भागलपुर के तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) में अतिथि व्याख्याता के चयन को लेकर एक गंभीर मामला सामने आया है। गलत जाति प्रमाण पत्र के कथित उपयोग के आधार पर चयन किए जाने का आरोप लगाते हुए डॉ. राजीव कुमार साह ने इस पूरे प्रकरण की लिखित शिकायत राजभवन, मुख्यमंत्री कार्यालय, उच्च शिक्षा विभाग, टीएमबीयू के कुलपति और विश्वविद्यालय के कुलसचिव से की है। इस मामले ने विश्वविद्यालय प्रशासन की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
डॉ. राजीव कुमार साह ने अपने आवेदन में आरोप लगाया है कि समाजशास्त्र विषय में चयनित एक महिला अभ्यर्थी का चयन नियमों के विपरीत किया गया। उनका कहना है कि संबंधित अभ्यर्थी का चयन जनरल कोटि में होना चाहिए था, लेकिन उन्होंने कथित तौर पर फर्जी नॉन क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट का इस्तेमाल कर अपनी वास्तविक स्थिति छिपाई और ओबीसी महिला (OBCW) श्रेणी का लाभ लेकर अतिथि व्याख्याता पद हासिल किया।
डॉ. राजीव कुमार के अनुसार, इस मुद्दे को उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति के समक्ष रखने के साथ-साथ सिंडिकेट की बैठक में भी उठाया था। बताया गया कि सिंडिकेट की बैठक में एक सदस्य ने मदन अहिल्या महाविद्यालय, नवगछिया में कार्यरत अतिथि शिक्षिका डॉ. चंद्रमणि के जाति प्रमाण पत्र से जुड़ा मामला रखा था। मामले की गंभीरता को देखते हुए विश्वविद्यालय के कुलसचिव ने डॉ. चंद्रमणि को पत्र जारी कर नवीनतम जाति प्रमाण पत्र और सक्षम प्राधिकार द्वारा निर्गत नॉन क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था।
हालांकि, आरोप है कि उक्त पत्र का कोई जवाब प्राप्त होने से पहले ही टीएमबीयू प्रशासन ने डॉ. चंद्रमणि की सेवा विस्तार से संबंधित अधिसूचना जारी कर दी। इस कार्रवाई को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन पर जल्दबाजी और नियमों की अनदेखी का आरोप लगाया जा रहा है।
डॉ. राजीव कुमार साह ने यह भी दावा किया है कि टीएमबीयू में डॉ. चंद्रमणि ने ओबीसी महिला श्रेणी का प्रमाण पत्र जमा कर नियुक्ति प्राप्त की, जबकि पूर्णिया विश्वविद्यालय में उन्होंने जनरल कैटेगरी में आवेदन किया था। ऐसे में एक ही व्यक्ति के पास दो अलग-अलग श्रेणी के प्रमाण पत्र होने का सवाल उठ रहा है।
पूरे प्रकरण की खास बात यह है कि जिन दस्तावेजों में कथित हेराफेरी का आरोप लग रहा है, उनकी विधिवत जांच किए बिना ही संबंधित अतिथि शिक्षिका की सेवा विस्तार कर दी गई। डॉ. राजीव कुमार ने राजभवन से मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। बताया जा रहा है कि राजभवन ने इस पर संज्ञान तो लिया है, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन पर अब भी मामले को लटकाने और लालफीताशाही अपनाने के आरोप लग रहे हैं। यह देखना अहम होगा कि इस प्रकरण में आगे क्या कार्रवाई होती है।
