आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि माता- पिता न केवल अपने बच्चे को पढाई को लेकर दबाव डालते हैं बल्कि अपनी उम्मीद और अपेक्षाएं भी उनसे जाहिर करते हैं। एक हालिया अध्ययन में खुलासा हुआ है कि माता-पिता की बढ़ती अपेक्षाओं और आलोचना का छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर हानिकारक असर हो सकता हैं। अध्ययन के निष्कर्ष ‘फिजियोलॉजिकल बुलेटिन’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।

शोधकर्ताओं ने 20,000 से अधिक अमेरिकी, कनाडाई और ब्रिटिश कॉलेज के छात्रों के डेटा का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि पिछले 32 वर्षों में माता-पिता की अपेक्षाओं और आलोचना के फलस्वरूप युवा छात्र अपने भीतर निपुण होने की थोपी गई सोच विकसित कर लेते हैं। क्योंकि प्रत्येक माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा हर क्षेत्र में निपुण बने।

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में मनोवैज्ञानिक और व्यवहार विज्ञान के सहायक प्रोफेसर पीएचडी के प्रमुख शोधकर्ता थॉमस कुरेन ने कहा, निपुण होने की सोच अवसाद, चिंता, आत्म-नुकसान सहित कई मनोवैज्ञानिक विकारों में योगदान देता है।

कुरेन ने पहले मेटा-विश्लेषण में  7,000 से अधिक कॉलेज छात्रों के डेटा के साथ 21 अध्ययन किए। उन्होंने पाया कि छात्रों से बेहतरीन परिणामों के चक्कर में माता-पिता द्वारा की गई आलोचना हानिकारक हो सकती हैं। 

उन्होंने कहा, माता-पिता के लिए अपने बच्चों के बारे में चिंतित होना सामान्य बात है, लेकिन बच्चों पर किसी प्रकार का दबाव काफी खतरनाक हो सकता है। 

दूसरे मेटा-विश्लेषण में कुल 23,975 कॉलेज छात्रों के साथ 1989 और 2021 के बीच किए गए 84 अध्ययन शामिल हैं।

 माता-पिता कर सकते हैं मदद
कुरेन ने कहा कि माता-पिता अपने बच्चों को यह सिखाकर सामाजिक दबावों को स्वस्थ तरीके से निपटने में मदद कर सकते हैं कि असफलता या अपूर्णता जीवन का एक सामान्य और स्वाभाविक हि है।
सीखना और विकास पर ध्यान केंद्रित करना सोशल मीडिया पर सम्मान नहीं बल्कि  बच्चों को स्वस्थ आत्म-सम्मान विकसित करने में मदद करता है, जो दूसरों के सत्यापन पर निर्भर नहीं करता है।

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