कहते हैं कि अगर इरादे पक्के हों तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है. बस उसके लिए उतनी ही मेहनत करने की भी जरूरत है. आज हम आपको ऐसी ही स्टोरी बताने जा रहे हैं कि कैसे एक दर्जी का बेटा आईएएस अफसर बन गया.
आईएएस निरीश राजपूत के पिता एक दर्जी थे. मध्य प्रदेश के भिंड जिले का एक गरीब नौजवान था, जिसने सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के लिए बड़ी बाधाओं को पार किया. उन्होंने साबित कर दिया कि गरीबी सफलता में बाधक नहीं है.
वे सिविल सेवाओं के पिछले तीन प्रयासों में असफल रहे, लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी. चौथी बार, वह 370 रैंक के साथ पास हुए. वह जिले की गोहद तहसील के मऊ गांव में एक छोटे से घर में रहते थे और एक सरकारी कर्मचारी बनने के अपने सपने को साकार करने के लिए एक न्यूज पेपर बांटने के भी छोटे-मोटे काम करते थे.
वह नहीं जानते थे कि आईएएस अधिकारी कैसे बनते हैं, लेकिन वह जानते थे कि देश की टॉप परीक्षा पास करने से उनकी तकदीर बदल सकती है. उन्हें विश्वास था कि अगर किसी के पास दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत करने की इच्छा है तो गरीबी किसी के लिए बाधा नहीं बन सकती है.
दिल्ली में एक दोस्त के घर जाने पर उन्हें उधार के नोट्स मिले. कोचिंग के लिए पैसे नहीं होने के कारण निरीश खुद पढ़ाई करते रहे. वह तीन बार असफल रहे, लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति और अपने पक्ष में और कुछ नहीं होने के कारण, उन्होंने फाइनली ऑल इंडिया रैंक 370 के साथ यूपीएससी सीएसई परीक्षा क्लियर की.
उन्होंने ग्वालियर के एक सरकारी स्कूल और एक कॉलेज में पढ़ाई की. उनके दो बड़े भाई संविदा पर शिक्षक हैं, उन्होंने निरीश के सपने को साकार करने के लिए अपनी अधिकांश बचत और ऊर्जा का निवेश करना शुरू कर दिया. उन्होंने यह भी साबित कर दिया है कि केवल पब्लिक स्कूलों के स्टूडेंट्स ही इन परीक्षाओं में अच्छा कर सकते हैं, यह एक मिथक है.