बिहार के शिवहर जिले के दाऊद छपरा गांव में एक अनोखी और ऐतिहासिक बारात देखने को मिली, जिसने न केवल गांव वालों का ध्यान खींचा बल्कि पूरे जिले में चर्चा का विषय बन गई। मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के आर्ट डिपार्टमेंट में कार्यरत प्रदूमन शर्मा ने अपनी शादी को पारंपरिक भारतीय रंग में रंगते हुए एक मिसाल कायम कर दी। उन्होंने अपनी दुल्हन रानी को लेने के लिए उस माध्यम को चुना, जो कभी शादियों का गौरव होता था — पालकी

परंपराओं की ओर लौटता कदम

दाऊद छपरा गांव से शुरू हुई यह बारात एक सप्ताह से चर्चा में थी। तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़ी गई थी। दूल्हा प्रदूमन ने पहले ही दुल्हन पक्ष को सूचित कर दिया था कि उनकी बारात पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ निकाली जाएगी। जब बारात निकली, तो पीले कपड़े की छतरी से सजी पालकी, पारंपरिक लाल धनगर पालकी में बैठे दूल्हा प्रदूमन और उसके साथ चल रहे लोक कलाकारों ने एक ऐसा दृश्य रच दिया जिसे देखने के लिए लोग सड़कों पर उमड़ पड़े।

लोक संस्कृति का जीवंत प्रदर्शन

बैंडबाजे की जगह इस बारात में फर्री नृत्य करते लोक कलाकारों की टोली ने समा बांध दिया। गांव के बुजुर्ग खास तौर पर काली माई और बरम बाबा के स्थान पर ‘परछावन’ की रस्म देखने पहुंचे। यह रस्म करीब एक घंटे तक चली और गांव की गलियों में पुराने समय की झलक फिर से जीवंत हो उठी। बच्चे इस अनोखे दृश्य को कौतूहल से निहारते रहे, जबकि बुजुर्गों ने इसे संस्कृति की पुनर्स्थापना का एक शुभ संकेत माना।

दूल्हे का सपना हुआ साकार

प्रदूमन शर्मा का यह सपना बचपन से ही था कि वे अपनी शादी को पारंपरिक रूप में मनाएं। उन्होंने बताया, “मैं चाहता था कि मैं पालकी पर बैठकर दुल्हन को लाने जाऊं और भारतीय सभ्यता-संस्कृति को उजागर करूं। मेरी दुल्हन का नाम रानी है, और यह मेरा सपना था कि मैं उसे राजा की तरह पालकी में लेने जाऊं।” उन्होंने मुस्कराते हुए यह भी कहा, “मैं चाहता हूं कि युवा पीढ़ी भी भारतीय परंपराओं को अपनाए और आधुनिकता के साथ-साथ अपनी जड़ों से भी जुड़ी रहे।”

बारात की यादगार यात्रा

22 किलोमीटर दूर पकड़ी बाजार तक जाने वाली इस बारात के लिए सुबह से ही रिश्तेदार और गांव के लोग इकट्ठा होने लगे थे। शाम होते-होते जब पालकी के साथ बारात दाऊद छपरा से निकली तो पूरे रास्ते पर लोग दूल्हे को देखने के लिए खड़े हो गए। शिवहर जीरोमाइल पर रुकने के बाद प्रदूमन पालकी से उतरकर एक चारचक्का वाहन में सवार हुए और दुल्हन को लाने पकड़ी बाजार की ओर रवाना हो गए।

पिता का गर्व, गांव का साथ

प्रदूमन के पिता वृज भूषण शर्मा ने गर्व से कहा, “यह सपना वर्षों पुराना है, जिसे आज मेरे बेटे ने साकार किया। गांव वालों और परिवार के सहयोग से यह संभव हो पाया।” उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे भी अपनी परंपराओं को जिंदा रखें और शादी जैसे महत्वपूर्ण अवसरों को सांस्कृतिक रूप दें।

संस्कृति का संदेश

इस अनोखी बारात ने न केवल प्रदूमन और रानी की शादी को यादगार बना दिया, बल्कि यह भी दिखा दिया कि परंपराएं आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। शिवहर जिले में यह बारात एक चर्चा का विषय बन गई है। हर उम्र के लोग इस पारंपरिक अंदाज से प्रभावित हुए हैं। लोगों ने इसे भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने वाला कदम बताया है।

निष्कर्ष

आज के समय में जब अधिकतर शादियां केवल दिखावे और आधुनिकता की दौड़ में अपनी संस्कृति को पीछे छोड़ देती हैं, ऐसे में प्रदूमन शर्मा का यह कदम एक प्रेरणा है। यह साबित करता है कि अगर दिल से चाहें तो आधुनिकता और परंपरा का संगम भी संभव है। उनकी यह पहल आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास है। पालकी में निकली यह बारात सचमुच एक ऐतिहासिक पल बन गई, जिसे शिवहर जिला वर्षों तक याद रखेगा।

 

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