‘द कश्मीर फाइल्स’ के कारण जम्मू-कश्मीर और उसका इतिहास फिर से सार्वजनिक-विमर्श के केन्द्र में आ गया है। फिल्म देखने के बाद अधिकांश दर्शक कश्मीर के इतिहास को नए सिरे से समझने-परखने की कोशिश कर रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद पिछले 70 वर्षों में लिखी गई पुस्तकों को लेकर भी दर्शकों के मन में एक अविश्वास की मानसिकता पैदा हो गई है। ”द कश्मीर फाइल्स” में कश्मीर की अनकही कहानियों को परदे पर देखकर पूरा देश उद्वेलित है।
इस फिल्म के कारण जम्मू-कश्मीर और उसके इतिहास के बारे में नए सिरे से जानने-समझने की उत्सुकता पैदा हुई है। जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में कुछ ऐसी पुस्तकें भी हैं, जो अनकही कहानियों का दस्तावेज बन गई हैं। इन पुस्तकों ने नए तथ्य और परिप्रेक्ष्य के माध्यम से जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में स्थापित आख्यानों को न केवल चुनौती दी, बल्कि उन्हें सही करने में मदद भी की।
प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री की पुस्तक ”जम्मू-कश्मीर के जननायक महाराजा हरिसिंह” डोगरा कालीन और भारत में संवैधानिक अधिमिलन के बाद के जम्मू-कश्मीर के इतिहास को समझने का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह पुस्तक महाराज हरिसिंह की भूमिका का निष्पक्ष मूल्यांकन करती है। इस प्रक्रिया में स्थापित हो चुके उन आख्यानों को चुनौती देती है, जो महाराजा हरिसिंह के सम्बंध में शरारतपूर्ण ढंग से स्थापित किए गए। स्वतंत्र देश बनाने सम्बंधी भ्रम, संवैधानिक अधिमिलन में विलम्ब कारणों का तथ्यपूर्ण विवेचन कर यह पुस्तक महाराज हरिसिंह के उज्जवल पक्ष से पाठकों को परिचित कराती ही है, शेख अब्दुल्ला और नेहरू की भूमिका का भी नए सिरे से मूल्यांकन करती है।
जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र के निदेशक आशुतोष भटनागर की पुस्तक ”जम्मू-कश्मीर: एक तथ्यपरक विश्लेषण” जम्मू-कश्मीर का तथ्यपूर्ण परिचय प्राप्त करने का सरस लेकिन अतिशय महत्वपूर्ण माध्यम है। इस पुस्तक की खूबी यह है कि इसमे जम्मू-कश्मीर के बारे में अधिकतम तथ्य पाठकों के समक्ष रखकर एक ऐसा परिप्रेक्ष्य गढने की कोशिश की गई है, जिससे पाठक सुसंगत और सही निष्कर्षों पर ही पहुंचता है। जम्मू-कश्मीर को लेकर 2010 के बाद जो नवजागरण देखने को मिलता है, उसमें इस पुस्तक की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस पुस्तक की लगभग 2 लाख प्रतियां बिक चुकी हैं।
कर्नल तेज कुमार टिक्कू की पुस्तक ”कश्मीर: इट्स एओरिजिन्स एण्ड देयर एक्जोडस” कश्मीर के सम्पूर्ण इतिहास को समझने के लिए महत्वपूर्ण पुस्तक है। इसमें कश्मीर के हिन्दू इतिहास, उत्कृष्ट ज्ञान परम्पराओं का विस्तृत विवरण तो है ही, इस्लामिक आक्रमणों के कारण अलग-अलग समय पर हुए कश्मीरी पंडितों निर्गमन का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। पिछले 700 वर्षो में कश्मीरी पंडितों पर किए गए अत्याचार, विस्थापन और निर्गमन का समग्र लेखा-जोखा इस पुस्तक में मिलता है। पुस्तक के अनुसार मजहबी अन्याय और अत्याचार के कारण अब तब 7 बार व्यापक पैमाने पर कश्मीरी पंडितों को घाटी से निर्गमन करना पड़ा है। मजहबी शासन की अन्य मतावलम्बियों के प्रति दृष्टि को समझने के लिए भी यह बहुत जरूरी पुस्तक है।
