सहरसा जिले के कन्दाहा सूर्य मंदिर कि अदभुत प्रतिमा के अलावे सूर्य की दोनों पत्नियां संज्ञा और छाया की प्रतिमा भी यहाँ मौजूद है। लेकिन तमाम श्रेष्ठता और खासियत के बाद भी इस मंदिर की ख्याति कोणार्क या फिर देव के सूर्य मंदिर की तरह नहीं है। दरअसल इस मंदिर को जहां आज पर्यटन के मानचित्र पर बुलंदी से खड़ा होना चाहिए था वह आज गुमनामी का दंश झेल रहा है।
वहीं इस मंदिर के पुजारी बाबू कांत झा की माने तो उनका कहना है कि सत्ययुग , त्रेता, द्वापर और कलयुग चारों युग में प्रत्यक्ष प्रमाण भगवान सूर्य ही है,इनसे बढ़कर तो कोई नहीं है। अभी भी लोग कलयुग में भगवान सूर्य की ही पूजा करते हैं,इन्हें प्रत्यक्ष प्रमाण देवता के रूप में देखा जाता है,कोणार्क मंदिर के बाद कन्दाहा सूर्य मंदिर ही हैं जो अपेक्षित है जिसे कोई देखने वाला नहीं है। यहा जो भी जनप्रतिनिधि हैं मुखिया जी हों या विधायक जी हों या मंत्री जी हों सब केवल देख कर जाते है,लेकिन कोई इस मंदिर के लिए नही सोचता है।
उन्होंने यह भी बताया कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्भ्य बारह राशि में सूर्य की स्थापना किया था,उसीमें प्रथम मेष राशि की प्रतिमा इस जगह है।कितना बार मंदिर बना और टूटा लेकिन 1334 में इनवार वंश का राजा भवदेव सिंह के द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। लेकिन प्रशाशनिक उदासीनता का दंश यह मंदिर आज भी झेल रहा है।
कन्दाहा सूर्य मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है की मंदिर परिसर में एक कुआं है,जिस पर स्नान करने से सफेद दाग हो,या चर्म रोग हो उस व्यक्ति को कुआं पर स्नान करने से और सूर्य भगवान का चरणामृत पीने से चर्म रोग या सफेद दाग ठीक हो जाता है,और जो सच्चे मन से मनोकामना लेकर इस सूर्य देवता के पास आता है उसका मनोकामना पूरा होता है। हालांकि बिहार के लोक आस्था का पर्व छठ पूजा आगे है इस पर्व में डूबते हुए सूर्य और उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती हैं अब देखना ये होगा की खबर लगाने के बाद जिला प्रशासन इस मंदिर पर कितना ध्यान देती है