राज्य महिला आयोग में दर्ज हुए 30 से अधिक मामले, छोटे दिखावे पर टूटी सगाई और रिश्ते
जहां समाज में यह कहा जाता है कि “शक्ल नहीं, सीरत मायने रखती है,” वहीं अब यह सोच धीरे-धीरे बदलती दिखाई दे रही है। दिखावे और फैशन सेंस ने रिश्तों की परिभाषा तक बदल दी है। सुनने में अजीब जरूर लगता है, लेकिन बिहार में अब ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं, जहां लड़कियां सिर्फ इसलिए ठुकरा दी गईं क्योंकि उनके कपड़े, चप्पल या दुपट्टा किसी की पसंद के मुताबिक नहीं था।
पिछले तीन महीनों में बिहार राज्य महिला आयोग में 30 से ज्यादा ऐसे मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें लड़कों ने सगाई के बाद या शादी तय होने के बाद रिश्ता तोड़ दिया। वजह — “लड़की मॉडर्न नहीं दिखती”, “गांव की लगती है” या “लेटेस्ट फैशन की समझ नहीं रखती।” अब रिश्ते दिल से नहीं, बल्कि दिखावे से तय हो रहे हैं।
पटना के दानापुर की रहने वाली स्वाति (बदला हुआ नाम) की सगाई धूमधाम से हुई थी। इंगेजमेंट के कुछ दिनों बाद जब दूल्हा उससे ऑफिस में मिलने गया, तो स्वाति उस दिन ऑफिस ड्रेस कोड के कारण चप्पल पहनकर आई थी। बस, यही बात लड़के को नागवार गुज़री। उसने कहा कि “इतनी सादी चप्पल पहनने वाली लड़की उसके साथ सूट नहीं करेगी।” और बिना कुछ सोचे-विचारे शादी से इनकार कर दिया।
पटना जिले के पुनपुन की नेहा (बदला हुआ नाम) की शादी फरवरी 2026 में तय थी। जब लड़का अपने परिवार के साथ तारीख तय करने नेहा के घर पहुंचा, तो नेहा ने पारंपरिक सलवार सूट और सिर पर दुपट्टा ओढ़ रखा था। लड़के ने मज़ाकिया लहजे में कहा—“ये तो गंवार लग रही है।” कुछ ही दिनों बाद रिश्ता तोड़ दिया गया।
बिहार राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष अप्सरा ने बताया कि पहले लोग शादी के बाद के झगड़े लेकर आयोग आते थे, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। “अब रिश्ते बनने से पहले ही टूट रहे हैं। कुछ लड़के छोटी-छोटी बातों में खामी निकालकर शादी से इंकार कर रहे हैं।”
उन्होंने बताया कि आयोग ने ऐसे सभी मामलों में दोनों पक्षों को बुलाया है और रिश्ते को दोबारा जोड़ने की कोशिश की जा रही है। अप्सरा ने कहा—“किसी की सादगी या पहनावे को लेकर रिश्ते तोड़ना सामाजिक रूप से गलत संदेश देता है। फैशन और आधुनिकता रिश्ते की नींव नहीं हो सकती।”
विशेषज्ञों का कहना है कि आज के समय में सोशल मीडिया और दिखावे की दुनिया में “पर्सनैलिटी” का मतलब सिर्फ चेहरा या कपड़े रह गया है। लेकिन शादी जैसे रिश्ते में सबसे अहम बात होती है — समझ, संस्कार और विचारों की समानता। अगर समाज फैशन के आधार पर रिश्ते तय करने लगा, तो असल “सीरत” पीछे छूट जाएगी।
बिहार में बढ़ते इन अजीबो-गरीब मामलों ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या अब सादगी “पुरानी फैशन” बन चुकी है, और क्या आधुनिकता की परिभाषा सिर्फ कपड़ों से तय होगी?
समाज को शायद अब इस सवाल का जवाब ढूंढना होगा।
