भागलपुर जिला के जगदीशपुर प्रखंड अंतर्गत बैजानी गांव में आस्था और श्रद्धा का अनूठा संगम देखने को मिला, जहां बेहरी पूजा बड़े धूमधाम और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाई गई। यह पूजा लगभग दो सौ वर्षों से इस गांव में आयोजित होती आ रही है और यह न केवल गांव वालों के लिए, बल्कि आस-पास के क्षेत्रों के श्रद्धालुओं के लिए भी आस्था का केंद्र बन चुकी है।

इस पर्व के इतिहास के बारे में जानकारी देते हुए गांव के निवासी श्री राजीव नंदन झा ने बताया कि यह पूजा उनके पूर्वज स्वर्गीय पंडित त्रिलोकी नाथ झा द्वारा प्रारंभ की गई थी। उन्होंने बताया कि लगभग दो सौ वर्ष पूर्व गांव में आई एक भीषण बाढ़ के दौरान एक श्रृंगार किया हुआ पाकड़ वृक्ष नदी के किनारे पहुंचा। उसी रात स्वर्गीय त्रिलोकी नाथ झा को एक सपना आया जिसमें उस वृक्ष ने स्वयं को स्थान देने की प्रार्थना की। सपने में यह भी संकेत मिला कि जो भी सच्चे मन से इस वृक्ष की पूजा करेगा और मन्नत मांगेगा, उसकी मनोकामना पूरी होगी।

इस दिव्य संकेत को पाकर पंडित त्रिलोकी नाथ झा ने उस वृक्ष को अपने खेत में लाकर स्थापित किया और एक छोटा सा मंदिर बनवाकर नियमित पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी। उस समय वे संतान प्राप्ति की इच्छा रखते थे, जो बाद में मां काली की कृपा से पूरी हुई। इस चमत्कार को देखने के बाद गांव के लोगों में भी श्रद्धा जागृत हुई और सभी ने तन, मन, धन से पूजा में भाग लेना शुरू किया।

बेहरी पूजा हर वर्ष चैत्र मास की रामनवमी के बाद आने वाले मंगलवार या शनिवार को आयोजित की जाती है। पूजा की शुरुआत मैया के श्रृंगार से होती है, उसके बाद ध्वजारोहण, फुलाइस, चंडी पाठ, बली प्रदान, हवन और आरती की जाती है। इसके पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और कन्या पूजन भी किया जाता है।

इस वर्ष भी सैकड़ों श्रद्धालुओं और ग्रामीणों की उपस्थिति में यह पर्व श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। गांव के साथ-साथ बाहर से आए श्रद्धालुओं ने भी मन्नतें मांगी और विश्वास जताया कि यहां की पूजा से उनकी इच्छाएं अवश्य पूर्ण होती हैं।

इस आयोजन ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि सच्ची आस्था और परंपरा समय के साथ और भी मजबूत होती है। बैजानी गांव की यह परंपरा न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक बन चुकी है।

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