बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग द्वारा इस वर्ष बिंद टोली गांव को गंगा नदी के कटाव से बचाने के लिए बड़े पैमाने पर कटाव निरोधी कार्य कराया गया था। विभाग ने दो ठेकेदारों को कुल 22 करोड़ रुपये की लागत से बोल्डर क्रेटिंग और जिओ बैग पीचिंग का कार्य सौंपा था। लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि पहली ही बाढ़ में यह पूरा कार्य ताश के पत्तों की तरह ढह गया और बिंद टोली गांव गंगा की धार में समा गया।
गंगा नदी की भीषण कटाव से स्पर संख्या 8 और 9 के बीच का तटबंध आधे से अधिक हिस्से में नदी में विलीन हो गया। ठेकेदार जयप्रकाश साह को 16 करोड़ रुपये की लागत से स्पर संख्या 8 और 9 के बीच क्षतिग्रस्त रिवेटमेंट में 720 मीटर तथा 600 मीटर में बोल्डर क्रेटिंग और 120 मीटर में जिओ बैग पीचिंग कार्य का जिम्मा दिया गया था। वहीं, एवरग्रीन कंपनी द्वारा स्पर संख्या 9 के अपस्ट्रीम लूप में 145 मीटर क्षेत्र में बोल्डर क्रेटिंग का कार्य 6 करोड़ 15 लाख रुपये की राशि से किया गया था।
लेकिन ग्रामीणों की मानें तो पूरे कार्य में गुणवत्ता का गंभीर अभाव था। कटावरोधी संरचना में GT फ़िल्टर नहीं दिया गया था, जो किसी भी नदी तट संरक्षण कार्य का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इसके अलावा, लगाए गए बोल्डर आकार में बहुत छोटे थे, जो नदी की तेज धारा को झेलने में सक्षम नहीं थे। ग्रामीणों ने बताया कि काम को जल्दबाजी में पूरा करने की कोशिश की गई और सरकारी राशि की जमकर बंदरबांट हुई। घटिया और दोयम दर्जे का काम होने के कारण कटाव निरोधी संरचनाएं एक पूरा सीजन भी नहीं टिक पाईं।
ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया कि विभागीय उड़नदस्ता और क्वालिटी कंट्रोल कमेटी केवल कागजी खानापूर्ति करती है। मौके पर वास्तविक जांच नहीं होने के कारण ठेकेदार मनमानी करते हैं, जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता है। इस बार भी ऐसा ही हुआ—कटाव निरोधी कार्य की गुणवत्ता पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और इसका परिणाम यह हुआ कि बिंद टोली गांव का बड़ा हिस्सा गंगा नदी में समा गया।
गांव के लोगों ने बताया कि वे वर्षों से कटाव की समस्या झेलते आ रहे हैं, लेकिन इस बार की त्रासदी ने उन्हें पूरी तरह से उजाड़ दिया। जिन घरों को बचाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए गए थे, वही घर अब नदी की लहरों में विलीन हो चुके हैं। ग्रामीणों में विभाग के प्रति भारी आक्रोश है। उनका कहना है कि यदि काम सही ढंग से और निर्धारित मानकों के अनुसार किया जाता, तो शायद गांव को बचाया जा सकता था।
बिंद टोली का उदाहरण एक बार फिर यह साबित करता है कि जब तक सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी जनता को राहत नहीं मिलेगी। कटाव निरोधी कार्य सिर्फ कागजों पर पूरा दिखाने से नहीं, बल्कि वास्तविकता में मजबूत निर्माण से ही सफल हो सकते हैं। बिंद टोली के लोग आज भी उम्मीद लगाए हुए हैं कि सरकार इस त्रासदी की गंभीर जांच कर जिम्मेदारों पर कठोर कार्रवाई करेगी और आगे ऐसी गलतियां नहीं दोहराई जाएंगी।
