भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूब चुका मोतिहारी जिला प्रशासन में होनेवाली गड़बड़ियों पर कार्रवाई को लेकर कितनी गंभीर है, यह यहां के शिक्षा विभाग को काम को देखकर समझा जा सकता है। मोतिहारी शिक्षा विभाग की लचर व्यवस्था का आलम यह है कि मासूम बच्चों की खिलौना की राशि हड़पने वाले छह महीने बाद भी पकड़ से दूर हैं।
मामला पिछले साल का बताया जा रहा है. जब अगस्त में पहली बार इस घोटाले का खुलासा हुआ था। बताया गया विद्यालय परिसर में संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों के सशक्तिकरण व खुशनुमा माहौल बनाने के लिए जिला प्राथमिक शिक्षा द्वारा चयनित विद्यालयों में 30-30 हजार रू को दिया गया था. लेकिन नियम को ताक पर रखकर बिना सीडीपीओ कार्यालय से सम्पर्क किये विद्यालय के एचएम से राशि निकलवाकर जिला प्राथमिक शिक्षा एवम समग्र विभाग द्वारा बंदरबाट कर लिया गया।
मामले में हुए हंगामे के बाद प्रशासन की तरफ से घोटाले की जांच के लिए कमेटी गठित की गई थी। लेकिन जैसा कि हर जांच कमेटी के साथ होता है, यह कमेटी भी सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गई।छह माह बीतने के बाद भी 89 विद्यालय का जांच कार्य पूरा नही किया जा सका। यहां के आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों को दिए जाने वाले खिलौने सहित सामग्री की गड़बड़ी की जांच छह माह बाद भी पूरी नहीं हो सकी।
जांच में हो रही देरी के बाद अब लोगों में चर्चा शुरू हो गई है कि गड़बड़ी करने वाले को वरीय पदाधिकारी का आशीर्वाद तो नहीं । आखिर लाखो की गड़बड़ी करने वाले को बचाने के लिए तो जांच का फाइल दबा तो नही दिया गया। जब विद्यालय में आंगनबाड़ी केंद्र चल ही नही रहा था तो उस विद्यालय में कैसे राशि भेजकर बंदरबाट कर लिया गया।
मीडिया में खबर आने के बाद डीपीओ द्वारा सूची में अंकित दो विद्यालयों की जांच की गयी। जांच में दोनों में किसी विद्यालय में आंगनबाड़ी केंद्र नही चलना पाया गया। वहीं एक विद्यालय में जो सामान उपलब्ध था, वह ना तो गुणवत्तापूर्ण था, ना ही सूची के अनुसार था। उसके बाद डीपीओ द्वारा जांच के लिए तीन सदस्यीय टीम का गठन किया गया, लेकिन छह माह बीतने के बाद भी जांच टीम द्वारा जांच पूरा नही करना कई सवालों को जन्म दे रहा है।
सूत्रों की माने तो जांच में विलंब होने से सप्लायर द्वारा स्कूलों में कम सामान को पूरा करने में जुटे है। आखिर जिस स्कूल में आंगनबाड़ी केंद्र चलते ही नहीं है, उस स्कूल में 30 -30 हजार की राशि किसके इशारे पर भेजी गई?
इसके अलावा भी कई अन्य सवाल है, जो पूछा जाना लाजिमी हैं। बिना सीडीपीओ के जनकारी के समान की खरीदारी कैसे की गई? आखिर किसके दबाव में शिक्षा समिति के खाते से चेक सप्लायर के नाम से काट दिया गया? स्कूल एचएम पर दबाव बनाने वाले दबंग दो सप्लायर कौन है? जिसके इशारे पर कार्यालय का कार्य चलता है? इस खिलौना के खेल में डीपीओ कार्यालय से लेकर बीआरसी कार्यालय तक जुड़े है? आखिर जिस विद्यालय में आंगनबाड़ी केंद्र चलते थे उस विद्यालय में राशि नही भेजकर आंगनबाड़ी केंद्र नही चलने वाले विद्यालय में कैसे राशि भेजी गई?
विभागीय पत्र के अनुसार जिला के 89 विद्यालयों में आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों के खिलौना, अलमारी, दीवार लेखन के लिए 30-30 हजार की राशि भेजी गई, लेकिन सूची में अंकित अधिकांस विद्यालय में आंगनबाड़ी केंद्र चलता ही नही है। जिला के कोटवा, पहाडपुर, चकिया, अरेराज सहित सभी प्रखंडो के सीडीपीओ कार्यालय के अनुसार शिक्षा विभाग द्वारा ना ही इसकी जनकारी दी गई, और ना ही अधिकांश विद्यालय में आंगनबाड़ी केंद्र चलते हैं।
जल्द होगी जांच पूरी
मोतिहारी जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार ने बताया कि 89 विद्यालय जांच में छह माह लगना बहुत गंभीर मामला है ।जांच टीम को त्वरित जांच रिपोर्ट देने के लिए कड़ी फटकार लगया गया है ।चुनाव कार्य व आवश्यक कार्य के कारण जांच लंबित था।बहुत जल्द जांच पूरा कर दोषी पर करवाई की जाएगी।