बिहार के सहरसा जिले में भगवान परशुराम जयंती इस वर्ष भी अत्यंत धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाई गई। जिले भर में धार्मिक उल्लास का माहौल रहा और लोगों ने परशुराम जयंती के आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। परशुराम जयंती हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख शुक्ल तृतीया को मनाई जाती है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का धरती पर जन्म हुआ था।
पुराणों के अनुसार, परशुराम का बचपन का नाम ‘राम’ था। जब उन्होंने भगवान शिव से परशु (एक प्रकार का दिव्य कुल्हाड़ी) प्राप्त किया, तभी से वे ‘परशुराम’ कहलाए। उन्हें विष्णु के अति उग्र और पराक्रमी अवतार के रूप में पूजा जाता है। धर्म और न्याय की स्थापना के लिए उन्होंने क्षत्रियों के अत्याचारों का अंत किया और ब्राह्मण धर्म की रक्षा की।
सहरसा में परशुराम जयंती के अवसर पर श्रद्धालुओं ने पूरे दिन उपवास रखा और विशेष पूजा-अर्चना की। विभिन्न मंदिरों में भजन-कीर्तन और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। लोगों ने भगवान परशुराम की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की और उनसे जीवन में धर्म, सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने का आशीर्वाद मांगा।
इस वर्ष आयोजन का मुख्य आकर्षण रही भव्य शोभायात्रा, जिसका शुभारंभ सहरसा के प्रसिद्ध मत्स्यगंधा मंदिर परिसर से हुआ। इस शोभायात्रा का आयोजन ब्राह्मण महासभा सहरसा के द्वारा किया गया। इस मौके पर महासभा के जिला अध्यक्ष डब्बू मिश्रा प्रमुख आयोजक के रूप में उपस्थित रहे। शोभायात्रा के संयोजक की भूमिका में बंटी झा, रोशन मिश्रा, कांग्रेस जिला अध्यक्ष मुकेश झा और रमन झा ने सक्रिय योगदान दिया।
शोभायात्रा में भगवान परशुराम की झांकी विशेष आकर्षण का केंद्र रही। इस झांकी में भगवान परशुराम को युद्ध मुद्रा में कुल्हाड़ी धारण किए हुए दर्शाया गया, जिससे उनकी वीरता और न्यायप्रियता का संदेश मिलता है। शोभायात्रा शहर के विभिन्न चौक-चौराहों, जैसे कि गांधी पथ, वीर कुंवर सिंह चौक, समाहरणालय चौक, और स्टेशन रोड होते हुए निकली और शांतिपूर्वक सम्पन्न हुई। पूरे मार्ग में श्रद्धालुओं ने फूलों की वर्षा की और आरती उतारी।
इस आयोजन में सैकड़ों युवाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, स्थानीय नागरिकों और विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। शोभायात्रा में भाग लेने वाले सभी लोगों ने भगवान परशुराम के जीवन से प्रेरणा लेने का संदेश दिया। वक्ताओं ने कहा कि परशुराम केवल ब्राह्मण समाज के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए आदर्श हैं। उन्होंने अन्याय के विरुद्ध लड़ाई लड़ी और धर्म की स्थापना की।
शहर में जगह-जगह स्वागत द्वार बनाए गए थे और शोभायात्रा के स्वागत में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया। ढोल-नगाड़ों, शंखनाद और जयकारों से पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। बच्चे, युवा और वृद्ध सभी इस आयोजन में समान रूप से सहभागी बने।
पूरे आयोजन में प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। पुलिस बल की तैनाती की गई थी ताकि शोभायात्रा शांतिपूर्वक संपन्न हो सके। आयोजकों ने सफाई, जलपान और सहायता शिविर की भी व्यवस्था की थी, जिससे श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
सहरसा में परशुराम जयंती का यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक विरासत को भी सशक्त करता नजर आया। कार्यक्रम के समापन पर सभी ने भगवान परशुराम के आदर्शों को जीवन में अपनाने का संकल्प लिया।
