मोहब्बत का स्वाद हर जुबान के लिए अलग अलग होता है. इस विषय पर कोई भी एकमत नहीं होता. कोई प्यार में सबकुछ लुट जाने की बात करता है तो कोई कहता उसने प्यार कर के ज़िंदगी का सबसे अनमोल खजाना पा लिया. प्यार जिनके लिए जिंदगी का सबसे नायाब तोहफा है वो अपने साथी के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार होते हैं. प्रेम का ऐसा ही एक प्रबल उदाहरण हैं डॉक्टर सुरेश चौधरी और उनकी पत्नी.
पत्नी को बचाने के लिए सबकुछ लगा दिया दांव पर
इन दोनों की प्रेम कहानी जानने के बाद प्रेम पर आपका विश्वास और मजबूत हो जाएगा. डॉक्टर सुरेश किसी प्रेम की वजह से अपनी पत्नी को मौत के मुंह से वापस ले आए. उन्होंने पत्नी को बचाने के लिए अपनी धन दौलत, यहां तक नौकरी भी दांव पर लगा दी. पत्नी के इलाज में लगे सवा करोड़ रुपये जमा करने के लिए डॉक्टर सुरेश ने अपनी MBBS की डिग्री तक 70 लाख में गिरवी रख दी.
कोरोना काल में लगा खुशियों को ग्रहण
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 32 वर्षीय डॉक्टर सुरेश चौधरी राजस्थान, पाली के खैरवा गांव के रहने वाले हैं तथा अभी पीएचसी में पोस्टेड हैं. उनकी पत्नी इनके 5 साल के बच्चे के साथ गांव में ही रहती हैं. दोनों की ज़िंदगी बहुत आराम से कट रही थी लेकिन मई 2021 में कुछ ऐसा हुआ कि इनकी ज़िंदगी की खुशहाली को ग्रहण लग गया. कोरोना की दूसरी लहर जब अपने चरम पर थी उसी बीच उनकी पत्नी अनिता चौधरी बुखार की चपेट में आ गईं. 13 मई को अनीता की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई. इसके बाद तो हर मिनट बाद उनकी सेहत बिगड़ने लगी.
इस बीच अस्पताल बेड की भी दिक्कत चल रही थी, जिससे अनीता को भी जूझना पड़ा. आखिरकार 14 मई को अनीता को जोधपुर एम्स में भर्ती कर लिया गया. डॉक्टर सुरेश भी उस समय एक डॉक्टर का फर्ज निभा रहे थे. वह दो दिन तक ही अपनी पत्नी के पास रह सके. इसके बाद अपने रिश्तेदार को पत्नी के पास छोड़ ड्यूटी पर लौट आए.
बिगड़ती रही हालत
इसके बाद वह 30 मई को फिर जोधपुर एम्स में पत्नी से मिलने जब पहुंचे तो देखा कि उनकी हालत और ज्यादा बिगड़ गई थी. छोटे वेंटिलेटर पर पड़ी उनकी पत्नी के लंग्स का 95% हिस्सा खराब हो चुका था. डॉक्टरों ने बचने की बहुत कम उम्मीद बताई लेकिन सुरेश ये नहीं होने देना चाहते थे. उन्होंने पत्नी को बचाने के लिए उनकी मौत से लड़ने का फैसला किया और उन्हें अहमदाबाद ले गए. 1 जून को उन्होंने अनीता को प्राइवेट हॉस्पिटल जायड्स में भर्ती करवाया.
अनीता का वजन गिरता जा रहा था. वह 50 किलो से 30 किलो की हो गई थीं. शरीर में खून की मात्र केवल डेढ़ यूनिट बची थी. यहां तक कि अनीता के हार्ट और लंग्स ईसीएमओ मशीन के सहारे बाहर से ऑपरेट हो रहे थे. मशीनों के सहारे जी रही अनीता के इलाज में हर रोज एक लाख रुपए से ज्यादा खर्चा हो रहा था. अस्पताल की इस फीस ने डॉक्टर सुरेश को कर्ज के बोझ तले दबा दिया था लेकिन उन्हें इसकी परवाह कहां थी उन्हें तो किसी भी हाल में अपनी पत्नी को बचाना था.
डॉक्टर सुरेश के विश्वास की जीत हुई
उनकी यही उम्मीद और विश्वास काम आया और उनकी दुआओं ने असर दिखा दिया. 87 दिन तक मशीन के सहारे जिंदा रही अनिता के लंग्स में सुधार होना शुरू हुआ और वो बोलने लगीं. सुधार जारी रहा और कुछ ही दिनों में उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया.
डॉक्टर सुरेश चौधरी ने अनीता को तो बचा लिया लेकिन खुद को कर्ज के बोझ तले दबने से नया बचा पाए. उन्होंने मीडिया से बताया कि उन्होंने अपनी MBBS की डिग्री के रजिस्ट्रेशन नंबर 4 बैंकों में गिरवी रख 70 लाख का लोन लिया. इसकी गारंटी के लिए कैंसिल चेक बैंक में रखे. सुरेश ने बैंकों से करार किया है वक्त रहते लोन नया चुका पाने की स्थिति में बैंक उनकी एमबीबीएस की डिग्री निरस्त करा सकते थे.
लेकिन इसका भी गम उन्हें नहीं था, वह तो इस बात से खुश थे कि वह अपनी पत्नी को बचाने में कामयाब हो पाए. सुरेश का कहना है कि उन्होंने अपनी पत्नी से सात जन्म तक साथ निभाने का वादा किया है. इसीलिए वह उन्हें अपनी आंखों के सामने कैसे मरने देता. सुरेश कहते हैं पैसे तो वह फिर कमा लेंगे लेकिन उनकी पत्नी को कुछ हो जाता तो वह भी जिंदा नहीं रह पाते.