श्रीदुर्गासप्तशती दुर्गा पूजा के दौरान नवरात्र में ज्यादातर लोग श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ करते हैं। यह पुस्तक संस्कृत में लिखी हुई है। परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज ने इस पुस्तक को संपादित किया है। नया संपादित पुस्तक भी संस्कृत में ही है।
भागलपुर। श्रीदुर्गासप्तशती : देवी दुर्गा की आराधना के लिए नवरात्र का विशेष महत्व है। नवरात्र के दौरान हिंदू धर्म मानने वाले ज्यादातर लोग अपने-अपने घरों में श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ करते हैं। कहीं लोग मंदिर में तो कई जहां देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है, वहां बने पंडाल में श्रीदुर्गासप्तशती कर पाठ करते हैं। हालांकि, देखा जाता है कि ज्यादातर लोग अपने-अपने घरों में ही देवी दुर्गा की छोटी प्रतिमा या तस्वीर के सामने बैठकर श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ करते हैं। पहली पूजा से लेकर नौवीं तक यह सिलसिला चलता है।
श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ करने से सभी का कल्याण होता है। देवी की विशेष कृपा इनपर होती है। श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक की मूल कृति संस्कृत भाषा में लिखी है। हालांकि, पाठ करने वाले ज्यादातर लोगों को श्रीदुर्गासप्तशती का ज्यादातर श्लोक, छंद आदि याद हो जाता है। इसके बावजूद अगर आपको श्रीदुर्गासप्तशती संस्कृत में पढ़ने में परेशानी होती है तो आप इस पुस्तक से पाठ कर सकते हैं।
श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक का संपादन परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज ने किया है। परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज श्रीशिवशक्ति योगपीठ के पीठाधीश्वर हैं। इस पुस्तक का नाम भी श्रीदुर्गासप्तशती ही है। इस पुस्तक के आत्मनिवेदन में स्वामी आगमानंद जी महाराज ने लिखा है कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती। पुत्र अपराध पर अपराध क्यों न करता जाता हो फिर भी माता उसकी उपेक्षा नहीं करती। उन्होंने कहा कि श्रीदुर्गासप्तशती को उन्होंने और सरल करने का प्रयास किया है। इसमें अगर कुछ भी त्रुटि है तो देवी दुर्गा उसे क्षमा करेंगी। इसके बाद पुस्तक में पूजन-विधि भी लिखा हुआ है।
स्वामी आगमानंद जी द्वारा महाराज संपादित श्रीदुर्गासप्तशती काफी आकर्षक है। अब तक इस पुस्तक के पांच संस्करण निकल चुके हैं। यह पुस्तक भी संस्कृत में है, लेकिन अपने संपादन की विशिष्ट शैली के कारण लोगों को इस पुस्तक से संस्कृत पढ़ने में काफी आसानी होती है। प्रत्येक शब्द को छोटा-छोटा करने का प्रयास किया गया है, ताकि पढ़ने में आसानी हो। तीन-चार वर्ण को मिलाकर अक्षर बनाया गया है। इस तरह से पाठ करने में स्वर भी बेहतर रहता है। इस पुस्तक में श्रीदुर्गासप्तशती के 13 अध्याय के अलावा देवी दुर्गा की आराधना के लिए कई मंत्र व पूजन विधि है। अंत में एक दर्जन आरती भी पुस्तक में समाहित किया गया है।