प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 5 अगस्त 2020 को भूमि पूजन के साथ अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कार्य शूरू हो गया। इससे पहले यह भूमि राजनीतिक रूप से उपेक्षित थी। हालांकि, अब यह शहर राजनीतिक दलों के लिए एक फेवरेट डेस्टिनेशन बन गया है। ऐसा इसलिए कि मंदिर निर्माण शुरू होने के बाद उत्तर प्रदेश में पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। अधिकांश राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार के लिए अयोध्या को अपने यात्रा कार्यक्रम में शामिल किया है।

राजनीतिक दल अब इस सच्चाई को स्वीकार करने की कोशिश कर रहे हैं कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनने जा रहा है। बहुजन समाज पार्टी (दलित-केंद्रित पार्टी), समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी (आप) से लेकर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) तक, सभी ने प्रचार के लिए अयोध्या को अपनी सूची में शामिल करने का फैसला किया है। आपको बता दें कि इससे पहले अयोध्या भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों के लिए ऑफ-लिमिट थी। मतलब लोग इस शहर से परहेज करते थे।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा 9 नवंबर, 2019 को मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया गया। इसके साथ ही दशकों पुराने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मालिकाना हक विवाद समाप्त हो गया। इसके बाद सियासी परिदृश्य तेजी से बदलने लगा। यह परिवर्तन तब पूरा हुआ जब अगस्त 2020 में मंदिर का निर्माण शुरू हुआ।

बीएसपी भी पहुंची राम के दर
अयोध्या की राह में सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) रोड़ा अटकाया था, जो खुद को एक ‘अंबेडकरवादी पार्टी’ के रूप में पहचानती है। यूपी की सत्ता में रहते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने दलितों को समर्पित स्मारकों, मूर्तियों और पार्कों का निर्माण कराया। हालांकि, अब स्थिति बदल गई है। बसपा महासचिव सतीश मिश्रा पिछले साल 23 जुलाई को पार्टी के ब्राह्मण आउटरीच कार्यक्रम के लिए अयोध्या में थे। इसे ‘प्रबुद्ध वर्ग’ का बैठक नाम दिया गया था। सतीश मिश्रा ने न केवल एक जनसभा को संबोधित किया बल्कि राम जन्मभूमि पर राम लला और हनुमान गढ़ी मंदिर में भगवान हनुमान को भी नमन किया। उन्होंने राम मंदिर के चल रहे निर्माण कार्य में तेजी लाने का वादा किया। बसपा द्वारा राम मंदिर का समर्थन करना कुछ साल पहले तक कल्पना से परे था।

सपा की लिस्ट में भी अयोध्या
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी चुनाव प्रचार के लिए अयोध्या को अपने जरूरी जिलों की सूची में शामिल किया। उनकी दो दिवसीय अयोध्या यात्रा 9 जनवरी से शुरू होनी थी, लेकिन पूर्व सीएम को कोविड के बढ़ते मामलों और उनके परिवार के एक सदस्य के संक्रमण के लिए सकारात्मक परीक्षण के कारण यात्रा रद्द करनी पड़ी। भारत के चुनाव आयोग ने भी कोविड की वृद्धि के मद्देनजर 15 जनवरी तक रैलियों पर प्रतिबंध लगाकर सपा प्रमुख को अयोध्या से दूर रखा।

केजरीवाल ने भी टेका राम लला के दर पर मत्था
आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी पिछले साल 26 नवंबर को अयोध्या में थे। अन्य राजनेताओं की तरह, केजरीवाल ने राम जन्मभूमि में अस्थायी मंदिर में राम लला और हनुमान गढ़ी मंदिर में भगवान हनुमान की पूजा की। अयोध्या में केजरीवाल ने यह भी घोषणा की थी कि उनकी सरकार मंदिर शहर को दिल्ली सरकार की मुफ्त तीर्थ यात्रा योजना में शामिल करेगी। आप ने पिछले साल 14 सितंबर को नवाब शुजा-उद-दौला के 18वीं सदी के मकबरे से गांधी पार्क तक अयोध्या में ‘तिरंगा यात्रा’ भी निकाली थी। रैली के लिए दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और उत्तर प्रदेश के पार्टी प्रभारी संजय सिंह अयोध्या में थे। अयोध्या में दो बैक-टू-बैक घटनाओं के साथ, AAP अपनी स्थिति को यूपी के राजनीतिक क्षेत्र में मजबूत करना चाहती है।

ओवैसी को भी नहीं रहा अयोध्या से परहेज
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पिछले साल 7 सितंबर को अयोध्या से यूपी चुनाव के लिए अपनी पार्टी के प्रचार अभियान की शुरुआत की थी। उन्होंने अयोध्या शहर से लगभग 57 किलोमीटर दूर रुदौली तहसील में ‘वंचित-शोषित समाज’ (वंचित और पीड़ित समुदाय) के एक सम्मेलन को संबोधित किया। अयोध्या में AIMIM की रैली बिल्कुल साबित करती है कि विचारधारा के बावजूद कोई भी राजनीतिक दल अयोध्या को छोड़ने को तैयार नहीं है।

राजा भैया के नाम से लोकप्रिय रघुराज प्रताप सिंह ने राम लला को नमन करने के बाद 31 अगस्त को अयोध्या से यूपी चुनाव के लिए अपने जनसत्ता दल के अभियान (जन सेवा संकल्प यात्रा) की शुरुआत की।

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