बिहार राज्य पथ परिवहन निगम का एकमात्र सरकारी बस स्टैंड सहरसा में बदहाली की बेमिसाल तस्वीर पेश कर रहा है। जहां एक ओर वर्षों पहले बनाए गए बस स्टैंड भवन की हालत पूरी तरह जर्जर हो चुकी है, वहीं दूसरी ओर यात्रियों की मूलभूत सुविधाओं का भी घोर अभाव है।
बस स्टैंड परिसर में स्थित निगम का कार्यालय अब खंडहर में तब्दील हो चुका है, लेकिन इसके बावजूद यहां के कर्मचारी जान जोखिम में डालकर काम करने को मजबूर हैं। भवन की दीवारें और छतें किसी भी वक्त हादसे को न्यौता दे सकती हैं, लेकिन विभागीय अनदेखी जारी है।
दूसरी ओर, बुडको द्वारा करोड़ों की लागत से बनाए गए नए बस डिपो की स्थिति भी कम खराब नहीं है। शौचालय का निर्माण तो किया गया, लेकिन उद्घाटन के इंतजार में आज तक ताले नहीं खुले। वहीं, शुद्ध पेयजल की व्यवस्था भी नदारद है। यात्रियों के साथ-साथ बस चालकों और कर्मचारियों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
प्रत्येक दिन यहां से कई रूटों पर सरकारी बसों का संचालन होता है, लेकिन यात्रियों के लिए प्रतीक्षालय, स्वच्छता, और मूलभूत सेवाएं केवल कागजों तक ही सीमित हैं। स्थानीय लोगों और कर्मचारियों का कहना है कि कई बार शिकायतों के बावजूद आज तक न तो मरम्मत हुई और न ही सुविधा बहाल की गई।
सरकारी निवेश तो हुआ, पर उपयोग शून्य
बुडको द्वारा लाखों-करोड़ों रुपये खर्च कर बनाए गए बस स्टैंड और डिपो के बावजूद वर्तमान स्थिति सवाल खड़े करती है। आखिर जब शौचालय और जल सुविधा जैसी बुनियादी चीजें भी चालू नहीं हो सकीं, तो इतने बड़े निवेश का लाभ किसे मिला?
सहरसा का सरकारी बस स्टैंड आज अव्यवस्था, लापरवाही और प्रशासनिक उदासीनता की मिसाल बना हुआ है। यात्रियों की सुविधा के नाम पर जो योजनाएं बनी थीं, वे अब सिर्फ कागजों और बंद ताले में कैद हैं। सवाल यह है कि इस बदहाली की जिम्मेदारी कौन लेगा?
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