सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मंगलवार को सर्वसम्मति से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा, समलैंगिक जोड़ों के विवाह को मंजूरी देने के लिए कानून बनाने का काम संसद का है।

इसके साथ ही पीठ ने केंद्र सरकार को समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों की समीक्षा के लिए उच्चस्तरीय समिति बनाने का आदेश दिया।

हालांकि, कोर्ट ने समलैंगिकों के समान अधिकारों और उनकी सुरक्षा को मान्यता दी और लोगों से संवेदनशील होने का अह्वान किया।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस. रविंद्र भट, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया।

कानून द्वारा मान्यता प्राप्त विवाह को छोड़कर शादी का कोई असीमित अधिकार नहीं है।

समलैंगिक जोड़े विवाह का मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते।

अदालत कानून नहीं बना सकती, सिर्फ उनकी व्याख्या कर सकती है।

सरकारों को निर्देश

1. समलैंगिक अधिकारों के बारे में केंद्र-राज्य सरकारें लोगों को जागरूक करें

2. लिंग परिवर्तन ऑपरेशन की मंजूरी उस आयु तक न दें जब तक ऐसा कराने के इच्छुक लोग नतीजे पूरी तरह समझने में सक्षम न हों

3. पुलिस समलैंगिक जोड़ों के खिलाफ प्राथमिकी से पहले प्रारंभिक जांच करे

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