भागलपुर। नवरात्रि के पावन अवसर पर जिले के प्रमुख शक्तिपीठों पर लाखों श्रद्धालु मां दुर्गा की आराधना में जुटे हैं। मंदिरों और धार्मिक स्थलों में भक्ति एवं पूजा की गरिमा देखते ही बन रही है, लेकिन इसी पवित्र माहौल के बीच विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा आयोजित डांडिया महोत्सवों का स्वरूप पूरी तरह बदलता नजर आ रहा है।
जगह-जगह आयोजित ये महोत्सव भक्ति गीतों और पारंपरिक गरबा की धुनों पर थिरकने की बजाय आधुनिक और कभी-कभी अश्लील गानों पर नृत्य करने का दृश्य प्रस्तुत कर रहे हैं। कई कार्यक्रमों में महिलाओं का नृत्य ऐसा है, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर साझा करना भी कठिन हो रहा है। यह स्थिति न केवल हमारी संस्कृति और धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ करती है, बल्कि नवरात्रि जैसे पवित्र पर्व की गरिमा को भी ठेस पहुंचाती है।
विशेषज्ञों और समाजसेवियों का कहना है कि डांडिया महोत्सव मूल रूप से भक्ति और सामूहिक श्रद्धा का प्रतीक रहा है। इसके माध्यम से समाज में आपसी भाईचारा, सांस्कृतिक जुड़ाव और धार्मिक आस्था को प्रोत्साहन मिलता था। लेकिन आज आयोजकों द्वारा इसे केवल मनोरंजन और कमाई का साधन बना दिया गया है। ऐसे आयोजनों में संगीत, नृत्य और प्रस्तुतियों का चयन इस तरह किया जा रहा है कि पारंपरिक महत्व और धार्मिक संदेश पीछे छूट रहे हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह बदलाव युवा पीढ़ी के लिए भी गलत संदेश देता है। माता की भक्ति और पारंपरिक पूजा की जगह फूहड़ संगीत और असामान्य प्रस्तुतियों ने डांडिया महोत्सव की मूल भावना को कमजोर कर दिया है। उन्होंने प्रशासन और आयोजकों से अपील की है कि वे ऐसे कार्यक्रमों में पारंपरिक भक्ति गीतों और गरबा की धुनों को प्राथमिकता दें, ताकि नवरात्रि के पावन पर्व की गरिमा बनी रहे।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि इस प्रवृत्ति पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो नवरात्रि जैसे धार्मिक आयोजनों का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व धीरे-धीरे कम हो सकता है। उन्होंने कहा कि समाज को ऐसे आयोजनों के माध्यम से न केवल मनोरंजन बल्कि भक्ति और संस्कार भी मिलना चाहिए।
इस प्रकार, भागलपुर में नवरात्रि के अवसर पर डांडिया महोत्सव का स्वरूप बदलना एक चिंताजनक संकेत है। यह हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए सभी की जागरूकता और पारंपरिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की आवश्यकता को उजागर करता है।
