंग कराकर दो जनवरी तक सुरक्षित पहुंचाने का दायित्व जिला कृषि पदाधिकारी को दिया गया है। तैयार चूड़ा के पैकट को बिहार भवन ले जाने के लिए आत्मा के उपपरियोजना निदेशक प्रभात कुमार सिंह व प्रखंड कृषि कार्यालय के लेखापाल प्रेम कुमार पिंटू को प्रतिनियुक्त किया गया है। पिछले साल भी आभा रतनपुर का कतरनी चूड़ा ही बिहार भवन भेजा गया था।
खाड़ी देश जाएगा कतरनी चूड़ा व चावल
खाड़ी देशों में कतरनी चावल और चूड़ा की भारी मांग है। वहां भी चूड़ा भेजने की तैयारी शुरू कर दी गई है। दो जनवरी को खाड़ी देश के एक्सपोर्टर जिशान अली आभा रतनपुर पहुंच रहे हैं। जिशान अली दुबई में बैठते हैं। इनके यहां कोलकाता से माल पहुंचता है। दो महीने पहले भी एक्सपोर्ट यहां आकर सैंपल ले जा चुके हैं। सबकुछ ठीक-ठाक रहा तो 10 से 12 टन कतरनी चावल व चूड़ा खाड़ी देश भेजा जाएगा। एपिडा के माध्यम से भी कतरनी चावल-चूड़ा विदेश भेजने की तैयारी चल रही है।
जैविक हाट से होगी बिक्री
जिला कृषि कार्यालय स्थित जैविक हाट में 28 दिसंबर से कतरनी चावल व चूड़ा बिकने लगेगा। आभा रतनपुर के कतरनी धान उत्पादक किसान मनीष कुमार सिंह ने बताया कि दस क्विंटल चूड़ा तैयार किया जा रहा है। तीन से चार दिनों के अंदर तैयारी पूरी हो जाएगी। चावल व चूड़ा जैविक हाट पर भी उपलब्ध होगा। चूड़ा 160 रुपये प्रति किलो और नया चावल 150 रुपये किलो मिलेगा। पुराना चावल 160 रुपये किलो मिलेगा। अरवा व उसना चावल का आटा भी मिलेगा।
पिछले साल से अच्छी हुई उपज
पिछले साल की तुलना में इस साल कतरनी धान की उपज अच्छी हुई है। पिछले साल एक बीघा में 9 से 11 क्विंटल तक धान की उपज हुई थी। इस साल 13 से 15 क्विंटल तक धान की उपज हुई है। शुरुआती समय में कम वर्षा होने की वजह से अधिकांश किसान धान नहीं लगा पाए। बोरिंग आदि के माध्यम से जिन किसानों ने धान बोया, उन्हें इस साल अच्छी उपज मिली। कतरनी धान की रोपनी अगस्त में होती है। 15 अगस्त के बाद अच्छी बारिश हुई। जिनका बिचड़ा बच गया था, उन्होंने खेत में लगा दिया। छह सौ हेक्टेयर से अधिक में इस साल कतरनी धान की खेती हुई है।
चानन नदी से नहीं मिल रहा पानी
चानन नदी के किनारे के खेत में लगे कतरनी धान की खुशबू काफी अधिक होती है। यही कारण है कि जगदीशपुर के कतरनी चावल व चूड़ा की अधिक मांग है। लेकिन पिछले कई वर्षों से चानन नदी में पर्याप्त पानी नहीं आने की वजह से किसान खेती नहीं कर पा रहे हैं। नदी की गहराई अधिक होने और खेत ऊंचा होने की वजह से खेत तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है। यहां के किसान वर्षों से चेक डैम की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन मांगें पूरी नहीं हो पा रही हैं।
इधर, कतरनी चावल और चूड़ा की मांग काफी बढ़ जाने से सुल्तानगंज व शाहकुंड के किसान इसे अपनाने लगे हैं। सुल्तानगंज व शाहकुंड में इसका रकवा लगातार बढ़ रहा है। यहां के अधिकांश किसानों ने पटवन के लिए बोरिंग की व्यवस्था कर ली है।