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डॉक्टर को यूं ही धरती का भगवान नहीं कहा गया। लेकिन बदलते वक्त के साथ जब चिकित्सा सेवा एक व्यापार बनती जा रही है, गया के डॉक्टर संकेत नारायण सिंह ऐसे उदाहरण बनकर उभरे हैं, जो इस पेशे की असली गरिमा को आज भी जिंदा रखे हुए हैं। उनके लिए डॉक्टरी कोई पेशा नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम है – और यही कारण है कि वो बिना किसी शुल्क के जरूरतमंदों का इलाज करते हैं।

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**संघर्षों से भरी शुरुआत**
डॉ. संकेत नारायण सिंह का जन्म 1952 में बिहार के छपरा जिले के डुमरी गांव में हुआ था। उनके पिता यदुनंदन सिंह और मां अशरफी देवी एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते थे। बचपन में संकेत नारायण पूरी तरह स्वस्थ थे, लेकिन छह साल की उम्र में पोलियो की चपेट में आकर वो दोनों पैरों से दिव्यांग हो गए। उनके माता-पिता ने उन्हें ठीक कराने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली।

**शिक्षा और मां का सपना**
संकेत नारायण ने छपरा जिला स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा और जगदम कॉलेज से बीएससी किया। वो शिक्षक बनना चाहते थे, लेकिन मां की इच्छा थी कि बेटा डॉक्टर बने। मां की प्रेरणा से उन्होंने मगध मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया और तमाम संघर्षों को पार करते हुए एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की।

**दर्दनाक ठुकराया जाना**
डॉक्टर बनने के बाद जब उन्होंने खुद का क्लीनिक खोलना चाहा तो उनके पास पैसों की कमी थी। उन्होंने अपने पिता से मदद मांगी, लेकिन बड़े भाई ने उनकी दिव्यांगता का हवाला देकर आर्थिक मदद देने से मना कर दिया। इस घटना ने उन्हें तोड़ कर रख दिया। इसके बाद उन्होंने अस्पतालों में नौकरी के लिए कई प्रयास किए, लेकिन दिव्यांगता के चलते हर जगह अस्वीकृति ही मिली।

**समाज को जवाब देने का संकल्प**
इस लगातार मिल रही अस्वीकृति ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। तभी उन्होंने सोचा कि जब एक पढ़े-लिखे डॉक्टर को समाज और व्यवस्था अपनाने को तैयार नहीं है, तो फिर दूसरे दिव्यांगों की हालत क्या होगी? इसी सोच ने उन्हें मानव सेवा की ओर मोड़ दिया।

**सरकारी सेवा से इस्तीफा, समाज सेवा की राह**
1980 में उन्हें मगध मेडिकल कॉलेज में पहली नौकरी मिली, लेकिन अस्पताल की व्यवस्था से क्षुब्ध होकर एक साल बाद ही इस्तीफा दे दिया। माता-पिता ने उनसे वादा लिया कि वो जीवन भर असहायों, वृद्धों और गरीबों का नि:शुल्क इलाज करेंगे।

**1984 में शुरू हुआ सेवा का सफर**
1982 में उन्हें ईएसआई अस्पताल में मेडिकल ऑफिसर के पद पर नियुक्ति मिली, लेकिन वो भी लंबे समय तक वहां टिक नहीं पाए। अंततः 1984 में गया शहर में एक किराए के मकान में उन्होंने अपने क्लीनिक की शुरुआत की। यह क्लीनिक आज गरीबों की सेवा का प्रतीक बन चुका है।

**हर दिन 300 मरीजों का इलाज**
डॉ. संकेत नारायण सिंह हर दिन करीब 300 मरीजों को देखते हैं। इनमें से करीब 200 मरीजों से कोई फीस नहीं ली जाती, जबकि बाकी जरूरतमंदों को मुफ्त दवाएं और कई बार भोजन तक उपलब्ध कराया जाता है।

**फीस का अनोखा सिस्टम**
वो मरीजों से 10 रुपए या 100 रुपए की फीस लेते हैं। इस फीस को चार हिस्सों में बांटते हैं — तीन हिस्से समाज सेवा के लिए और एक हिस्सा खुद के लिए। उनका मानना है कि कमाई का असली उपयोग तब है, जब वह किसी जरूरतमंद के काम आए।

**पैसे से नहीं सेवा से जिंदा रहने की चाह**
डॉ. संकेत नारायण का मानना है कि इंसान शरीर से नहीं, अपने कर्मों से जिंदा रहता है। वो महात्मा गांधी, भगवान बुद्ध और मदर टेरेसा को अपना आदर्श मानते हैं। उनके माता-पिता ने उन्हें यह सिखाया कि सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।

**वृद्धाश्रम और अनाथालय का सपना**
भविष्य में वो गया में वृद्धाश्रम, अनाथालय, गुरुकुल पद्धति वाला विद्यालय और कुष्ठ रोगियों के लिए स्कूल खोलना चाहते हैं। उनका सपना है कि उनकी सेवा की विरासत आगे भी चलती रहे।

**मानवता का प्रतीक बन चुका है क्लीनिक**
डॉ. नारायण के क्लीनिक में रोज लगभग 70 मरीज दूर-दराज से आकर रुकते हैं। उनके खाने और रुकने की पूरी व्यवस्था वहीं होती है। डॉक्टर साहब खुद शाम 5 बजे से बैठते हैं और कई बार सुबह 5 बजे तक मरीजों को देखते रहते हैं।

**कर्मचारियों की लंबी सेवा**
क्लीनिक के स्टाफ में कई लोग ऐसे हैं जो पिछले 20 वर्षों से उनके साथ जुड़े हुए हैं। उनकी सैलरी बहुत अधिक नहीं है, लेकिन डॉ. नारायण की निष्ठा और सेवा भावना उन्हें बांधे रखती है।

**हर वर्ग को समान सेवा**
उनके यहां फौज, पुलिस, पत्रकार, पर्यटक और 75 वर्ष से ऊपर के लोगों से कोई फीस नहीं ली जाती। गायत्री मंत्र का जाप कर वह हर पर्ची लिखते हैं, जिससे एक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।

**कानपुर से आए मरीज ने सुनाई आपबीती**
हिमांशु नामक एक मरीज ने बताया कि वो कानपुर से इलाज के लिए आया था। कई जगह दिखाने के बाद भी ठीक नहीं हो पाया, लेकिन डॉक्टर नारायण की दवा से अब पूरी तरह ठीक हो गया है।

**गांव में भी करते हैं सेवा**
डॉ. नारायण अपने गांव डुमरी में भी सेवा करते हैं। वहां के करीब 100 वृद्धों और दिव्यांगों को पिछले 30 वर्षों से हर महीने 300 रुपए पेंशन देते हैं और उनका इलाज भी कराते हैं।

**निष्कर्ष**
डॉ. संकेत नारायण सिंह केवल एक डॉक्टर नहीं हैं, बल्कि एक आंदोलन हैं, एक प्रेरणा हैं और समाज सेवा की जीवित मिसाल हैं। उनके जैसे लोग ही इस बात का प्रमाण हैं कि सेवा और संवेदना अब भी ज़िंदा हैं। जब दुनिया मुनाफा कमाने में लगी है, तब डॉ. नारायण जैसे लोग साबित करते हैं कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।

 

 

 

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