राजद प्रमुख लालू प्रसाद से संबल लेकर नीतीश कुमार भाजपा के विरुद्ध नए मिशन पर चल पड़े हैं। उन्हें अलग-अलग दिशाओं में चल रहे विपक्षी दलों को सीधी राह पर लाना है। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प खड़ा करना है। क्षेत्रीय दलों की महत्वाकांक्षा को महत्व देने के लिए कांग्रेस को राजी करना है। तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) को साधना है। बिहार में नीतीश के नेतृत्व में वामदलों के साथ महागठबंधन की सरकार तो चल ही रही है, उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भी जदयू के सीध में लाना है। ऐसे में लालू के साथ-साथ शरद पवार, जगन मोहन रेड्डी, फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, हेमंत सोरेन, ओम प्रकाश चौटाला एवं प्रकाश सिंह बादल जैसे नेता नीतीश के प्रयासों में मददगार हो सकते हैं। ये ऐसे नेता हैं, जिनका अपने-अपने राज्य में प्रभाव है और नीतीश कुमार के प्रति सद्भावना भी रखते हैं। हालांकि इसका मतलब यह भी नहीं कि सभी विपक्षी दलों को साधकर एक मंच पर लाने के रास्ते में अवरोध नहीं हैं।

नीतीश ने अपने मिशन की शुरुआत कांग्रेस से मिलकर की है। स्पष्ट है कि वह कांग्रेस के राष्ट्रीय स्वरूप को स्वीकार करते हैं। बुरे दौर में भी कांग्रेस का आकार-प्रकार बड़ा है। विपक्षी खेमे में भूमिका भी बड़ी हो सकती है। राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने वाले हैं। इसका अर्थ है कि कांग्रेस अपने रास्ते पर अकेले बढ़ रही है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार पहले से ही विपक्ष को एक करने के प्रयास में हैं। ऐसे में महाराष्ट्र में बहुत मुश्किल नहीं है। भाजपा से चोट खाए शिवसेना से बात आसानी से बन सकती है। नीतीश को हरियाणा में इंडियन नेशनल लोक दल के ओम प्रकाश चौटाला से सहारा मिल सकता है। पिछले वर्ष भाजपा के साथ रहते हुए भी नीतीश की चौटाला से मुलाकात हो चुकी है। चौटाला को साध लिया तो पंजाब में अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल भी दायरे में आ सकते हैं। हालांकि ऐसे में अरविंद केजरीवाल का पेंच फंस सकता है, क्योंकि पंजाब में दोनों दूसरे के प्रतिस्पर्धी हैं।

जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों के रास्ते में भाजपा है, वहां तो किसी तरह की बाधा नहीं दिख रही है, लेकिन जहां कांग्रेस और वामदलों से भी चुनौती मिल रही है, वहां विपक्षी एकता के सपने को साकार करना इतना आसान नहीं है। नीतीश कुमार ने कदम तो बढ़ा दिया है, लेकिन भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने के प्रयासों के सामने बड़ा अड़ंगा बंगाल में दिख रहा है, जहां कांग्रेस और वामदलों से दूरी बनाकर रखने वाली ममता बनर्जी ने नीतीश के मिशन से एक दिन पहले एकला चलो का फैसला सुना दिया है। तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता सुखेंदु राय ने साफ कर दिया है कि केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में 2019 में ममता बनर्जी ने भी ऐसा ही प्रयास किया था, लेकिन विपक्ष का व्यापक समर्थन नहीं मिला था। इसलिए तृणमूल 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले नहीं, बाद में गठबंधन पर विचार करेगी।

भाजपा विरोधी मोर्चे में कांग्रेस को साथ लाने के मुद्दे पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव का भी सुर-ताल अलग है। वह भाजपा के साथ कांग्रेस से भी दूरी बनाए रखने के पक्ष में हैं। इसी हफ्ते पटना आकर वह अपनी भावनाओं से नीतीश कुमार को अवगत करा चुके हैं। हालांकि संवाद की गुंजाइश अभी बाकी है, लेकिन जदयू की राष्ट्रीय कार्यपरिषद की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है कि कांग्रेस और वामदलों के बिना विपक्ष की एकता संभव नहीं है। अपने मिशन के पहले पड़ाव पर दिल्ली में राहुल गांधी से नीतीश कुमार की मुलाकात ने भी इसी ओर इशारा किया है। ऐसे में विपक्षी एकता की कोशिशों को चुनाव पूर्व गठबंधन से पहले कई मोड़ से गुजरना पड़ेगा

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