पटनापटना

पटना हाईकोर्ट ने रामविलास पासवान परिवार से जुड़े एक विवादास्पद मामले में अहम फैसला सुनाते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की पत्नी शोभा देवी और प्रिंस राज की मां सुनैना देवी को बड़ी राहत दी है। न्यायमूर्ति संदीप कुमार की अदालत ने इस मामले में चल रही आपराधिक कार्रवाई पर रोक लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराने वाली सूचक राजकुमारी देवी को नोटिस जारी किया है।

यह मामला पासवान परिवार की पारिवारिक संपत्ति और घरेलू विवाद से जुड़ा है, जिसकी जड़ें सालों पुराने संबंधों में उलझी हुई हैं। दरअसल, यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब इसी साल अप्रैल में रामविलास पासवान की पहली पत्नी राजकुमारी देवी ने खगड़िया के अलौली थाना में एक प्राथमिकी दर्ज कराई। उन्होंने अपने आरोप में कहा कि पशुपति पारस की पत्नी शोभा देवी और रामचंद्र पासवान की पत्नी सुनैना देवी ने मिलकर न केवल उनके निजी कमरे से सामान बाहर फेंक दिया, बल्कि उनके बेडरूम और बाथरूम में ताला भी जड़ दिया। राजकुमारी देवी का यह भी कहना था कि उनके साथ लगातार झगड़ा किया जाता है और उन्हें शहरबन्नी स्थित खानदानी घर से निकालने की साजिश रची जा रही है।

इतना ही नहीं, शिकायत में उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके देवरानियों ने लगभग 50 बीघा जमीन पर जबरन कब्जा कर लिया है, जो कि उनकी वैवाहिक संपत्ति में शामिल है। इस पूरी घटना ने तब और तूल पकड़ लिया जब लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान खुद अपनी ‘बड़ी मां’ राजकुमारी देवी से मिलने उनके घर पहुंचे और मीडिया के सामने आकर अपने चाचा पशुपति पारस और उनके परिवार पर गंभीर आरोप लगाए।

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हालांकि, इस पूरे विवाद में अब कानूनी मोड़ आ गया है। शोभा देवी और सुनैना देवी की ओर से पेश अधिवक्ता राजकुमार ने कोर्ट में यह दलील दी कि राजकुमारी देवी और रामविलास पासवान के बीच 1981 में ही विधिक तलाक हो चुका था। ऐसे में एक तलाकशुदा पत्नी को न तो उस खानदानी संपत्ति में कोई अधिकार प्राप्त है और न ही उन्हें परिवार के किसी सदस्य द्वारा जबरन घर से निकाला गया है। वकील का यह भी कहना था कि दर्ज प्राथमिकी में हस्ताक्षर का उल्लेख किया गया है, जबकि राजकुमारी देवी स्वयं पढ़ी-लिखी नहीं हैं और प्रायः अंगूठा लगाती हैं। इससे यह संदेह उत्पन्न होता है कि प्राथमिकी में दिखाया गया हस्ताक्षर किसी और का हो सकता है।

इस आधार पर याचिकाकर्ताओं की ओर से प्राथमिकी को निरस्त करने और इसके तहत हो रही कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की गई थी। कोर्ट ने इन दलीलों को सुनने के बाद फिलहाल मामले की कार्रवाई पर रोक लगा दी है और सूचक राजकुमारी देवी को नोटिस जारी कर जवाब देने का निर्देश दिया है।

पारिवारिक विवाद का राजनीतिक असर

यह मामला केवल घरेलू कलह तक सीमित नहीं रहा बल्कि राजनीतिक रंग भी ले चुका है। रामविलास पासवान के निधन के बाद पासवान परिवार दो हिस्सों में बंट गया — एक तरफ चिराग पासवान हैं, जो खुद को अपने पिता की राजनीतिक विरासत का सच्चा उत्तराधिकारी मानते हैं, और दूसरी तरफ उनके चाचा पशुपति पारस, जिन्होंने अलग होकर एलजेपी (रामविलास) से इतर एलजेपी (पारस) की कमान संभाली।

इस पारिवारिक झगड़े के बीच संपत्ति विवाद ने आग में घी का काम किया। चिराग पासवान ने अपनी बड़ी मां का समर्थन करते हुए कहा था कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें उनके ही घर से निकालने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके पिता की संपत्ति पर अवैध कब्जा करने की कोशिश की जा रही है।

कोर्ट के फैसले के मायने

पटना हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल पशुपति पारस के परिवार को राहत देता है, बल्कि इस बात पर भी कानूनी मुहर लगाता है कि तलाकशुदा पत्नी का उस संपत्ति पर अधिकार नहीं बनता, जिसे पारिवारिक रूप से साझा किया गया हो और जो पति की निजी मिल्कियत न हो। कोर्ट का यह अंतरिम आदेश मामले की गंभीरता को देखते हुए अगली सुनवाई तक की स्थिति स्पष्ट करता है, लेकिन यह तय है कि इस मामले में कानूनी लड़ाई अभी लंबी चलने वाली है।

निष्कर्ष

रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके परिवार में उत्पन्न हुए मतभेद अब खुलकर सामने आ चुके हैं। जहां एक ओर संपत्ति और घर के अधिकार को लेकर उनकी पहली पत्नी ने शिकायत दर्ज कराई, वहीं दूसरी ओर कोर्ट ने पशुपति पारस की पत्नी और अन्य पर दर्ज प्राथमिकी पर फिलहाल रोक लगाकर एक अहम संदेश दिया है। आने वाले दिनों में इस मामले का असर न केवल कानूनी, बल्कि राजनीतिक रूप से भी देखने को मिलेगा।

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