बिहार में हाल ही में रामनवमी के बाद जिस तरह से राज्य के 5 जिलों में सांप्रदायिक दंगे भड़के उसके बाद से ही कई सवाल उठने लगे. दरअसल यहां सवाल बिहार के दंगों का नहीं था, ना ही सवाल इस बात का था कि यहां की प्रशासन इन दोनों को काबू करने में नाकामयाब रही. दरअसल यहां की पूरी कहानी और बिहार में आजादी के बाद से जो दंगों का इतिहास रहा है वह देश में सबसे अलग रहा है. बिहार केवल सांप्रदायिक हिंसा के लिए ही नहीं बल्कि जातीय नरसंहार के लिए भी कुख्यात प्रदेश रहा है. 

बिहार में आजादी के बाद से कई हजारों छोटे-बड़े दंगे हुए हैं और एक रिपोर्ट की मानें तो दंगों के मामले में बिहार अव्वल रहा है. हालांकि पिछले कुछ सालों से बिहार में दंगों के नंबर्स में कमी देखी गई लेकिन आपको बता दें कि आज भी बिहार सांप्रदायिक दंगों के मामले में नंबर एक प्रदेश ही बना हुआ है जबकि कर्नाटक और ओडिशा जैसे प्रदेश भी इस मामले में बिहार के बाद आते हैं. 

यह वही बिहार है जो आजादी से पहले और आजादी के बाद भी दंगों की आग में जलता रहा है. देश विभाजन के समय तो बिहार दंगों में हजारों लोगों की मौत हो गई थी. 1989 का भागलपुर गंदा सबको याद होगा इससे देश के सबसे बड़े दंगों में गिना जाता रहा है. अभी रामनवमी के बाद बिहारशरीफ और सासाराम में सांप्रदायिक तनाव ऐसा फैला कि कई दिनों के बाद इसपर काबू पाया जा सका. आपको बता दें कि बिहारशरीफ में तो लगातार दंगों का इतिहास रहा है. 

सांप्रदायिक हिंसा के अलावा बिहार में जातीय नरसंहार की कई ऐसी घटनाएं घटीं जिसने बिहार को दहला कर रख दिया. इसमें सवर्ण से लेकर, दलित, पिछड़े सभी इसकी भेंट चढ़े. आपको उर्दू भाषा को लेकर रांची का दंगा याद होगा. तब रांची बिहार का ही हिस्सा हुआ करता था. इसके बाद तब के बिहार और अब के झारखंड का हिस्सा रहे दक्षिण बिहार के जमशेदपुर और हजारीबाग में कई दंगे हुए. 

जब देशभर में राममंदिर आंदोलन चल रहा था तब भी बिहार कई बार दंगों की आग में झूलसा, भागलपुर में तो इस दंगे की आग में 1000 से ज्यादा लोग मारे गए. भागलपुर के 18 प्रखंडों के 194 गावों में फैला वह 1989 का दंग ऐसा था जो कई महीनों तक चलता रहा और इसमें 1100 से ज्यादा लोग मारे गए थे. इस दंगे ने बिहार की राजनीति बदलकर रख दी. बिहार में लालू यादव का राजनीतिक उदय तभी से हुआ और मुस्लिम-यादव समीकरण पर काम शुरू हो गया. भागलपुर में यूं तो सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास काफी पुराना रहा था जैसे आजादी से पहले 1924, 1936, 1946 और आजादी के बाद  1967 लेकिन इतने बड़े दंगे कभी वहां नहीं हुए थे. 

बिहार का बिहारशरीफ केवल नाम के लिए शरीफों की बस्ती रहा है लेकिन यह कई बार दंगों की आग में झुलसता रहा है. 2000 में एक दंगा यहां भड़का लेकिन उसपर तुरंत काबू पा लिया गया. 1981 में भी बिहार शरीफ का वह दंगा किसी से भुलाए नहीं भूला होगा जिसमें सैकड़ों की संख्या में मानवता की जान गई हालांकि सरकारी आंकड़े 50 की मौत के ही थे. सप्ताह भर उस आग में तब बिहारशरीफ जला था. 

वहीं सीतामढ़ी का वह दंगा आज भी लोगों को अंदर तक हिला कर रख देता है. 1992 में यहां दो समुदायों के बीच हिंसा भड़क गई थी. इस हिंसा में 65 लोग मारे गए थे और सैंकड़ों घायल हो गए थे. 

बता दें कि रामनवमी पर 2018 को भागलपुर में हिंसा भड़क उठी इसको जब तक काबू किया गया यह प्रदेश के आठ जिलों में फैल गई. इसी दौरान कुछ अज्ञात लोगों ने नवादा में एक हनुमान मूर्ति को तोड़ दिया और सीवान, गया, कैमूर, समस्तीपुर, मुंगेर, औरंगाबाद, नालंदा, हैदरगंज और रोसेरा में इसके बाद फिर से हिंसा भड़क उठी.

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