बिहार के सहरसा जिले से एक बड़ी खबर सामने आ रही है, जहाँ सदर अस्पताल में डॉक्टरों का विरोध प्रदर्शन चर्चा का विषय बन गया है। दरअसल, अस्पताल प्रशासन द्वारा डॉक्टरों के वेतन भुगतान की प्रक्रिया में बदलाव करते हुए अब बायोमेट्रिक उपस्थिति के आधार पर वेतन देने का आदेश जारी किया गया है। इस नए नियम के तहत अप्रैल महीने का वेतन केवल उन्हीं डॉक्टरों को मिलेगा, जिनकी उपस्थिति बायोमेट्रिक सिस्टम में दर्ज हुई है।
इस नई व्यवस्था के विरोध में बुधवार को सदर अस्पताल के सभी डॉक्टरों ने एकजुट होकर ड्यूटी छोड़ दी और सिविल सर्जन कार्यालय पहुंचकर अपना विरोध दर्ज कराया। डॉक्टरों का कहना है कि यह नियम भेदभावपूर्ण है, क्योंकि इसे सिर्फ सदर अस्पताल सहरसा में ही लागू किया गया है, जबकि जिले के अन्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में अब भी पुरानी व्यवस्था के तहत ही वेतन दिया जा रहा है।
प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों में डॉ. एस के आजाद, डॉ. जयंत आशीष, डॉ. नेहा सिंह, डॉ. महबूब आलम और डॉ. मोहम्मद जमालुद्दीन सहित अन्य चिकित्सा पदाधिकारी शामिल थे। उन्होंने सिविल सर्जन डॉ. कात्यायनी कुमार मिश्रा से मुलाकात कर अपनी आपत्ति दर्ज कराई और समान वेतन नीति की मांग की। डॉक्टरों का कहना है कि उन्हें किसी नियम से आपत्ति नहीं है, लेकिन इसे सभी अस्पतालों और कर्मचारियों पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए।
करीब आधे घंटे तक चली इस बैठक के बाद डॉक्टरों ने ड्यूटी पर लौटने का फैसला लिया, ताकि मरीजों की सेवा बाधित न हो। हालांकि, इस दौरान अस्पताल की ओपीडी और आपातकालीन सेवाएं कुछ समय के लिए प्रभावित रहीं, जिससे मरीजों को असुविधा का सामना करना पड़ा।
सिविल सर्जन डॉ. कात्यायनी कुमार मिश्रा ने इस पूरे मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए बताया कि बायोमेट्रिक उपस्थिति अनिवार्य करने का निर्णय जिला प्रशासन और सरकार के निर्देशों के अनुसार लिया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आने वाले समय में यह नियम जिले के सभी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों पर समान रूप से लागू किया जाएगा।
उन्होंने यह भी बताया कि इस व्यवस्था का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं को और अधिक पारदर्शी बनाना और कर्मचारियों की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करना है। सरकार का मानना है कि इससे स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार होगा और मरीजों को समय पर बेहतर चिकित्सा सेवा मिल सकेगी।
वहीं दूसरी ओर डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों पर जल्द विचार नहीं किया गया और सभी स्वास्थ्य केंद्रों में यह नियम समान रूप से लागू नहीं किया गया, तो वे आगे की रणनीति तय करने के लिए फिर से बैठक करेंगे। इससे अंदेशा है कि भविष्य में एक बार फिर चिकित्सा सेवाएं बाधित हो सकती हैं।
फिलहाल स्थिति सामान्य है और डॉक्टर अपनी ड्यूटी पर लौट चुके हैं, लेकिन यह मुद्दा आने वाले दिनों में एक बार फिर तूल पकड़ सकता है। इस पूरे प्रकरण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि नीति निर्माण में समानता और संवाद की कमी से कर्मचारियों में असंतोष उत्पन्न होता है, जिसका असर सीधे तौर पर जनसेवा पर पड़ता है।
