बिहार सरकार राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत और सुलभ बनाने के लिए लगातार कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी क्षेत्रों तक स्वास्थ्य सेवाओं में व्यापक सुधार की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय ने एक बड़ी घोषणा करते हुए बताया कि राज्य में आशा कार्यकर्ताओं और आशा फैसिलिटेटरों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की जाएगी। इसके तहत आगामी तीन महीनों के भीतर 27,375 नये आशा कार्यकर्ताओं और फैसिलिटेटरों की नियुक्ति की जाएगी।
स्वास्थ्य मंत्री के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में 21,009 और शहरी क्षेत्रों में 5,316 नई आशा कार्यकर्ताओं का चयन ग्राम सभाओं और नगर निकायों के माध्यम से किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, 1,050 आशा फैसिलिटेटरों की नियुक्ति की जाएगी, जो आशा कार्यकर्ताओं को मार्गदर्शन और निगरानी प्रदान करेंगी। यह पहल न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को बेहतर बनाएगी बल्कि महिलाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी प्रदान करेगी।
वर्तमान स्थिति और प्रगति
फिलहाल बिहार में 91,281 आशा कार्यकर्ता और 4,361 आशा फैसिलिटेटर कार्यरत हैं। इसके अलावा, 5,111 ममता कार्यकर्ता भी राज्य में सेवाएं दे रही हैं। इन कार्यकर्ताओं की निष्ठा और सक्रिय भूमिका के कारण राज्य में मातृ और शिशु स्वास्थ्य सेवाओं में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) और स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) के आंकड़े इस बदलाव को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। वर्ष 2005-06 में जहां केवल 18.7% गर्भवती महिलाओं ने प्रसव पूर्व जांच (एएनसी) करवाई थी, वहीं 2019-20 में यह आंकड़ा बढ़कर 52.9 प्रतिशत हो गया। एचएमआईएस के अनुसार वर्तमान में 77% महिलाएं प्रारंभिक एएनसी सेवाएं ले रही हैं, जबकि 85% महिलाएं चार बार एएनसी जांच करवा रही हैं। इसके अलावा, 97% महिलाएं गर्भावस्था के समय पर पंजीकरण करवा रही हैं।
संस्थागत प्रसव में वृद्धि
राज्य में संस्थागत प्रसव की दर भी उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है। एनएफएचएस-3 (2005-06) के अनुसार देश में संस्थागत प्रसव का प्रतिशत केवल 19.9% था। लेकिन 2019-20 में एनएफएचएस-5 के अनुसार यह आंकड़ा बढ़कर 76.2% तक पहुंच गया। यह उपलब्धि स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर पहुंच, जागरूकता अभियानों और आशा कार्यकर्ताओं की मेहनत का परिणाम है।
निष्कर्ष
बिहार सरकार की यह पहल न केवल स्वास्थ्य सेवा तंत्र को मजबूत करेगी, बल्कि राज्य में महिलाओं को सशक्त बनाने में भी सहायक सिद्ध होगी। आशा कार्यकर्ताओं की यह नई भर्ती राज्य के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को और अधिक प्रभावी और सुलभ बनाने में मील का पत्थर साबित हो सकती है।