पूर्व आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा ने जन सुराज पार्टी से अलग होकर बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। उन्होंने न सिर्फ पार्टी के कोर कमेटी और युवा प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, बल्कि भाजपा के प्रति अपनी निष्ठा भी खुलेआम जाहिर कर दी। उन्होंने कहा, *”मैंने नौकरी भी भाजपा की वजह से छोड़ी थी। मैं बचपन से बाल स्वयंसेवक हूं। मेरे डीएनए में भाजपा है। मैं तो यह भी कहना चाहूंगा कि मेरे खून का रंग भी गेरुआ है।”*

आनंद मिश्रा का यह बयान राजनीतिक संकेतों से भरा हुआ है और यह स्पष्ट करता है कि वे अपने राजनीतिक सफर में अब नई दिशा की ओर बढ़ रहे हैं। ईटीवी भारत से खास बातचीत में मिश्रा ने जन सुराज से अलग होने के पीछे की वजहें खुलकर साझा कीं।

उन्होंने बताया कि जब वे जन सुराज से जुड़े थे, तब यह एक आंदोलन था, न कि कोई राजनीतिक पार्टी। प्रशांत किशोर बिहार को बेहतर बनाने की सोच के साथ काम कर रहे थे और उसी सोच से प्रेरित होकर वे इस अभियान से जुड़े। लेकिन पार्टी बनने के बाद हालात बदल गए।

मिश्रा के अनुसार, जन सुराज में नेताओं की भूमिका सीमित हो गई। नीति निर्धारण में उनकी कोई भागीदारी नहीं थी। उन्होंने कहा, *”कोर कमेटी की बैठक होती है, लेकिन अगर आप लेट हो जाएं तो आपको कुर्सी तक नहीं मिलती, चाहे आप पदाधिकारी ही क्यों न हों।”* उन्होंने यह भी कहा कि जन सुराज में केवल एक नेता है, बाकी सभी सिर्फ फॉलोअर हैं।

प्रशांत किशोर के प्रति व्यक्तिगत सम्मान व्यक्त करते हुए मिश्रा ने उन्हें बड़ा भाई बताया और कहा कि उनकी सोच बिहार के हित में है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि किसी और की महत्वाकांक्षा के लिए वे ज्यादा समय तक साथ नहीं चल सकते थे, इसलिए अलग होने का फैसला किया।

राजनीति में उनके झुकाव को लेकर जब सवाल किया गया तो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा, *”पीएम मोदी आधुनिक भारत के शिल्पकार हैं। उन्होंने भारत को वैश्विक स्तर पर सम्मान दिलाया है।”*

आनंद मिश्रा ने ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन करते हुए कहा कि ऐसे मुद्दों पर देश को एकजुट रहना चाहिए और सरकार की आलोचना से बचना चाहिए, क्योंकि इससे देश की छवि पर असर पड़ता है और विरोधियों को मौका मिलता है।

अपने जीवन के टर्निंग प्वाइंट पर मिश्रा ने कहा कि मां के निधन ने उन्हें झकझोर दिया। *”मैं पुलिस की नौकरी में था, ऑपरेशन्स में व्यस्त था और अपनी मां की सेवा नहीं कर पाया। तब मुझे अहसास हुआ कि मेरी भूमिका सिर्फ नौकरी तक सीमित नहीं होनी चाहिए। देश और समाज के लिए कुछ बड़ा करना है, इसलिए मैंने इस्तीफा दे दिया।”*

बता दें कि आनंद मिश्रा तीन राज्यों में प्रशासनिक सेवाओं में रहे। 2005 से 2011 तक वे पश्चिम बंगाल सिविल सर्विस में एसडीएम रहे। 2011 में आईपीएस बने और 2017 तक मेघालय में सेवा दी। फिर 2017 से 2024 तक असम में कार्यरत रहे।

अपने सेवाकाल में उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया। 2016 में उन्हें राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार मिला, वहीं 2020 में मुख्यमंत्री उत्कृष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया।

अब सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि आनंद मिश्रा अगला राजनीतिक कदम क्या उठाते हैं। उनके भाजपा प्रेम के संकेत इस ओर इशारा कर रहे हैं कि जल्द ही वे saffron politics का हिस्सा बन सकते हैं।

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