नवगछिया अनुमंडल मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर कोसी किनारे स्थित चोरहर पंचायत में लीवर कैंसर धीरे-धीरे महामारी का रूप लेने लगा है। 2016 से अब तक पिछले सात वर्षों में दर्जनों लोगों की मौत लीवर कैंसर नामक बीमारी से हुई है। अभी भी कई लोगों का इलाज दिल्ली, पटना सहित हैदराबाद में चल रहा है। बिशेषज्ञ बताते है कि कोसी किनारे के पानी में आयरन एवं आर्सेनिक की मात्रा अधिक होने के कारण लोग लीवर कैंसर की बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं।

2016 में खरीक प्रखंड के आधा दर्जन गांवों में कैंसर के मरीज मिले थे। उस समय हिन्दुस्तान ने इस मामले को प्रमुखता से उजागर किया था। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने त्वरित कार्रवाई करते हुए इस इलाके की पानी की जांच के लिए एक टीम भेजी थी। आनन-फानन में घरों में पानी सप्लाई के लिए गांव में जलमानीर बनायी गयी थी। घरों में पानी सप्लाई भी हुई, लेकिन पानी के फिल्टरेशन की कोई व्यवस्था नहीं की गई। छह वर्ष बीतने के बाद भी बीमारी से बचाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी है। चोरहर निवासी मुकेश ठाकुर ने बताया कि 2016 में उसके पिता राधेश्याम ठाकुर को लीवर कैंसर हो गया था। कुछ पचता नहीं था। बाद में पेट फूल गया था। पिता जी को भागलपुर, पटना और ओडिशा में दिखाएं थे। लाखों रुपये खर्च होने के बाद भी नहीं बचा पाए। उसी गांव की ललिता देवी ने बताया कि 2010 में उसकी सास कनकलता देवी की मौत लीवर कैंसर के कारण हो गई थी। तबीयत खराब होने के बाद भागलपुर, पटना और कोलकाता में उसका इलाज कराया। बहुत पैसा खर्च किए, लेकिन वह नहीं बची। गांव के ही जयप्रकाश मिस्त्री बताते हैं कि दो साल पहले उसके 35 वर्षीय छोटे भाई डब्ल्यू शर्मा की मौत लीवर कैंसर बीमारी के कारण हो गई थी। उसके लीवर में पानी हो गया था। भागलपुर और दिल्ली में इलाज भी कराया। भागलपुर में लीवर में पानी भर जाने के बाद कई बार पानी निकाला भी गया था, लेकिन वह बच नहीं पाया। ग्रामीण मंटू ठाकुर बताते हैं कि 2020 में उसके पिता कार्तिक ठाकुर की मौत लीवर कैंसर से हो गई थी। भागलपुर में ही इलाज के दौरान एक चिकित्सक ने लीवर कैंसर की बात बताई थी और उनकी सलाह पर ही पटना आईजीएमएस में भर्ती कराया था। इलाज के दौरान कई बार कीमोथैरेपी भी हुआ था, लेकिन उन्हें नहीं बचा पाए। खरीक पीएचसी प्रभारी डॉ. नीरज कुमार ने बताया कि यह बात मेरे संज्ञान में आई है। चोरहर में जांच शिविर लगने के लिए प्रयासरत हैं

गांव में जलमीनार बनी, लेकिन पानी की शुद्धता की व्यवस्था नहीं की गई

ग्रामीण राजेश कुमार बताते हैं कि कोसी कछार के गांव में पानी में आयरन एवं आर्सेनिक दोनों है। यहां का पानी पीला है, जो पीने के साथ साथ कपड़ा धोने के लायक नहीं है। उन्होंने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व हिन्दुस्तान के द्वारा अभियान चलाने पर स्वास्थ्य विभाग के द्वारा शिविर लगाकर जांच भी की गई थी, लेकिन उसके बाद फिर भूल गया। गांव में जलमानीर बनी। कुछ घरों में पानी सप्लाई भी हो रही है, लेकिन पानी शुद्ध करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। ग्रामीण निकेश गोस्वामी ने कहा कि यहां जल शुद्धीकरण यंत्र लगाने की सख्त आवश्यकता है।

इन गांवों में मिले थे कैंसर के मरीज

2016 में खरीक प्रखंड के जिन गांवों में कैंसर के मरीज मिले थे, उनमें भवनपुरा, रतनपुरा, मैरचा, लोकमानपुर, चोरहर, तुलसीपुर आदि शामिल हैं। इन गांवों में 2015 और 2016 में एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत लीवर कैंसर के कारण हुई थी। जांच को पहुंची टीम में शामिल डॉक्टरों का मानना था कि नदी किनारे के गांवों में पानी में आर्सेनिक की मात्रा अत्यधिक होने के कारण कैंसर का जहर फैल रहा है। एक आशंका यह भी थी कि इलाके की सब्जियों या मक्के की फसल में कीटनाशक का जरूरत से अधिक प्रयोग हो रहा हो जो कैंसर का कारण बन रहा है।

कोट

खरीक प्रखंड के कई गांवों में कैंसर फैला था। छह साल पहले कैंसर से दहशत का माहौल बन गया था। आवाज उठाने पर मेडिकल टीम ने जांच की थी पर उसके बाद इस बीमारी से बचाव को कुछ खास नहीं किया गया।

गौरव राय, जिप सदस्य

कोसी किनारे के इलाके के पानी में आर्सेनिक और हेक्सावेलेंट क्रोमियम की मात्रा अधिक है। ऐसे पानी के लगातर सेवन से लीवर कैंसर का खतरा रहता है।

-प्रो अशोक झा, शोधकर्ता रूरल वाटर सोसाइटी

पानी ठीक नहीं होने की वजह से कैंसर फैलने की बात उस समय कही गई थी। सुधार के नाम पर घरों में नल लगा दिया गया और पानी की टंकी बना दी गई पर न तो फिल्टर लगाया गया है और न ही पानी की सप्लाई ही होती है। अभी भी लोग चापाकल का पानी पीने को मजबूर हैं।

– ललन कुमार यादव, मुखिया, लोकमानपुर

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