बीजेपी नेता और यूट्यूबर मनीष कश्यप एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गए हैं। इस बार मामला पटना के प्रसिद्ध अस्पताल पीएमसीएच से जुड़ा है, जहां मनीष कश्यप के साथ हुई मारपीट ने राज्य की राजनीति और सोशल मीडिया पर भारी बवाल खड़ा कर दिया है।

घटना 19 मई की है जब मनीष कश्यप पीएमसीएच पहुंचे थे। बताया जा रहा है कि वह किसी मरीज की पैरवी करने गए थे, लेकिन अस्पताल की अव्यवस्थाओं को देखकर उन्होंने वीडियो बनाना शुरू कर दिया। इसी दौरान महिला डॉक्टर से उनकी बहस हो गई, जो जल्द ही विवाद में बदल गई। आरोप है कि महिला डॉक्टर के साथ अभद्रता के बाद वहां मौजूद जूनियर डॉक्टरों ने मनीष की पिटाई कर दी। उन्हें एक कमरे में तीन घंटे तक बंधक बनाकर रखा गया और वीडियो डिलीट कराने के बाद छोड़ा गया।

इस घटना के बाद मनीष कश्यप फिलहाल पटना के एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। डॉक्टरों के अनुसार, उन्हें थप्पड़ और मुक्कों से मारा गया, जिससे उनकी छाती में दर्द और सांस लेने में तकलीफ हो रही है। स्थिति सामान्य होने पर उन्हें अगले 24 घंटे में छुट्टी दी जा सकती है।

इस पूरे मामले में जहां एक ओर कई लोग डॉक्टरों के कदम को सही ठहरा रहे हैं, वहीं मनीष कश्यप के समर्थन में भी लोग सड़कों और सोशल मीडिया पर उतर आए हैं। इसी बीच बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे ने इस मुद्दे पर एक फेसबुक पोस्ट लिखकर नई बहस को जन्म दे दिया है।

गुप्तेश्वर पांडे ने अपने पोस्ट में तंज भरे अंदाज़ में लिखा कि मनीष कश्यप का पाकिस्तानी सेना के जनरल मौलाना मुनीर से निजी संबंध है, और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का बदला लेने के लिए मनीष को पटना भेजा गया था ताकि वह पीएमसीएच को बम और मिसाइल से उड़ा सके। उन्होंने आगे लिखा कि देशभक्त डॉक्टरों ने अपनी जान जोखिम में डालकर मनीष को रोक लिया और उसे घायल कर दिया, लेकिन उसकी हत्या नहीं की क्योंकि वे अहिंसा में विश्वास रखते हैं।

पूर्व डीजीपी के इस व्यंग्यात्मक पोस्ट ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया है। कई लोगों ने इसे हास्य और व्यंग्य की मिसाल बताया, वहीं कुछ ने इसे गैरजिम्मेदाराना बयान करार दिया। पोस्ट में यह भी कहा गया कि डॉक्टरों ने मनीष के पास से AK-47 और बम बरामद किए हैं, और अब अस्पताल में एटम बम की तलाश जारी है।

यह पोस्ट स्पष्ट रूप से पीएमसीएच प्रबंधन और बिहार सरकार पर कटाक्ष था। पांडे का उद्देश्य था यह दिखाना कि किस तरह एक पत्रकार के साथ अस्पताल में अमानवीय व्यवहार हुआ और उस पर गंभीर आरोप लगाने की कोशिश की गई।

इस घटना ने एक बार फिर मनीष कश्यप को चर्चा में ला दिया है। जहां कुछ लोग उन्हें ‘जनता की आवाज’ बताते हैं, वहीं आलोचक उन्हें ‘पब्लिसिटी सीकर’ और ‘अराजकता फैलाने वाला’ करार देते हैं। फिलहाल पटना पुलिस ने इस मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की है, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक हलकों में यह मुद्दा गर्माया हुआ है।

यह साफ है कि मनीष कश्यप के मामले ने एक बार फिर राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रशासनिक जिम्मेदारी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विवाद क्या मोड़ लेता है।

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