गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पाटीदार समुदाय के नेता हार्दिक पटेल ने कांग्रेस छोड़ दिया है. हार्दिक ने कांग्रेस पर कई आरोप लगाए हैं और नेतृत्व पर भी सवाल खड़े किए हैं. तीन साल पहले कांग्रेस में शामिल होने वाले हार्दिक ने आखिर क्यों पार्टी को अलविदा कहा और अब उनके जाने से गुजरात में क्या सियासी असर पड़ेगा?
कांग्रेस उदयपुर चिंतन शिविर में खुद को चुनौतियों के चक्रव्यूह से निकालने के लिए कई अहम बदलावों को लागू करने की घोषणा की थी, जिसमें युवाओं को खास तवज्जो देने का भी प्रस्ताव शामिल हैं. इसके बाद भी कांग्रेस नेताओं में अभी भरोसा पैदा होता नहीं दिख रहा है, जिसका ताजा प्रमाण गुजरात के युवा नेता हार्दिक पटेल का कांग्रेस को छोड़ना है. हार्दिक अपने त्यागपत्र में कांग्रेस पर कई आरोप लगाए हैं और शीर्ष नेतृत्व पर भी सवाल खड़े किए हैं.
गुजरात में साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन सियासी सरगर्मिया तेज हैं और राजनीतिक दल अपने-अपने समीकरण बैठाने में जुटे हैं. ऐसे में सूबे की चुनावी तपिश के बीच पाटीदार समुदाय के प्रमुख नेता हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया है. गुजरात के सामाजिक समीकरण के लिहाज से हार्दिक का कांग्रेस छोड़ना बीजेपी के लिए बड़ा विकेट है, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर हार्दिक पटेल ने क्यों पार्टी छोड़ी और उनके जाने से पार्टी को किस तरह का नुकसान उठाना पड़ेगा?
हार्दिक पटेल की नाराजगी की वजह
पाटीदार आरक्षण आंदोलन से अपनी पहचान बनाने वाले हार्दिक पटेल काफी समय से कांग्रेस से नाराज चल रहे थे. हार्दिक ने साल 2019 में कांग्रेस पार्टी का दामन थामा और फिर 2020 में प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष बन गए थे. पहली नाराजगी इस बात को लेकर थी कि वह पिछले दो साल से कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष हैं लेकिन उन्हें न कोई जिम्मेदारी दी जा रही है और न ही कोई राय मशवरा किया जाता है. गुजरात कांग्रेस के महत्वपूर्ण फैसलों में उन्हें शामिल नहीं किया गया. गुजरात कांग्रेस में महासचिव और उपाध्यक्ष, जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के दौरान भी हार्दिक की राय नहीं ली गई. हार्दिक ने अपने साथ जिन नेताओं को लेकर कांग्रेस में आए थे, उन्हें भी खास तवज्जो नहीं मिली.
हार्दिक की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जगजाहिर है. ऐसे में हार्दिक इस बात को लेकर भी नाराज चल रहे थे कि वो जिस कद के नेता है, उन्हें गुजरात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उस तरह की सियासी अहमियत नहीं मिल रही थी. हार्दिक ने यह बात खुद कहा था कि गुजरात कांग्रेस पुराने नेता उन्हें आगे नहीं बढ़ने दे रहे थे और न ही पार्टी के किसी कार्यक्रम में उन्हें बुलाया जाता था. गुजरात कांग्रेस के किसी भी पोस्टर में उन्हे जगह नहीं दी जाती. गुजरात कांग्रेस के प्रभारी डॉ. रघु शर्मा से भी हार्दिक पटेल के संबंध सहज नहीं थे, जिसके चलते वो खुद को पार्टी अकेला महसूस करने लगे थे. इसके अलावा हार्दिक पटेल पाटीदार समुदाय के नेता नरेश पटेल के कांग्रेस में एंट्री की बातों से असहज महसूस कर रहे थे.
हार्दिक ने अपनी पीड़ा दिल्ली आकर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के सामने भी भी रखी थी. हार्दिक ने कहा था कि राहुल गांधी और शीर्ष नेतृत्व को भी मेरी समस्या पता है, फिर भी कोई समाधान नहीं हो रहा है. हार्दिक का कांग्रेस छोड़ने की एक बड़ी वजह यह भी थी कि जिस शीर्ष नेतृत्व के दम पर वह अपना कद स्थापित करना चाहते थे, उससे ही निराश थे. ऐसे में कांग्रेस छोड़ने के बाद हार्दिक ने शीर्ष नेतृत्व को लेकर खुलकर सवाल खड़ा किए और असंतोष व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व बर्ताव का गुजरातियों के साथ नफरत वाला है.
वहीं, पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान हार्दिक पटेल पर 17 एफआईआर दर्ज हुए थे. एक मामले में बरी हो गए हैं जबकि एक अन्य मामले को वापस लेने के लिए कोर्ट ने इजाजत दे दी है. बीजेपी सरकार ने मुकदमें वापस लेने का कदम उठाकर हार्दिक को साधने का बड़ा दांव चला. हार्दिक ने अपने इस्तीफे में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की लाइन खींचकर अपने भविष्य की सियासी राह तय कर दी है.
हार्दिक के छोड़ने से कांग्रेस को नफा-नुकसान
हार्दिक पटेल ने पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर बीजेपी को गुजरात में हिला दिया था. 2017 चुनाव में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा था और खासकर पाटीदार वोटों के बीच कांग्रेस ने सेंधमारी की थी. कांग्रेस के 20 पाटीदार समाज के विधायक जीतकर आए थे. पाटीदार बहुल सौराष्ट्र की इन 54 सीटों पर 2017 के चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से जबरदस्त टक्कर मिली थी. पाटीदार आंदोलन की वजह से कांग्रेस ने सौराष्ट्र की 54 में से 30 सीटों पर जीत मिली थी जबकि बीजेपी को 23 सीट मिली थी.
गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हार्दिक पटेल के कांग्रेस छोड़ने से पार्टी का मनोबल पर असर पड़ेगा और पाटीदार वोटों का खिसकने का खतरा तो बन ही गया है. राज्य में पाटीदार वोट बीजेपी का कोर वोटबैंक माना जाता है और हार्दिक के जाने के बाद कांग्रेस में फिलहाल कोई बड़ा पाटीदार नेता नहीं बचा है. ऐसे में पाटीदार वोट बंटने का डर बीजेपी को था, हार्दिक के कांग्रेस छोड़ने के बाद राहत मिली है.
हालांकि, पाटीदार नेता नरेश पटेल के कांग्रेस में लिए जाने की चर्चा चल रही है, लेकिन अभी तक एंट्री नहीं हो पाई है. नरेश पटेल अगर कांग्रेस में शामिल होते हैं तो हार्दिक के पार्टी में जाने की कमी की भरपाई हो जाएगी. कांग्रेस कितना भरपाई कर पाएगी यह तो वक्त ही बताएगा?
2017 में कांग्रेस ने जिन तीन नेताओं के सहारे गुजरात में बीजेपी को 100 सीटों के नीचे लाकर खड़ा कर दिया था, उसमें से हार्दिक और अल्पेश ठाकोर पार्टी छोड़ चुके हैं और सिर्फ जिग्नेश मेवाणी ही बचे हैं. गुजरात में बीजेपी को घेरने के लिए इस बार कोई बड़ा चुनावी मुद्दा नहीं है. 2017 के चुनाव में पटेल आरक्षण और ऊना में दलितों के पिटाई सियासी मुद्दा बन गया था. गुजरात कांग्रेस में सबसे बड़ी समस्या लीडरशिप क्राइसिस की है. ऐसे में हार्दिक के पार्टी छोड़ने से एक और भी बड़ा झटका लगा.
हार्दिक पटेल के सियासत में कदम रखने के बाद पाटीदारों के बीच उनकी लोकप्रियता कम हुई है. हार्दिक ने यह बात खुद कही थी कि राजनेता बनने के बाद समाज के साथ उनका संवाद कम हुआ है. हार्दिक अभी तक कांग्रेस को कई फायदा नहीं दिला सके. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली और फिर निकाय व पंचायत चुनाव में भी मात खानी पड़ी. निकाय चुनाव में पाटीदार समुदाय के बीच कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन आम आदमी पार्टी ने किया है. कांग्रेस भी यह बात भी समझ रही थी, जिसके चलते पार्टी ने उन्हें बहुत ज्यादा अहमियत देने के मूड में नहीं थी.
हार्दिक के जाने से कांग्रेस को किस तरह का सियासी नुकसान उठाना पड़ेगा यह तो 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद ही पता चलेगा. हालांकि, कांग्रेस के सियासी एजेंडे में इस बार पार्टी का परंपरागत वोट है, जिसमें ओबीसी, ठाकोर, आदिवासी और दलित शामिल है जबकि पाटीदार वोटों को लेकर किसी तरह की कोई सक्रियता नहीं दिखा रही.
2019 में लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस ने इसी फॉर्मूले के तहत प्रदेश अध्यक्ष जगदीश ठाकोर को बनाया, जो ओबीसी नेता हैं. विधानसभा में कांग्रेस दल का नेता सुखराम राठवा को बनाया जो आदिवासी नेता माने जाते हैं. गुजरात में 15 फीसदी आदिवासी वोट है. जिग्नेश मेवाणी को पार्टी में लिया है, जो दलित हैं. कांग्रेस को मालूम है कि राज्य के मुसलमान उनके साथ ही हैं. कांग्रेस अपने इसी फॉर्मूले में पटेलों को जोड़ना चाहती है, लेकिन इसके लिए हार्दिक पटेल को पार्टी के साथ जोड़े रखने के लिए कांग्रेस किसी तरह की मशक्कत करती नहीं दिखी.