धोखाधड़ी के आरोपी कारोबारी विजय माल्या के खिलाफ अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट आज अपना फैसला सुनाएगा. बता दें कि भगोड़े कारोबारी माल्या को कोर्ट पहले ही दोषी करार दे दिया.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय 9,000 करोड़ रुपये से अधिक के बैंक ऋण धोखाधड़ी के आरोपी एवं भगोड़े कारोबारी विजय माल्या के खिलाफ अदालत की अवमानना के मामले में सजा की अवधि पर 11 जुलाई को फैसला सुनाएगा. माल्या पर उनके किंगफिशर एयरलाइन से जुड़े 9,000 करोड़ रुपये के बैंक ऋण घोटाले में शामिल होने का आरोप है और अवमानना के मामले में उसे दोषी करार दिया गया है.

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई 11 जुलाई की वाद सूची के अनुसार, न्यायमूर्ति यू यू ललित की अगुवाई वाली पीठ आदेश सुनाएगी. न्यायमूर्ति ललित, न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा की पीठ ने इस मामले की सजा की अवधि तय करने संबंधी अपना फैसला 10 मार्च को सुरक्षित रख लिया था और टिप्पणी की थी कि माल्या के खिलाफ सुनवाई में अब कोई प्रगति नहीं हो सकती.

न्यायालय ने अवमानना कानून के विभिन्न पहलुओं पर वरिष्ठ अधिवक्ता एवं न्याय मित्र जयदीप गुप्ता की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. पीठ ने पूर्व में माल्या का प्रतिनिधित्व कर चुके वकील को इस मामले में 15 मार्च तक लिखित दलीलें पेश करने की अनुमति दी थी. बहरहाल, माल्या के वकील ने 10 मार्च को कहा था कि ब्रिटेन में रह रहे उनके मुवक्किल से कोई निर्देश नहीं मिल सका है इसलिए वह पंगु हैं और अवमानना के मामले में दी जाने वाली सजा की अवधि को लेकर उनका (माल्या का) पक्ष रख पाने में असहाय हैं.

पीठ ने कहा, ‘हमें बताया गया है कि (माल्या के खिलाफ) ब्रिटेन में कुछ मुकदमे चल रहे हैं.’ उसने कहा, ‘हमें नहीं पता, कितने मामले लंबित हैं. मुद्दा यह है कि जहां तक हमारे न्यायिक अधिकार क्षेत्र का प्रश्न है तो हम कब तक इस तरह चल पाएंगे.’ शीर्ष अदालत ने माल्या को दिये गये लंबे वक्त का हवाला देते हुए 10 फरवरी को सुनवाई की तारीख तय कर दी थी और भगोड़े कारोबारी को व्यक्तिगत तौर पर या अपने वकील के जरिये पेश होने का अंतिम मौका दिया था.

माल्या को अवमानना के लिए 2017 में दोषी ठहराया गया था और उनकी प्रस्तावित सजा के निर्धारण के लिए मामले को सूचीबद्ध किया जाना था. शीर्ष अदालत ने 2017 के फैसले पर पुनर्विचार के लिए माल्या की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका 2020 में खारिज कर दी थी. न्यायालय ने अदालती आदेशों को धता बताकर अपने बच्चों के खातों में चार करोड़ डॉलर भेजने को लेकर उन्हें अवमानना का दोषी माना था.

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