अंगदेश की धरती एक बार फिर साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में अपनी पहचान दर्ज करा रही है। अंगिका भाषा और भारतीय संस्कृति को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित करने वाले स्वर्गीय **आचार्य परशुराम ठाकुर ब्रह्मवादी** को वर्ष 2025 में एक साथ दो राष्ट्रीय पुरस्कारों से अलंकृत किया गया है —

**“राष्ट्रीय गौरव पुरस्कार 2025”** तथा **“रवीन्द्र रत्न पुरस्कार 2025”**।

 

स्वर्गीय आचार्य परशुराम ठाकुर ब्रह्मवादी अंगिका भाषा के उस महान चिंतक और साहित्यकार रहे हैं, जिन्होंने अपने जीवन के पाँच दशकों तक भारतीय दर्शन, आर्य संस्कृति और अंगिका भाषा के संवर्धन में निस्वार्थ भाव से योगदान दिया। उन्होंने अपने गहन शोध और सृजनशीलता के माध्यम से अनेक मूल्यवान ग्रंथों की रचना की, जो आज भारतीय साहित्य और संस्कृति की धरोहर माने जाते हैं।

 

उनके योगदान से **अंगदेश** की सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नई ऊँचाई प्राप्त हुई। उनके द्वारा अंगिका भाषा पर किए गए अध्ययन ने इस क्षेत्र की बोली को शुद्ध, समृद्ध और सम्मानजनक स्थान दिलाया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि अंगिका केवल भाषा नहीं, बल्कि भारतीयता की आत्मा का एक सशक्त माध्यम है।

 

इन दोनों पुरस्कारों के माध्यम से आचार्य ब्रह्मवादी को साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में उनके **अद्वितीय योगदान** के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है। यह सम्मान न केवल एक व्यक्ति की उपलब्धि है, बल्कि अंगदेश और पूरे बिहार के लिए गौरव की बात है।

 

भागलपुर के नागरिकों तथा साहित्यिक जगत के विद्वानों ने इस सम्मान को अंगदेश की **ऐतिहासिक उपलब्धि** बताया है। उनके अनुसार, यह सम्मान आने वाली पीढ़ियों को अपनी भाषा, संस्कृति और परंपराओं के प्रति गर्व करने की प्रेरणा देगा।

 

आचार्य परशुराम ठाकुर ब्रह्मवादी के पुत्र **शील सिंधु शिव** ने इस अवसर पर भावुक होते हुए कहा —

 

> “यह सम्मान केवल मेरे पिता जी की साधना का प्रतिफल नहीं है, बल्कि पूरे अंगदेश की अस्मिता और भाषा गौरव का प्रतीक है।”

 

उन्होंने आगे कहा कि पिता जी का पूरा जीवन भारतीय संस्कृति के आदर्शों को स्थापित करने में बीता। उन्होंने अंगिका भाषा को जनभाषा से ज्ञानभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का जो प्रयास किया, वह अब फलीभूत हो रहा है।

 

साहित्यिक मंचों पर आचार्य ब्रह्मवादी को “अंगिका आंदोलन के पुरोधा” के रूप में भी जाना जाता है। उनके लेखन में भारतीय दर्शन, लोकसंस्कृति और मानवता का गहरा समावेश देखने को मिलता है।

 

राष्ट्रीय स्तर पर यह सम्मान समारोह दिल्ली के भारतीय कला परिषद में आयोजित हुआ, जहाँ देशभर के साहित्यकारों, विद्वानों और विचारकों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

 

यह सम्मान अंगिका भाषा के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ है। इससे न केवल भाषा के गौरव को बल मिला है, बल्कि अंगदेश की संस्कृति को भी एक नई पहचान प्राप्त हुई है।

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