23 मार्च 2011 — तारीख इतिहास में दर्ज तो नहीं हुई, लेकिन एक मासूम बच्ची और उसके परिवार के लिए ये दिन उम्मीदों का एक नया सवेरा लेकर आया था। देश के एक बड़े उद्योगपति अपनी पत्नी के साथ बिहार की राजधानी पटना से लगभग 25 किलोमीटर दूर एक महादलित टोला पहुंचे थे। सैकड़ों कैमरों की फ्लैश लाइट के बीच उन्होंने एक गरीब बच्ची को गोद में उठाया और उसके उज्ज्वल भविष्य का वादा किया। उन्होंने कहा कि इस बच्ची की पढ़ाई का पूरा जिम्मा वे खुद उठाएंगे। यह वादा न सिर्फ बच्ची के परिवार, बल्कि पूरे गांव के लिए आशा की किरण बनकर आया था।
लेकिन विडंबना देखिए — 15 साल बाद वही बच्ची, जिसकी पढ़ाई का सपना बुना गया था, अब बाल विवाह की शिकार हो चुकी है। शिक्षा की उम्मीदों को गरीबी और सामाजिक उपेक्षा ने निगल लिया। जिस मासूम को डॉक्टर बनने की चाह थी, वह पांचवी कक्षा से आगे पढ़ ही नहीं सकी।
बीते सप्ताह उस बच्ची की शादी कर दी गई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह शादी पूरी तरह से नाबालिग अवस्था में हुई है। यह मामला जब ईटीवी भारत के जरिए सामने आया तो बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष डॉ. अमरदीप ने इसे गंभीरता से लिया। उन्होंने कहा, “अगर किसी नाबालिग की शादी हुई है, तो यह कानूनन अपराध है। आयोग स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई कर सकता है, लेकिन यदि कोई औपचारिक शिकायत मिलती है, तो मामला और भी मजबूत हो जाता है।”
ईटीवी भारत की टीम जब उस बच्ची के घर पहुंची, तो उसकी मां बेहद नाराज और व्यथित दिखीं। उन्होंने साफ शब्दों में कहा, “ऐसे ही लोग आते हैं, कैमरे के सामने वादे करते हैं और फिर चले जाते हैं। न कोई लौट कर आता है, न कोई मदद मिलती है। गांव के लोग खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं।”
उस बच्ची ने खुद कैमरे के सामने बातचीत के दौरान कहा, “मुझे याद है कि अंकल आए थे। उस वक्त मैं बहुत छोटी थी। उन्होंने मेरी मां से कहा था कि मुझे पढ़ाई में मदद करेंगे। मैं डॉक्टर बनना चाहती थी। लेकिन गरीबी और हालात के कारण पांचवी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा।”
बच्ची ने आगे बताया, “हमारे घर में इतना भी पैसा नहीं था कि खाने के लिए दो वक्त का भोजन ठीक से मिल सके। रहने के लिए भी जगह नहीं है। कभी-कभी तो लगता है कि वो सब कुछ सपना था।”
गांव के अन्य लोग भी इस बात को स्वीकारते हैं कि उस दिन सबको लगा था कि उनके गांव की किस्मत बदलने वाली है। लेकिन 15 साल बाद न तो उद्योगपति दोबारा आए, न किसी भी तरह की कोई मदद पहुंची।
यह घटना सिर्फ एक बच्ची की नहीं, बल्कि हमारे समाज की उस हकीकत की तस्वीर है जिसमें वादे तो बहुत किए जाते हैं, लेकिन निभाए नहीं जाते। मीडिया की चकाचौंध और फोटो खिंचवाने की होड़ में गरीबों के जज्बातों के साथ खेलना आम हो गया है।
बाल विवाह के इस मामले ने एक बार फिर उस सिस्टम की पोल खोल दी है, जहां जागरूकता, शिक्षा और बाल अधिकारों की बात तो की जाती है, लेकिन जमीनी हकीकत में बदलाव नहीं आता।
इस मामले ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सिर्फ घोषणाएं और वादे काफी नहीं होते। जब तक योजनाओं का धरातल पर क्रियान्वयन नहीं होगा, तब तक ऐसे मासूम सपनों की मौत होती रहेगी।
बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग अब इस मामले की जांच कर रहा है। अगर यह पुष्टि होती है कि लड़की की शादी नाबालिग अवस्था में हुई है, तो इसमें शामिल सभी लोगों पर कानूनी कार्रवाई संभव है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या ऐसी कार्रवाई उस मासूम के टूटे हुए सपनों की भरपाई कर सकती है? क्या जो वादा 2011 में किया गया था, उसकी जिम्मेदारी तय की जाएगी? और क्या ऐसे मामलों से सबक लेकर भविष्य में कोई और बच्ची ठगी नहीं जाएगी?
समाज, सरकार और हर जागरूक नागरिक को अब यह सोचना होगा कि जिम्मेदारियों से बचना आसान है, लेकिन उसका खामियाजा एक पूरी पीढ़ी को भुगतना पड़ता है।
क्योंकि जब वादे टूटते हैं, तो सिर्फ भरोसा नहीं टूटता — टूटते हैं सपने, और कभी-कभी पूरी ज़िंदगी।
