बिहार के गया जिले में एक बेहद शर्मनाक मामला सामने आया है, जहाँ शिक्षा के मंदिर को कुछ लोगों ने अपनी लालच की भेंट चढ़ा दिया। फतेहपुर थाना क्षेत्र के फतेहपुर मध्य विद्यालय में मध्यान्ह भोजन योजना के तहत छात्रों को दिए जाने वाले चावल की चोरी का मामला उजागर हुआ है। इस घटना ने जिले भर में सनसनी फैला दी है और शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

मामला 6 मई का बताया जा रहा है। उस दिन सरकारी छुट्टी के कारण स्कूल बंद था। इसी का फायदा उठाते हुए विद्यालय के सहायक शिक्षक संजीत कुमार स्कूल में रखा चावल चुपचाप बाजार में बेचने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन पास के कुछ स्थानीय लोगों ने इस करतूत को अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर लिया और वीडियो को सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। वीडियो के सामने आते ही जिला प्रशासन हरकत में आ गया।

जिला पदाधिकारी डॉ. त्याग राजन एसएम ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तुरंत संज्ञान लिया और फतेहपुर थाना में प्राथमिकी दर्ज करने तथा संबंधित शिक्षक को 24 घंटे के अंदर निलंबित करने का आदेश दिया। डीएम के इस त्वरित फैसले के बाद गया शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया।

डीएम डॉ. त्याग राजन ने साफ तौर पर कहा कि यह मामला बेहद गंभीर है क्योंकि यह न केवल सरकारी संपत्ति की चोरी है, बल्कि गरीब छात्रों के अधिकारों का हनन भी है। “मध्यान्ह भोजन योजना के तहत छात्रों को दिया जाने वाला चावल बाजार में बेचा जा रहा था, जो कि पूरी तरह अस्वीकार्य है,” उन्होंने कहा।

डीएम ने जिला शिक्षा पदाधिकारी को सख्त निर्देश दिए हैं कि वे जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (पीएम पोषण योजना), प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी फतेहपुर तथा प्रखंड साधन सेवी पीएम पोषण योजना से 24 घंटे के भीतर स्पष्टीकरण लें। अगर उनके जवाब संतोषजनक नहीं पाए गए, तो उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाएगी।

इसके अलावा विद्यालय के प्रधानाध्यापक अनिल कुमार दास से भी इस मामले में स्पष्टीकरण मांगा गया है। डीएम ने स्पष्ट किया है कि प्रधानाध्यापक की जिम्मेदारी भी तय की जाएगी और उन पर भी उचित कार्रवाई की जाएगी, क्योंकि स्कूल में हो रही गतिविधियों पर उनकी निगरानी रहनी चाहिए थी।

जांच में यह भी सामने आया कि इस चोरी में स्कूल के रसोईया जितेश कुमार की भी भूमिका थी। उसे भी चिह्नित कर लिया गया है और उसके खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दे दिया गया है। शिक्षा विभाग ने दोनों दोषियों को मध्याह्न भोजन योजना में भ्रष्टाचार फैलाने का जिम्मेदार मानते हुए सख्त कदम उठाया है।

गया जिले की इस घटना ने यह दिखा दिया है कि भ्रष्टाचार अब शिक्षा जैसी पवित्र व्यवस्था में भी अपनी जड़ें जमा चुका है। जहां छात्रों को पढ़ाई और पोषण दोनों की जरूरत होती है, वहां कुछ शिक्षक अपने निजी स्वार्थ के लिए बच्चों के भोजन तक में कटौती कर रहे हैं। यह न केवल कानूनी अपराध है, बल्कि नैतिक पतन का भी उदाहरण है।

जिला प्रशासन की त्वरित कार्रवाई और डीएम के सख्त रुख से यह स्पष्ट है कि अब ऐसे मामलों में किसी तरह की ढिलाई नहीं बरती जाएगी। यह कदम एक मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है, जिससे भविष्य में कोई भी शिक्षक या अधिकारी इस तरह की हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा।

**निष्कर्ष:**
शिक्षा और बच्चों के पोषण से जुड़ी योजनाओं में पारदर्शिता और निगरानी की सख्त जरूरत है। गया की यह घटना एक चेतावनी है कि यदि सतर्कता नहीं बरती गई तो ऐसे मामले बच्चों के भविष्य को नुकसान पहुँचा सकते हैं। जिला प्रशासन की त्वरित कार्रवाई सराहनीय है और उम्मीद की जानी चाहिए कि दोषियों को सख्त सजा मिलेगी ताकि शिक्षा का मंदिर फिर से पवित्र बना रह सके।

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