रिपोर्ट के मुताबिक, बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस हादसे का शिकार होने से पहले करीब 18 हजार किलोमीटर का सफर ठीक तरह से जांच हुए बिना ही पूरा कर चुकी थी, जबकि आमतौर पर रेलवे की जिम्मेदारी होती है कि वह हर 4500 किमी पर ट्रेन के इंजन की जांच करे.
जांच में पता चला है कि इंजन का समय पर मेंटेनेंस ही नहीं हुआ था. इस इंजन को 4500 KM चलने के बाद पीरियोडिकल एग्जामिनेशन के लिए भेजा जाना था, लेकिन इंजन बिना जांच 18 हजार KM तक चलाया गया. इस हादसे की जांच कर रहे कमिश्नर ऑफ रेलवे सेफ्टी ने 10 फरवरी को पूर्वोंत्तर सीमांत रेलवे मालीगांव गुवाहाटी के GM को पत्र लिखकर यह जानकारी दी है.
CRS ने जांच रिपोर्ट में यह भी बताया कि समस्तीपुर रेल डिवीजन में इलेक्ट्रिक इंजन की मेंटेनेंस की सुविधा ही नहीं है, लेकिन फर्जी तरीके से मेंटेनेंस का सर्टिफिकेट जारी किया जाता था. उन्होंने जांच रिपोर्ट में कहा है कि रेलवे को इस मामले की जांच करनी चाहिए कि जहां जांच की व्यवस्था ही नहीं है, वहां से सर्टिफिकेट कैसे जारी होता था.
जांच रिपोर्ट में फर्जी परीक्षणों को लेकर चिंता
रेलवे सुरक्षा आयोग की तरफ से भेजे गए पत्र में कहा गया है कि ऐसी उम्मीद की जाती है कि रेलवे ने एक ऐसा सिस्टम निर्धारित किया है, जिससे सुरक्षा जांच समय-समय पर होती रहे. हालांकि, हादसे की जांच के दौरान जो दस्तावेज रखे गए, उनसे सामने आया है कि इंजन की जांच के लिए समस्तीपुर संभाग की तरफ से न्यू कूचबेहार और आगरा फोर्ट के बीच इलेक्ट्रिक इंजन आवंटित किए गए. लेकिन इन दोनों ही स्थानों पर यात्रा परीक्षण की कोई व्यवस्था मौजूद नहीं है. तो रेलवे के सामने एक बड़ा जांच का विषय यह भी है कि आखिर इस तरह फर्जी परीक्षण कैसे हो सकते हैं.