परबत्ता व गोगरी प्रखंड के पांच सौ एकड़ में दशकों से खेती होने के बाद भी केला आधारित उद्योग नहीं लगने से किसान चिंतित हैं।
खगड़िया के किसानों द्वारा तैयार उच्च क्वालिटि के केला की यूपी के अलावा दूसरे राज्यों मेें भी डिमांड है। खगड़िया के किसान केले की खेती को नकदी फसलों के रूप में तैयार करते हैं।
प्राप्त जानकारी अनुसार परबत्ता प्रखंड सहित जिले के कई प्रखंडों के किसानों द्वारा केला की खेती की जाती है। खासकर गोगरी अनुमंडल का क्षेत्र केला की खेती के लिए मशहूर माना जाता है। आज केले की खेती जहां के गरीब व मजदूर वर्गो के लिए रोजगार का जरिया बना हुआ है। यही कारण है कि यहां के किसान केला की खेती को नकदी फसलों की नजरिया से देखे जा रहे हैं।
गरीबी से जूझ रहे परबता में केले की खेती ने किसानों की जिन्दगी संवार दी है। जिन गांवों में तीन दशक पूर्व झोपड़ी की कतार लगी हुई थी। वहां आज पक्का ही पक्का मकान नजर आ रहा है। दिल्ली, पंजाब व हरियाणा की तरह मजदूरों को 12 माह रोजगार मिल रहे हैं। इस खुशहाली का श्रेय गेहूं, मक्का व धान को नही सिर्फ केले की खेती को जाती है।
जानकारों की मानें तो तीन दशक पूर्व प्रखंड के दियारा क्षेत्रों में मोटा धान, खेढ़ी व नरकटिया की खेती की जाती थी। वही करारी (भीठ) जमीन में स्थानीय किसान मिर्र्च व अरंडी की खेती को नकदी खेती मानते थे। लेकिन वर्तमान में इन फसलों को पीछे छोड़ता हुआ केला नकदी फसलों की जगह लेकर स्थानीय किसानों की जिंदगी संवार रही है।
बोले किसान
कुल्हड़िया गांव के केला किसान भूषण तिवारी, दिवाकर तिवारी व बैसा के जगदीश मंडल मदन मोहन प्रसाद कोलवारा के लक्ष्मण मंडल आदि बताते हैं कि एक एकड़ जमीन में खेती करने में 30 से 35 हजार रुपये खर्च होते हैं। फसल कटाई के बाद प्रगतिशील किसानों को खर्च काटकर 90 हजार से एक लाख रुपये तक की आमदनी होती है।
केला से तैयार होते हैं कई सामान
फरकिया से उत्पादित केले से नगरो व महानगरों में पल्प, बेबी फूड, बनाना फ्लेवर, चिप्स, तने रेशों से कपड़ा, सुजनी, अल्कोहल सहित 50 प्रकार की सामग्री तैयार होकर महंगे मूल्यों पर गांव व कस्बे के दुकानों में विक्रय किए जाते हैं। लेकिन केले की फसलों के लिए मशहूर माने जाने वाले खगड़िया में केला आधारित एक भी उद्योग नहीं है। किसी स्थानीय लोगों द्वारा केला आधारित छोटे-छोटे उद्योग लगाने का साहस करते हैं, लेकिन मार्केट व असहयोग के कारण फैल होता जा रहा है।
वर्ष 1975-76 से ही शुरू हुई थी केले की खेती
इस क्षेत्र में सर्व प्रथम हिन्दी विद्यापिठ देवघर के पूर्व रजिस्टार व स्वतंत्रता सैनानी सुरेन्द्र नाथ षास्त्रत्त्ी ने वर्ष 1975-76 में मध्य प्रदेष के भोसावल वस्ती से सिंगापूरी कन्द (पौधा) लाकर ग्राम पंचायत पिपरालतीफ के मडै़या गांव में मात्र दस कट्ठा जमीन में प्रयोग के तौड़ पर खेती षुरू किये थे। केले की खेती में अच्छी खासी आमदनी होता देख धीरे धीरे खेती का विस्तार हुआ और आज जिले के कई प्रखंडों में वृहत पैमाने पर में खेती षुरू हो गयी। वहीं सहायक निदेशक उद्यान मो जावेद ने बताया कि
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