बिहार के 715 अनुदानित माध्यमिक विद्यालयों पर संबद्धता नियमावली 2011 को लागू किए जाने के विरोध में राज्यभर में शिक्षाकर्मियों ने जोरदार प्रदर्शन किया। भागलपुर समेत सभी जिला मुख्यालयों पर शिक्षकों ने प्रदर्शन कर सरकार के इस निर्णय को वापस लेने की मांग की। प्रदर्शनकारी शिक्षकों का कहना है कि यह कदम न केवल इन विद्यालयों की स्वायत्तता पर आघात है, बल्कि पूर्व में मिली सरकारी मान्यता को भी चुनौती देता है।

शिक्षकों के अनुसार ये 715 विद्यालय वर्ष 1970 से 2009 के बीच आम जनता के सहयोग से स्थापित किए गए थे और बिहार अराजकीय माध्यमिक विद्यालय अधिनियम 1981 की धारा 19 के अंतर्गत राज्य सरकार से विधिवत मान्यता प्राप्त कर चुके हैं। ऐसे में इन पर संबद्धता नियमावली 2011 को थोपना विधिक और नैतिक दृष्टि से अनुचित है।

प्रदर्शन में शामिल शिक्षकों ने बताया कि वर्ष 2008 तक इन विद्यालयों को शिक्षा नीति के तहत अनुदान देने की अनुमति सरकार द्वारा दी गई थी। साथ ही, इन विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को मध्याह्न भोजन, छात्रवृत्ति तथा अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ भी मिलता रहा है। ऐसे में संबद्धता नियमावली 2011 को लागू करना इन संस्थानों की गरिमा को ठेस पहुंचाने जैसा है।

शिक्षकों का कहना है कि 2011 की यह नियमावली केवल परीक्षा संचालन के उद्देश्य से बनाई गई थी, न कि विद्यालयों की मान्यता समाप्त करने या उनकी स्वायत्तता सीमित करने के लिए। इस नियमावली में न तो विद्यालयों के लिए और न ही शिक्षकों या छात्रों के लिए किसी प्रकार की आर्थिक सहायता या अन्य सुविधाओं का प्रावधान है।

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की नियमावली 1952 का हवाला देते हुए शिक्षकों ने बताया कि सरकार से अनुमति प्राप्त विद्यालयों पर अतिरिक्त संबद्धता नियमों की बाध्यता नहीं होनी चाहिए। इसलिए पहले से मान्यता प्राप्त इन विद्यालयों पर नियमावली 2011 को लागू करना पूरी तरह अनुचित है।

शिक्षकों ने सरकार से मांग की है कि वह अधिनियम 1981 की धारा 19 के तहत मान्यता प्राप्त 715 विद्यालयों पर संबद्धता नियमावली 2011 लागू करने के निर्णय को तत्काल प्रभाव से वापस ले। उनका कहना है कि यदि सरकार ने उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार नहीं किया, तो यह आंदोलन और व्यापक रूप लेगा।

यह विरोध राज्य के शिक्षा तंत्र में व्याप्त असंतोष को दर्शाता है और सरकार के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह शिक्षकों और विद्यालयों की मांगों को संजीदगी से लेकर समाधान निकाले, ताकि लाखों विद्यार्थियों की शिक्षा प्रभावित न हो।

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