बिहार की सियासत में इस बार एक बेहद दिलचस्प मोड़ देखने को मिल रहा है। जहानाबाद के पूर्व सांसद डॉ. अरुण कुमार के परिवार पर तीन अलग-अलग राजनीतिक दलों ने दांव खेला है। यह न केवल राजनीतिक रणनीति का उदाहरण है, बल्कि यह संकेत भी है कि बिहार चुनाव में भूमिहार समुदाय की भूमिका कितनी अहम हो चुकी है। महागठबंधन और एनडीए दोनों ही इस प्रभावशाली वर्ग को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।

 

**घोसी से मैदान में डॉ. अरुण कुमार के बेटे ऋतुराज**

पूर्व सांसद डॉ. अरुण कुमार के पुत्र ऋतुराज को जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने घोसी विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है। यह उनका पहला चुनाव है। नामांकन के दौरान क्षेत्र में समर्थकों का भारी जनसैलाब उमड़ा, जिसमें बड़ी संख्या में स्थानीय लोग, कार्यकर्ता और युवा शामिल हुए। ऋतुराज ने कहा कि वे युवाओं की आवाज बनकर काम करेंगे और शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार एवं बुनियादी सुविधाओं को अपनी प्राथमिकता में रखेंगे। उन्होंने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई और कहा कि वे क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए समर्पित रहेंगे।

 

**टिकारी से ‘हम’ पार्टी ने उतारा अनिल कुमार को**

डॉ. अरुण कुमार के बड़े भाई अनिल कुमार को जीतनराम मांझी की पार्टी ‘हम’ ने गया जिले की टिकारी सीट से टिकट दिया है। अनिल कुमार पहले से ही टिकारी से विधायक हैं और यह उनका पांचवां विधानसभा चुनाव होगा। इलाके में उनकी मजबूत पकड़ और संगठनात्मक कौशल को देखते हुए पार्टी ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है।

 

**भतीजा रोमित कुमार भी रण में उतरे**

इतना ही नहीं, डॉ. अरुण कुमार के भतीजे रोमित कुमार को भी ‘हम’ पार्टी ने गया की अतरी सीट से प्रत्याशी बनाया है। रोमित कुमार पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और जीतनराम मांझी के सांसद प्रतिनिधि हैं। वे लंबे समय से संगठन में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं और युवाओं के बीच लोकप्रिय चेहरा माने जाते हैं।

 

**भूमिहार वोट बैंक पर राजनीतिक खींचतान**

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हाल के दिनों में मगध क्षेत्र में भूमिहार नेताओं का झुकाव दोनों खेमों में बंटा हुआ दिखा है। जहां महागठबंधन ने जगदीश शर्मा के बेटे राहुल शर्मा को राजद में शामिल कर अपने पाले में किया है, वहीं एनडीए ने इसका संतुलन साधते हुए अरुण कुमार के बेटे ऋतुराज को टिकट देकर बड़ा संदेश दिया है।

मगध की राजनीति में भूमिहार समुदाय की पकड़ पुरानी और मजबूत रही है, और यही वजह है कि इस वर्ग को साधने के लिए दोनों गठबंधन पूरी ताकत से मैदान में उतर गए हैं।

 

डॉ. अरुण कुमार का परिवार अब तीन अलग-अलग सीटों और दो दलों में बंटा हुआ है, लेकिन राजनीति के केंद्र में वही हैं। यह चुनाव न केवल परिवार की साख की परीक्षा है, बल्कि यह भी तय करेगा कि भूमिहार समाज किस दिशा में झुकता है — एनडीए की ओर या महागठबंधन की तरफ। इतना तय है कि मगध की यह सियासी बाज़ी इस बार बिहार की बड़ी कहानी लिखेगी।

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