जब भी चमगादड़ का नाम लिया जाता है, तो अक्सर लोगों के मन में डर, अशुभता और अंधविश्वास की छवि उभरती है। लेकिन बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बादुर छपरा गांव में ये धारणा पूरी तरह उलट है। यहां चमगादड़ों को न केवल सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, बल्कि उन्हें ग्राम देवता के रूप में पूजा भी जाता है। यह गांव अपने आप में एक अद्भुत उदाहरण है, जहां चमगादड़ों को समृद्धि, रक्षा और दैविक शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

बादुर छपरा – जहां चमगादड़ हैं पूजनीय

मुजफ्फरपुर शहरी प्रखंड मुख्यालय से महज दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बादुर छपरा गांव। यह गांव चमगादड़ों के बड़े झुंड की वजह से प्रसिद्ध है। गांव के एक छोर पर दो तालाबों के पास स्थित भगवान दुधनाथ महादेव मंदिर के चारों ओर हजारों की संख्या में चमगादड़ बसेरा बनाए हुए हैं। गांव के लोग इन्हें “बादुर” कहते हैं और इन्हीं के नाम पर गांव का नाम भी ‘बादुर छपरा’ पड़ा है।

चमगादड़ों की पूजा का अनोखा रिवाज़

यहां के ग्रामीणों की मान्यता है कि चमगादड़ उनके गांव के रक्षक हैं। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले वे चमगादड़ों की पूजा करते हैं। ग्रामीण मानते हैं कि जहां चमगादड़ रहते हैं, वहां कभी भी धन या संपन्नता की कमी नहीं होती। यही कारण है कि गांव के लोग इनकी पूजा में पूरी श्रद्धा से लगे रहते हैं।

चमगादड़ गांव के पीपल, बरगद, नीम, पाकुड़, महुआ, इमली और अन्य जंगली पेड़ों पर लटके रहते हैं। इनका बसेरा लगभग एक किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है, लेकिन सबसे अधिक चमगादड़ मंदिर और तालाब के आसपास देखने को मिलते हैं। गांव के निवासी इनकी रक्षा के लिए विशेष सावधानी बरतते हैं और किसी भी सूरत में इन्हें नुकसान नहीं पहुंचाते।

चमगादड़ों से जुड़ी रहस्यमयी मान्यताएं

स्थानीय लोगों के अनुसार, इन चमगादड़ों में दैविक शक्ति होती है। एक बार जब ये चमगादड़ गांव छोड़कर चले गए थे, तो गांव में तरह-तरह की समस्याएं उत्पन्न हो गई थीं। उस समय बाबा दुधनाथ मंदिर के पुजारी अशोक कुमार उर्फ कवि जी ने विशेष पूजा की, जिसके बाद चमगादड़ वापस लौट आए। तब से यह मान्यता और भी मजबूत हो गई कि चमगादड़ इस गांव की रक्षा करते हैं।

पुजारी अशोक कुमार बताते हैं, “चमगादड़ पक्षी नहीं, दैविक अंश होते हैं। कब से इनकी पूजा होती आ रही है, इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है, लेकिन पीढ़ियों से यह परंपरा चली आ रही है।”

पर्यटन का केंद्र बनता गांव

बादुर छपरा गांव केवल अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण नहीं, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अनोखा है। दूर-दूर से लोग यहां चमगादड़ों को देखने आते हैं। इनका समूहिक शोर, पेड़ों से लटकती उनकी विशाल संख्या और उनका मंदिर के पास वास करना पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है।

स्थानीय श्रद्धालु मंतोष कुमार मिश्रा कहते हैं, “जब से तालाब से बाबा दुधनाथ की शिवलिंग निकली है, तब से गांव में चमगादड़ हैं। यहां मांगी गई सभी मन्नतें पूरी होती हैं। बाबा की पूजा के बाद लोग चमगादड़ों की पूजा अवश्य करते हैं।”

संरक्षण और सांस्कृतिक महत्व

आज जब वन्य जीवों और पक्षियों की संख्या घटती जा रही है, ऐसे में बादुर छपरा गांव का यह उदाहरण संरक्षण की दिशा में एक मिसाल पेश करता है। यहां के लोग न केवल चमगादड़ों की पूजा करते हैं, बल्कि इनके लिए पेड़-पौधों और पर्यावरण का भी खास ध्यान रखते हैं। इस गांव में यह मान्यता है कि अगर कोई बाहरी व्यक्ति रात को गांव में प्रवेश करता है, तो चमगादड़ शोर मचाने लगते हैं, जबकि गांव के लोग आएं तो वे शांत रहते हैं।

निष्कर्ष

बादुर छपरा गांव की यह परंपरा केवल एक धार्मिक मान्यता नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत भी है। यह गांव बताता है कि प्रकृति के हर जीव के साथ सहअस्तित्व संभव है और यदि उन्हें सम्मान दिया जाए, तो वे भी मानव जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। चमगादड़ जो आमतौर पर भय और भ्रम का विषय होते हैं, इस गांव में आस्था और विश्वास का प्रतीक बन गए हैं – और यही इस गांव की सबसे बड़ी विशेषता है।

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