भागलपुर। पीरपैंती में 2400 मेगावाट क्षमता वाले अत्याधुनिक विद्युत उत्पादन संयंत्र का आज देश के प्रधानमंत्री द्वारा ऑनलाइन वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से शिलान्यास किया गया। कार्यक्रम को लेकर क्षेत्र में उत्साह भी देखा गया, लेकिन साथ ही कुछ महत्वपूर्ण सवालों को लेकर जनता में नाराजगी और विरोध भी तेज हो गया है। स्थानीय लोग इसे लेकर आंदोलन की राह पर आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं।
शिलान्यास के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठा कि सरकार ने इस परियोजना के लिए अदानी समूह को मात्र 1 रुपये प्रति वर्ष के नाममात्र के दर पर जमीन 33 वर्षों के लिए लीज पर दे दी है। किसानों का कहना है कि यह उनके अधिकारों का हनन है और इससे स्थानीय समुदाय की जमीन बड़ी कंपनियों के हाथ में चली जाएगी। क्षेत्र के लोगों का कहना है कि विकास होना चाहिए, लेकिन इसकी कीमत किसानों और प्रकृति को नुकसान पहुँचाकर नहीं चुकाई जा सकती।
दूसरा बड़ा मुद्दा यह है कि इस परियोजना के लिए 10 लाख पेड़ काटे जाने की योजना है। यह खबर मिलते ही इलाके में गहरा आक्रोश फैल गया है। कई पर्यावरण प्रेमियों और ग्रामीणों ने सवाल उठाया कि एक तरफ भारत सरकार ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान चला रही है ताकि पर्यावरण को बचाया जा सके, वहीं दूसरी तरफ बिहार सरकार ‘बेटी के जन्म पर एक पेड़ लगाने’ का संदेश देती है। ऐसे में पेड़ों की इतनी बड़ी कटाई से पर्यावरण को भारी नुकसान होगा, जिससे जलवायु, वर्षा और स्थानीय जीवन प्रभावित होंगे।
किसानों का कहना है कि वे विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उन्हें डर है कि परियोजना के नाम पर उनके खेत, वन और जीवन-यापन के साधन छिन जाएंगे। साथ ही पर्यावरण के संकट से उनकी आजीविका और भविष्य दोनों पर संकट मंडरा रहा है।
इस मुद्दे पर कांग्रेस नेता प्रवीण सिंह ने बयान दिया कि “जनता की जमीन को जबरन कब्जा किया जा रहा है। विकास के नाम पर छल किया जा रहा है। यह परियोजना आम लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ कर रही है। सरकार को किसानों और पर्यावरण का ध्यान रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए।”
स्थानीय नागरिकों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी बातों को नहीं सुना गया तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे। कई संगठनों ने जनसभा करने और हस्ताक्षर अभियान चलाने की भी योजना बनाई है ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके।
वहीं प्रशासन का कहना है कि परियोजना से क्षेत्र में रोजगार बढ़ेगा और ऊर्जा उत्पादन में मदद मिलेगी। लेकिन जनता का कहना है कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए बिना कोई योजना सफल नहीं हो सकती।
पीरपैंती में यह मुद्दा अब केवल एक परियोजना का नहीं, बल्कि विकास बनाम पर्यावरण और किसानों के अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बन गया है। आने वाले दिनों में यह आंदोलन किस दिशा में जाएगा, यह पूरे राज्य की निगाहें लगाए बैठा है।