डॉक्टरझोलाछाप डॉक्टर के कारण दोनों पैर गंवा चुकी महिला का ढाई साल के बाद भी नहीं बना दिव्यांगता प्रमाण पत्र.

 

जमुई, बिहार। एक गरीब महिला, जो चार साल पहले झोलाछाप डॉक्टर की लापरवाही का शिकार होकर दोनों पैर गंवा बैठी, आज ढाई साल से दिव्यांगता प्रमाण पत्र के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही है। यह मार्मिक कहानी है जमुई जिले के बरहट प्रखंड के फुलवरिया गांव की 25 वर्षीय पूजा कुमारी की, जो तीन बच्चों की मां हैं और दिल्ली में मजदूरी करने वाले अपने पति के सहारे किसी तरह घर चला रही हैं।

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झोलाछाप डॉक्टर के कारण दोनों पैर गंवा चुकी महिला का ढाई साल के बाद भी नहीं बना दिव्यांगता प्रमाण पत्र.

 

पूजा की ज़िंदगी उस वक्त पूरी तरह बदल गई जब चार साल पहले उसके पैर में मामूली घाव हुआ था। गांव के एक झोलाछाप डॉक्टर से इलाज कराना उसकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई। गलत इलाज की वजह से हालत इतनी बिगड़ी कि जान बचाने के लिए उसके दोनों पैर घुटनों के नीचे से काटने पड़े। इस कठिन घड़ी में पूजा के परिवार ने डेढ़ लाख रुपये का कर्ज लेकर उसकी सर्जरी करवाई, जिससे उसकी जान तो बच गई, लेकिन वह हमेशा के लिए अपंग हो गई।

बावजूद इसके, पूजा ने हार नहीं मानी। जीविका समूह की मदद से उसने आर्टिफिशियल पैर लगवाए और अपने घर में एक छोटी सी दुकान शुरू की। इसी से वह अपने बच्चों की परवरिश कर रही है। लेकिन सरकारी सहायता के बिना उसका जीवन आज भी संघर्षों से भरा हुआ है।

सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए उसे दिव्यांगता प्रमाण पत्र की आवश्यकता है। पूजा ने बताया कि उसने पहली बार 19 नवंबर 2022 को आवेदन किया था। इसके बाद दो बार और आवेदन किया, लेकिन आज तक उसका प्रमाण पत्र नहीं बन सका। वह कई बार जमुई के सिविल सर्जन कार्यालय गई, लेकिन हर बार उसे निराशा हाथ लगी।

पूजा का आरोप है कि स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही की वजह से उसे कोई भी सरकारी लाभ नहीं मिल पा रहा है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सिविल सर्जन का कहना है कि उनके पास इस तरह का कोई मामला नहीं आया है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि ऐसी कोई जानकारी मिलती है, तो स्वास्थ्य कर्मियों की टीम भेजकर महिला का प्रमाण पत्र बनवाया जाएगा।

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झोलाछाप डॉक्टर के कारण दोनों पैर गंवा चुकी महिला का ढाई साल के बाद भी नहीं बना दिव्यांगता प्रमाण पत्र.

 

पूजा की यह लड़ाई सिर्फ उसके अधिकारों के लिए नहीं, बल्कि एक व्यवस्था की उदासीनता के खिलाफ है, जो उन लोगों को भी नजरअंदाज कर देती है जो पहले ही समाज की मुख्यधारा से कट चुके होते हैं। जब कोई महिला दोनों पैर खोकर भी हिम्मत न हारते हुए अपने बच्चों का पेट पाल रही हो, तो क्या उसे सरकारी सहायता नहीं मिलनी चाहिए?

पूजा जैसी महिलाओं के लिए अगर सिस्टम जागरूक न हो, तो यह सवाल व्यवस्था की संवेदनशीलता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। यह जरूरी है कि जमुई जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इस मामले में शीघ्र संज्ञान लें और पूजा कुमारी को उसका हक दिलवाएं।

सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हीं जरूरतमंदों तक पहुंचे, जिनके लिए ये योजनाएं बनाई गई हैं—यह सुनिश्चित करना हर अधिकारी और जनप्रतिनिधि की जिम्मेदारी है। पूजा कुमारी की कहानी उन हजारों दिव्यांगों की आवाज है, जो सिस्टम की चुप्पी में खो गई है।

 

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