बिहार के ऐतिहासिक शहर गया की पहचान सिर्फ धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामरिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण रही है। द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध तक, गया और खासकर पंचानपुर-दरियापुर क्षेत्र का डिफेंस एयरबेस एक निर्णायक भूमिका में रहा है। यह एयरबेस न केवल ब्रिटिश हुकूमत के समय में बना, बल्कि स्वतंत्र भारत में भी इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही।

**द्वितीय विश्व युद्ध का गवाह:**
ब्रिटिश शासन के दौरान गया के पंचानपुर-दरियापुर में एयरबेस का निर्माण किया गया था। इसका उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सैनिकों द्वारा सैन्य अभियानों में किया गया। यह एयरबेस ब्रिटिश फौज के लिए एक अहम ठिकाना था, जहां से सैनिकों को हवाई मार्ग से युद्धक्षेत्र में भेजा जाता था। यहां पर हथियार और जरूरी सामानों की आवाजाही भी होती थी।

**1971 का भारत-पाक युद्ध और पंचानपुर एयरबेस:**
1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान यह एयरबेस एक बार फिर सक्रिय हो उठा। भारत की सैन्य रणनीति में पंचानपुर एयरबेस ने अहम भूमिका निभाई। युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के विमान यहीं से उड़ान भरते थे। एयरबेस की भौगोलिक स्थिति सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत लाभकारी रही, जिससे भारतीय सेना को कई मोर्चों पर बढ़त मिली।

**90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों का कैदगाह बना गया:**
मगध विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और वैज्ञानिक रंजीत कुमार सिन्हा के अनुसार, 1971 के युद्ध में लगभग 90 से 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। इनमें से एक बड़ी संख्या को पंचानपुर-दरियापुर एयरबेस में स्थित अस्थायी सैनिक छावनियों में रखा गया। यहां कड़ी सुरक्षा व्यवस्था थी। वॉच टावर, ऊंची दीवारें और कंटीली तारों से चारों ओर घिरा यह स्थान पूरी तरह सैन्य नियंत्रण में था।

**50 हजार से अधिक बांग्लादेशी शरणार्थियों का ठिकाना बना पंचानपुर:**
1971 के युद्ध के दौरान जब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हिंसा और दमन चरम पर था, तब लाखों लोग भारत की ओर पलायन करने लगे। गया का पंचानपुर एयरबेस उन बांग्लादेशी शरणार्थियों के लिए आश्रय स्थल बना। यहां करीब 50 हजार से ज्यादा शरणार्थियों को रखा गया था, जिनमें महिलाएं, पुरुष और बच्चे शामिल थे। सरकार ने उनके रहने, खाने-पीने और दवाइयों की व्यवस्था की थी।

**स्थानीय लोगों की सक्रिय भागीदारी:**
गया के टिकारी क्षेत्र के ग्रामीण भी इस मानवीय संकट के समय आगे आए। 65 वर्षीय अर्जुन यादव बताते हैं कि उस दौर में पहली बार पंचानपुर में बसें रुकने लगीं, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलने लगा। बांग्लादेशी शरणार्थियों के साथ घुलते-मिलते ग्रामीणों ने बांग्ला भाषा के कुछ शब्द भी सीख लिए थे।

**आधुनिक युद्ध के बदलते स्वरूप में पंचानपुर की सामरिक भूमिका:**
ब्रिटिश काल में बने इस एयरबेस को कभी दमदम एयरबेस के बाद देश का दूसरा सबसे बेहतरीन सैन्य ठिकाना माना जाता था। 900 एकड़ की इस भूमि का 300 एकड़ हिस्सा आज दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए उपयोग किया जा रहा है। बाकी हिस्सा अभी भी डिफेंस के अधीन है। पंचानपुर की सामरिक स्थिति आज भी देश के लिए रणनीतिक दृष्टि से अहम है।

**शिमला समझौता और युद्धबंदियों की वापसी:**
1971 के युद्ध के बाद शांति स्थापना के लिए 1972 में शिमला समझौता हुआ, जिसके तहत पाकिस्तानी युद्धबंदियों को उनके देश लौटाया गया। तब तक पंचानपुर एयरबेस ने एक विशाल युद्धबंदी शिविर के रूप में कार्य किया था।

**निष्कर्ष:**
आज जब भारत-पाक संबंधों में फिर से तनाव की स्थिति बनती है, गया और पंचानपुर के लोग 1971 की घटनाओं को याद करते हैं। यह एयरबेस इतिहास की कई परतों को समेटे हुए आज भी वहां मौजूद है। अगर इस एयरबेस का पुनरुद्धार किया जाए, तो यह फिर से राष्ट्रीय सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। पंचानपुर सिर्फ एक भू-भाग नहीं, बल्कि भारत की सैन्य और मानवीय विरासत का प्रतीक है।

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