भारत में अगर सबसे कठिन और प्रतिष्ठित परीक्षाओं की बात की जाए, तो UPSC यानी सिविल सेवा परीक्षा का नाम सबसे पहले आता है। हर साल लाखों युवा इस परीक्षा में शामिल होते हैं, लेकिन सफलता कुछ गिने-चुने ही हासिल कर पाते हैं। पढ़ाई के संसाधन, कोचिंग, इंटरनेट – सब कुछ होते हुए भी सफलता दूर रह जाती है। वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो अभावों में जीते हुए, हर चुनौती को पार कर इतिहास रच देते हैं। उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले से ताल्लुक रखने वाले सतेंद्र सिंह की कहानी भी कुछ ऐसी ही है — एक ऐसी कहानी जो अंधकार में भी उम्मीद की रौशनी तलाश लेती है।

सतेंद्र का जन्म अमरोहा जिले के एक छोटे से गांव में हुआ। जब वो केवल दो साल के थे, तब उन्हें निमोनिया हो गया। घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि बेहतर इलाज मिल सके। बीमारी ने धीरे-धीरे उनकी आंखों की रौशनी छीन ली और वो हमेशा के लिए दृष्टिहीन हो गए। लेकिन जीवन ने जब उन्हें अंधेरा दिखाया, तो उन्होंने अंधेरे में ही रास्ता बनाना सीख लिया।
गांव के सरकारी स्कूल में किसी तरह से पढ़ाई शुरू की। ब्रेल लिपि से शिक्षा प्राप्त करना आसान नहीं था, लेकिन सतेंद्र ने कभी हालातों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। स्कूली पढ़ाई के बाद वो दिल्ली पहुंचे। यहां उन्होंने मुखर्जी नगर स्थित एक सरकारी संस्थान से ब्रेल लिपि में दक्षता हासिल की और इसी माध्यम से अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफन्स कॉलेज में उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातक किया। इसके बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से मास्टर्स, एमफिल और फिर पीएचडी की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखा और दिल्ली विश्वविद्यालय के अरबिंदो कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए। यह सफलता अपने आप में बड़ी थी, लेकिन सतेंद्र का सपना इससे कहीं आगे था।
वो सपना था – देश की सबसे कठिन परीक्षा पास कर IAS अधिकारी बनने का। साल 2018 में उन्होंने पहली बार UPSC परीक्षा दी और 714वीं रैंक हासिल की। लेकिन उन्होंने यहां रुकना स्वीकार नहीं किया। उन्होंने दोबारा कोशिश की और आखिरकार 2021 में उनका चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में हो गया।
इस सफर में उन्होंने ना सिर्फ दृष्टिहीनता जैसी चुनौती को पार किया, बल्कि समाज की रूढ़ियों और सीमाओं को भी तोड़ दिया। ब्रेल नोट्स, ऑडियो लेक्चर्स और तकनीक की मदद से उन्होंने वो हासिल किया जो आम लोग भी कई बार नहीं कर पाते। उन्होंने यह साबित कर दिया कि यदि आत्मविश्वास और मेहनत हो, तो कोई भी कमजोरी रास्ता नहीं रोक सकती।
आज सतेंद्र सिंह ना सिर्फ एक IAS अधिकारी हैं, बल्कि लाखों युवाओं के लिए एक प्रेरणा हैं। वो हमें यह सिखाते हैं कि चुनौतियाँ कैसी भी हों, अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी बाधा स्थायी नहीं होती। उनका जीवन संदेश देता है – “जब सब रास्ते बंद लगें, तब भी उम्मीद का एक दरवाज़ा खुला होता है, बस आपको उस पर दस्तक देनी होती है।”
सतेंद्र की कहानी हमें यह भी बताती है कि सच्ची सफलता सिर्फ डिग्रियों या रैंक से नहीं मिलती, बल्कि उस जज्बे से मिलती है जो हर ठोकर के बाद फिर से खड़े होने की ताकत देता है।
सतेंद्र सिंह ने अंधेरे में भी उजाले का सपना देखा और उसे सच कर दिखाया। उनकी कहानी हर उस युवा के लिए उम्मीद की किरण है, जो हालातों से लड़ते हुए अपने सपनों को साकार करने की हिम्मत रखते हैं।
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