भागलपुर जिले के सन्हौला थाना क्षेत्र से एक बेहद चौंकाने वाला और पीड़ादायक मामला सामने आया है, जिसमें दो महिलाओं को अपनी पुश्तैनी ज़मीन की रक्षा के लिए लगातार सरकारी दफ्तरों और प्रशासनिक अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। मामला सन्हौला थाना अंतर्गत पोठिया गांव के वार्ड संख्या आठ का है, जहां पीड़ित महिलाओं का आरोप है कि कुछ दबंग लोग उनकी ज़मीन पर जबरन कब्जा करना चाह रहे हैं और इस पूरी साज़िश में स्थानीय प्रशासन के कुछ अधिकारी भी मिले हुए हैं।
पीड़ित महिलाओं के अनुसार, उन्होंने कई बार जिला प्रशासन, अंचल कार्यालय और पुलिस से शिकायत की, लेकिन उन्हें अब तक कोई ठोस सहायता नहीं मिली है। महिलाओं का कहना है कि उनका मामला फिलहाल कोर्ट में विचाराधीन है, फिर भी सन्हौला अंचल के अधिकारी और अमीन ने दबंगों के पक्ष में एकतरफा और झूठी रिपोर्ट तैयार कर उच्च अधिकारियों को सौंप दी है। इससे न केवल उनका पक्ष कमजोर हुआ है बल्कि उनकी मानसिक स्थिति पर भी बुरा असर पड़ा है।
महिलाओं ने बताया कि बार-बार अंचलाधिकारी की ओर से उनके घर पर मकान तोड़ने का नोटिस भेजा जा रहा है। उनका आरोप है कि प्रशासनिक दबाव बनाकर उन्हें उस ज़मीन से बेदखल करने की कोशिश हो रही है, जिस पर उनका पुश्तैनी हक है। “हमने अदालत में केस दायर कर रखा है और हम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं। लेकिन अधिकारी दबंगों के साथ मिलकर जबरदस्ती कर रहे हैं। अगर न्याय नहीं मिला, तो हम जाएं तो जाएं कहां?” – पीड़ित महिला ने रोते हुए यह बात कही।
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए अब सवाल यह उठ रहा है कि जब एक आम नागरिक को अपनी ही जमीन बचाने के लिए न्यायपालिका से लेकर प्रशासन तक की देहरी पर बार-बार गुहार लगानी पड़े, तो फिर कानून का असली उद्देश्य क्या है? यह मामला बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में दबंगई, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक मिलीभगत की एक और तस्वीर उजागर करता है।
महिलाएं बताती हैं कि उनके पास ज़मीन से संबंधित सभी वैध दस्तावेज मौजूद हैं। बावजूद इसके, कुछ प्रभावशाली लोगों ने प्रशासन पर दबाव डालकर अमीन की रिपोर्ट को अपने पक्ष में करवाया है। अब उनके मकान को अवैध बताते हुए तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। यह न सिर्फ कानून की अवहेलना है, बल्कि महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का भी खुला उल्लंघन है।
इस पूरी घटना ने जिला प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। आखिर क्यों अदालत में मामला लंबित रहने के बावजूद प्रशासनिक अधिकारी पक्षपातपूर्ण कार्रवाई कर रहे हैं? क्यों पीड़ितों की बातों को अनसुना किया जा रहा है? क्या प्रशासन दबंगों के दबाव में आकर काम कर रहा है या फिर यह एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है?
इस मुद्दे पर सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय ग्रामीणों ने भी प्रशासन की कार्यप्रणाली पर नाराज़गी जताई है। उनका कहना है कि यदि पीड़ितों को न्याय नहीं मिला, तो वे आंदोलन करेंगे और इस मामले को मुख्यमंत्री तक पहुंचाएंगे। वहीं, महिलाएं अब जिला कलेक्टर और डीएम से न्याय की गुहार लगा रही हैं और उम्मीद कर रही हैं कि उन्हें जल्द से जल्द इंसाफ मिलेगा।
भागलपुर जैसे संवेदनशील जिले में इस तरह के मामलों का सामने आना, जहां महिलाओं को अपनी पुश्तैनी संपत्ति की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़े, यह प्रशासनिक तंत्र की नाकामी का प्रमाण है। यदि समय रहते उचित कार्रवाई नहीं की गई, तो यह मामला कानून व्यवस्था की विश्वसनीयता पर गहरा प्रश्नचिन्ह बन सकता है।
फिलहाल पीड़ित महिलाएं प्रशासनिक मदद की उम्मीद में हैं। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेकर निष्पक्ष जांच कराता है या फिर यह भी अन्य मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा।
